अध्याय-11
वित्तीय प्रबंध
विपणन :- विपणन से अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से हैं जिसमें वस्तु के उत्पादन, इसके क्रय -विक्रय तथा बिक्री के बाद की सेवाएं शामिल होती हैं |
बाजार :- बाजार से अभिप्राय ऐसे स्थान से है जहाँ क्रेता, विक्रेता प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय करते हैं |
विक्रयण :- इससे अभिप्राय उन क्रियाओं से है, जो ग्राहक के आदेश प्राप्त करने से लेकर वस्तुओं व सेवाओं की सुपुर्दगी तक में शामिल होती हैं |
विपणन की विशेषताएं
(1) आवश्यकता एवं इच्छा : विपणन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा करने का कार्य करता हैं | सभी व्यक्तियों की आवश्यकताएं लगभग समान होती हैं परन्तु इच्छाएं भिन्न -भिन्न होती हैं; जैसे भूख लगना आवश्यकता है लेकिन भूख को भरने के लिए क्या खाया जाता है यह व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता हैं | भूख को शांत करने के लिए रोटी सब्जी, सांभर-डोसा और चावल - दाल आदि खाया जा सकता हैं, यह व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता हैं |
(2) एक बाजार प्रस्ताव तैयार करना : विपणन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं व प्राथमिकताओं के अनुसार, उत्पाद व सेवाओं के नाम, प्रकार, मूल्य, साईज, उपलब्धि केन्द्र, आदि जानकारियों को ध्यान में रखकर बाजार प्रस्ताव तैयार करता हैं |
(3) ग्राहक महत्व : एक क्रेता वस्तुओं को क्रय करते समय उस वस्तु की लागत और संतुष्टि की तुलना करता हैं | तथा अधिक संतुष्टि की स्थिति में उस वस्तु का क्रय करता हैं | विक्रेता को क्रेता की इस प्रवृति को ध्यान में रखा कर वस्तुओं का उत्पादन करता चाहिए, ताकि वह बाजार प्रतियोगिता में बना रह सकें |
(4) विनिमय प्रक्रिया : विनिमय का अर्थ लेन-देन से हैं | विपणन के अंतर्गत दो पक्षकार क्रेता और विक्रेता शामिल होते हैं | जिनके द्वारा विनिमय का कार्य किया जाता है | विक्रेता द्वारा वस्तुओं व सेवाओं का विक्रय क्रेता को किया जाता हैं और क्रेता द्वारा विक्रेता को धन या धन के समान कोई अन्य चीज दी जाती हैं | इस प्रकार विपणन में विनिमय का कार्य किया जाता हैं |
विपणन प्रबंध :- विपणन प्रबंध से अभिप्राय उस क्रियाओं से है जिसके अंतर्गत उपभोक्ताओं की आवश्यकतों की संतुष्टि किये जाने वाली कार्यों का नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन और नियंत्रण किया जाता हैं |
विपणन एवं विक्रयण में अंतर
अंतर का आधार |
विपणन |
विक्रयण |
(1) क्षेत्र |
विपणन का क्षेत्र अधिक व्यापक होता हैं | |
विक्रायण का क्षेत्र संकुचित होता हैं | |
(2) केन्द्र बिन्दु |
इसका केंद्र बिन्दु उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की संतुष्टि करना हैं| |
इसका केंद्र बिन्दु केवल बिक्री करना होता हैं | |
(3) क्रिया का प्रारम्भ एवं अंत |
वस्तु के विचार से उपभोक्ता की संतुष्टि को पूरा किये जाने तक विपणन क्रिया की जाती हैं | |
क्रिया का प्रारम्भ वस्तु के निर्माण से शुरू होता है और उपभोक्ता को वस्तु उपलब्ध करने पर इस क्रिया का अंत होता हैं | |
(4) लाभ की प्राप्ति |
विपणन में उपभोक्ताओं को संतुष्ट का लाभ कमाया जाता हैं | |
इसके अंतर्गत लाभ अधिकतम बिक्री द्वारा प्राप्त होता हैं | |
(5) बिक्री के बाद की सेवाएं |
इसके अंतर्गत बिक्री के बाद की सेवाएं दे जाती हैं | |
इसके अंतर्गत बिक्री के बाद की सेवाएं नहीं दी जाती हैं | |
विपणन के कार्य
(1) बाजार सूचनाओं का एकत्रीकरण एवं विश्लेषण : विपणन के अंतर्गत बाजारी सूचनाएं जैसे :- (i) उपभोक्ता कौन सी वस्तु, किस मूल्य पर, किस मात्र में, व किस स्थान पर और कब चाहता है आदि सूचनाओं का एकत्रीकरण किया जाता हैं | एकत्रित की गई सुचानाओं का विश्लेषण कर यह निर्णय लिया जाता है कि किस प्रकार की वस्तु का उत्पादन किया जाये |
