अध्याय - 9
वित्तीय प्रबंधन
व्यवसायिक वित - व्यावसायिक गतिविधिओ को चलाने के लिए जिस धन की आवश्यकता होती है, उसे व्यावसायिक वित कहते है |
व्यवसायिक वित की आवश्यकता -
1. व्यवसाय के स्थापन के लिए |
2. व्यवसाय के संचालन के लिए |
3. व्यवसाय के आधुनिकीकरण के लिए |
4. व्यवसाय के विस्तार के लिए |
5. व्यवसाय के विविधिकरण के लिए |
वित्तीय प्रबंध
वित्तीय प्रबन्ध का अर्थ :- वित्तीय प्रबन्ध को व्यवसाय में प्रयोग किये जाने वाले कोषों का नियोजन करने , प्राप्त करने , नियंत्रण करने एवं प्रशासन करने से सम्बन्धित गतिविधि कहा जा सकता है| इसका उद्देश्य आवश्यता के समय पयाप्त कोषों को उपलब्ध कराने का विश्वास दिलाना भी होता है तथा अनावश्यक वित्त सा बचाकर रखना होता है | यह धन की लागत का भी काम करता है | संक्षिप्त में, इसका अभिप्राय प्रबंध की उस शाखा से है जिसका संबंध धन की प्रभावी प्राप्ति व उपयोग से है |
वित्तीय प्रबंध के महत्व -
1. स्थाई संपत्तियों का निर्धारण : वित्तीय प्रबंध के अंतर्गत स्थाई संपत्तियों में कुल विनियोग तथा प्रत्येक स्थाई संपत्ति में किए जाने वाले विनियोग का निर्धारण किया जाता है |
2. चालू संपत्तियों का निर्धारण : वित्तीय प्रबंध के अंतर्गत चालू संपत्तियों में कुल विनियोग तथा प्रत्येक चालू संपत्ति पर विनियोग का निर्धारण किया जाता है |
3. दीर्घकालीन व अल्पकालीन वित के अनुपात का निर्धारण : व्यवसाय की कुल वित्तीय आवश्यकता को दीर्घकालीन व अल्पकालीन स्त्रोतों से पूरा किया जाता है | दीर्घकालीन स्त्रोत व्यवसाय में लम्बे समय तक धन उपलब्ध करवाते है जिसके प्रयोग से तरलता बढती है | जिसके कारण दीर्घकालीन स्त्रोतों को अल्पकालीन स्त्रोतों से अधिक लागते सहनी पड़ती है | वित्तीय प्रबंध में तरलता व लागत विश्लेषण करके दोनों वित्तीय स्त्रोतों के अनुपात का निर्धारण किया जाता है |
4. दीर्घकालीन वित्त के विभिन्न स्त्रोतों के अनुपात का निर्धारण : दीर्घकालीन वित्तीय स्त्रोतों में समता अंश पूंजी, पूर्वाधिकार अंश पूंजी, संचित लाभ, ऋणपत्र, दीर्घकालीन ऋण आदि मुख्य है | वित्तीय प्रबंध के अंतर्गत इन विभिन्न दीर्घकालीन वित्तीय स्त्रोतों का अनुपात निश्चित किया जाता है |
5. लाभ - हानि खाते की विहिन्न मदों का निर्धारण : विभिन्न वित्तीय निर्णयों से लाभ - हानि में सम्मिलित मदे प्रभावित होती है | उदाहरण के लिए, ब्याज का संबंध ऋणों की राशि से है |
वित्तीय प्रबंध के उद्देश्य -
1. धन संपदा को अधिकतम करना : धन संपदा को अधिकतम करने का अभिप्राय अंशधारियो द्वारा व्यवसाय में विनियोजित पूंजी में वृद्धि करना |धन संपदा को अधिकतम करने के लिए अनुकूलतम पूंजी संरचना तथा कोषो का उचित प्रयोग आवश्यक है |
2. तरलता बनाए रखना : कोषो को उचित एवं नियमित आपूर्ति को उचित लागत पर बनाए रखना |
3. कोषो का उचित उपयोग : कोषो का उचित उपयोग ताकि उपव्यय से बचा जा सके |
4. जोखिम को न्यूनतम करना : कोषों को व्यवसाय में इस प्रकार लगाया जाना चाहिए जिससे निवेश में जोंखिम की संभावना यथा संभव कम से कम होनी चाहिए|
वित्त सम्बन्धी निर्णय :-
1. कुल आवश्यक कोषों का अनुमान लगाना |
2. वित् के विभिन्न श्रोतो की पहचान करना |
3. यह निर्णय लेना की वित् के किस स्रोत से कितना वित्त लेना है |