अमरीकी प्रभुत्व या एकध्रुवीय विश्व : शीतयुद्ध के अंत के बाद संयुक्त राज्य अमरीका विश्व की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा और दुनिया में कोई उसकी टक्कर का प्रतिद्वंद्वी न रहा। इस घटना के बाद के दौर को अमरीकी प्रभुत्व या एकध्रुवीय विश्व का दौर कहा जाता है।
अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत :
अमरीकी वर्चस्व की शुरुआत 1991 में हुई जब एक ताकत के रूप में सोवियत संघ अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से गायब हो गया | इस स्थिति में अमरीकी वर्चस्व सार्वव्यापी मान्य हो गया | अन्यथा अमरीकी वर्चस्व 1945 से ही अंतर्राष्ट्रीय पटल पर विद्यमान था |
(i) खाड़ी युद्ध : अमरीका के नेतृत्व में 34 देशों की मिलीजुली और 660000 सैनिकों की भारी-भरकम फौज ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोला और उसे परास्त कर दिया। इसे प्रथम खाड़ी युद्ध कहा जाता है।
(a) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म : 1990 के अगस्त में इराक ने कुवैत पर हमला किया और बड़ी तेजी से
उस पर कब्ज़ा जमा लिया। इराक को समझाने-बुझाने की तमाम राजनयिक कोशिशें जब नाकाम रहीं तो संयुक्त राष्ट्रसंघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे दी। संयुक्त राष्ट्रसंघ के इस सैन्य अभियान को ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ कहा जाता है |
एक अमरीकी जनरल नार्मन श्वार्जकॉव इस सैन्य-अभियान के प्रमुख थे और 34 देशों की इस मिली जुली सेना में 75 प्रतिशत सैनिक अमरीका के ही थे। हालाँकि इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन
का ऐलान था कि यह ‘सौ जंगों की एक जंग’ साबित होगा लेकिन इराकी सेना जल्दी ही हार गई और उसे कुवैत से हटने पर मजबूर होना पड़ा।
(b) कंप्यूटर युद्ध : खाड़ी युद्ध के दौरान अमरीका की सैन्य क्षमता अन्य देशो की तुलना में कही अधिक थी | प्रौद्योगिकी के मामले में अमेरिका अन्य देशों से काफी आगे निकल गया है | बड़े विज्ञापनी अंदाज में अमरीका ने इस युद्ध में तथाकथित ‘स्मार्ट बमों’ का प्रयोग किया। इसके चलते कुछ पर्यवेक्षकों ने इसे ‘कंप्यूटर युद्ध की संज्ञा दी। इस युद्ध की टेलीविजन पर व्यापक कवरेज हुई और यह एक ‘वीडियो गेम वार’ में तब्दील हो गया।
खाड़ी युद्ध के बाद अमरीका की विदेश निति : खाड़ी युद्ध जीतने के बावजूद जार्ज बुश 1992 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार विलियम जेफरसन (बिल) क्लिंटन से राष्ट्रपति चुनाव हार गए | उन्होंने विदेश निति की जगह घरेलु मामलों तक सिमित कर लिया |
क्लिंटन के शासन में अमेरिकी विदेश निति :
(i) क्लिंटन सरकार ने सैन्य-शक्ति और सुरक्षा जैसी ‘कठोर राजनीति’ की जगह लोकतंत्र के बढ़ावे की निति अपनाई |
(ii) जलवायु-परिवर्तन तथा
(iii) विश्व व्यापार जैसे ‘नरम मुद्दों’ पर ध्यान केन्द्रित किया।
11 सितम्बर (नाइन एलेवन) की घटना : 11 सितंबर 2001 के दिन विभिन्न अरब देशों के 19 अपहरणकर्त्ताओं ने उड़ान भरने के चंद मिनटों बाद चार अमरीकी व्यावसायिक विमानों पर कब्ज़ा कर लिया। अपहरणकर्त्ता इन विमानों को अमरीका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध् में उड़ाकर ले गये। दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए। तीसरा विमान वर्जिनिया के अर्लिंगटन स्थित ‘पेंटागन’ से टकराया। ‘पेंटागन’ में अमरीकी रक्षा-विभाग का
मुख्यालय है। चौथे विमान को अमरीकी कांग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन वह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को ‘नाइन एलेवन’ कहा जाता है
9/11 की घटना का परिणाम :
(i) इस घटना से पूरा विश्व हिल सा गया | अमरीकियों के लिए यह दिल दहला देने वाला घटना था |
(ii) इस हमले में लगभग तिस हजार व्यक्ति मारे गये |
(iii) 9/11 के जबाब अमरीका ने फौरी कदम उठाये और भयंकर कार्रवाई की।
(iv) ‘आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध’ के अंग के रूप में अमरीका ने ‘ऑपरेशन एन्डयूरिंग प्रफीडम’ चलाया।
(v) यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था। इस अभियान में मुख्य
निशाना अल-कायदा और अपफगानिस्तान के तालिबान-शासन को बनाया गया।
9/11 के बाद अमरीका द्वारा बनाए गए बंदी : अमरीकी सेना ने पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ कीं। अक्सर गिरफ्तार लोगों के बारे में उनकी सरकार को जानकारी नहीं दी गई। गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुपिफया जेलखानों में रखा गया। क्यूबा के निकट अमरीकी नौसेना का एक ठिकाना ग्वांतानामो बे में है। कुछ बंदियों को वहाँ रखा गया। इस जगह रखे गए बंदियों को न तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की सुरक्षा प्राप्त है और न ही अपने देश या अमरीका के कानूनों की। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।
ऑपरेशन इराकी फ्रीडम : 2003 के 19 मार्च को अमरीका ने ‘ऑपरेशन इराकी प्रफीडम’ के कुटनाम से इराक पर सैन्य-हमला किया। अमरीकी अगुआई वाले ‘कॉअलिशन ऑव वीलिंग्स आकांक्षियों के महाजोट)’ में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इराक पर इस हमले की अनुमति नहीं दी थी।
2003 के इराक पर हमले के उदेश्य : चूँकि इस हमले के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की अनुमति नहीं थी | सिर्फ दिखावे के लिए कहा गया कि सामूहिक संहार के हथियार बनाने के लिए इराक पर हमला किया गया है|
(i) इराक में सामूहिक संहार के हथियारों की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले।
(ii) ऐसा माना जाता है कि इराक पर यह हमला इराक के तेल-भंडार पर नियंत्रण और इराक में अमरीका की मनपसंद सरकार कायम करने के उदेश्य से किया गया था ।
इराक पर अमरीकी हमले के सैन्य और राजनितिक परिणाम :
(i) इराक को ‘शांत’ कर पाने में अमरीका सफल नहीं हो सका है।
(ii) इराक में अमरीका के खिलाफ एक पूर्णव्यापी विद्रोह भड़क उठा।
(iii) अमरीका के 3000 सैनिक इस युद्ध में मारे गए जबकि इराक के सैनिक कहीं ज्यादा बड़ी संख्या में मारे गये।
(iv) एक अनुमान के अनुसार अमरीकी हमले के बाद से लगभग 50000 नागरिक मारे गये हैं।
(v) एक महत्त्वपूर्ण अर्थ में इस हमले का निष्कर्ष यह है कि इराक पर अमरीकी हमला सैन्य और राजनीतिक धरातल पर असफल सिद्ध हुआ है।