(2) विपणन नियोजन : विपणन कर्ता द्वारा विपणन के उद्येश्यों की पूर्ति के लिए विपणन नियोजन का कार्य किया जाता हैं | जैसे :- यदि किसी कंपनी को 50% उत्पादन बढाना हैं तो इसको प्राप्त करने के कई विकल्प हो सकते हैं | परन्तु कई विकल्पों में से किसी एक विकल्प का चयन करना ही नियोजन कहलाता हैं |
(3) उत्पाद डिजाइनिंग तथा विकास : एक विक्रेता को प्रतियोगी बाजार में बने रहने के लिए अपनी वस्तु को अन्य प्रतियोगी से अलग तथा आकर्षक दिखाने की आवश्यकता होती है | इसके लिए यह आवश्यक हो जाता हैं कि वह वस्तु को आकर्षक दिखाने के लिए इसकी डिजाइनिंग भी बेहतर तरीके से करें |
(4) प्रमापीकरण एवं श्रेणीकरण : विपणन के अंतर्गत वस्तुओं का प्रमापीकरण (अर्थात् वस्तु का आकार, किस्म, डिजाइन, भार, रंग, प्रयोग आदि ) में समरूपता व श्रेणीकरण (अर्थात् सामान्य क़िस्म और बेहतर क़िस्म विशेष की वस्तुओं को अलग करना ) आदि का कार्य किया जाता हैं |
(5) पैकेजिंग एवं लेबलिंग : विपणन के अंतर्गत वस्तु की पैकेजिंग का उद्येश्य वस्तु को परिवहन व अन्य परिस्थितियों में होने वाली क्षय, टूट-फूट व क्षति से बचाने तथा लेबलिंग का उद्येश्य वस्तु के विषय में जानकारी (जैसे : वस्तु की उत्पादन तिथि, मूल्य, प्रयोग की विधि, बैच नम्बर, प्रयोग की अन्तिम तिथि, वस्तु को बनाने में प्रयोग साम्रागी आदि ) देने का होता हैं |
(6) नामकरण/ब्रांडिग : किसी भी उत्पाद की पहचान उस वस्तु के बांड से होती हैं | किसी वस्तु की ब्रांडिग उसे प्रतियोगी बाजार में एक अलग पहचान देती हैं और प्रतिगोगिता बाजार में बने रहने को भी सुनिश्चित करती हैं |
(7) ग्राहक सहायक सेवा : विपणन की एक अहम् विशेषता है जो उसे बिक्री व बाजार आदि क्रियाओं से अलग करती है, वह हैं वस्तु की बिक्री के बाद की सेवाएं | जिससें उपभोक्ताओं की संतुष्टि में वृद्धि होती हैं | इसके लिए विपणनकर्ता निम्न सेवाएं प्रदान करता है ;
(i) ग्राहक शिकायत निवारण केंद्र,
(ii) विक्रेय उपरांत सेवाएं,
(iii) उधार सेवाएं,
(iv) तकनीकी सेवाएं, और
(v) देख रेख सुविधाएँ |
(8) उत्पादों का मूल्य निर्धारण : किसी वस्तु का मूल्य निर्धारण एक अहम् प्रक्रिया है क्योंकि किसी वस्तु का मूल्य ही उस वस्तु की बिक्री को निर्धारित करता हैं | मूल्य निर्धारण के समय वस्तु की लागत, लाभ की दर, प्रतियोगी वस्तु का मूल्य और सरकारी नीति आदि को ध्यान में रखा जाता हैं |
(9) संवर्द्धन : संवर्द्धन के अंतर्गत उपभोक्ताओं को वस्तुओं की जानकारी दी जाती हैं | ताकि वह उस विशेष वस्तु को खरीदने के लिए प्रेरित हो | संवर्द्धन के अंतर्गत विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय, विक्रय संवर्द्धन, और प्रचार आदि शामिल होते हैं |
(10) भौतिक वितरण : इसके द्वारा वस्तुओं को उत्पादन स्थान से उपभोक्ता स्थान तक पंहुचाया जाता हैं | भौतिक वितरण के अंतर्गत वस्तुओं के भण्डारण, स्टॉक मात्रा और परिवहन आदि का कार्य किया जाता हैं | इस प्रकार यह वस्तु में समय व स्थान उपयोगिता पैदा करता हैं |
(11) परिवहन : प्रायः उत्पाद का स्थान व उपभोग का स्थान अलग - अलग स्थान पर स्थित होते हैं परिवहन दोनों स्थानों को जोड़ने का कार्य करता हैं | अतः परिवहन द्वारा वस्तुओं में स्थान उपयोगिता का सृजन होता हैं |
(12) संग्रहण : प्रायः कई कारणों की वजह से वस्तुओं की उत्पादन के बाद तुरंत बिक्री संभव नहीं हो पाती हैं, ऐसी स्थिति में वस्तुओं की संग्रहण की आवश्यकता होती हैं | ताकि वस्तुओं को सुरक्षित रखा जा सकें | संग्रहण वस्तुओं को उपभोक्ताओं को सही समय पर सुपुर्द कराने में भी मदद करता हैं |
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