शीतयुद्ध का दौर :
क्यूबा मिसाइल संकट : क्यूबा का जुड़ाव सोवियत संघ से था और सोवियत संघ उसे तथा वित्तीय सहायता देता था। सोवियत संघ के नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे’ वेफ रूप में बदलने का फैसला किया। 1962 में ख्रुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया। हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमरीका के मुख्य भू-भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था। संघर्ष की आशंका ने पुरे विश्व को बेचैन कर दिया | दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणुयुद्ध का खतरा मंडराने लगा था | अमेरिका ने अपने जंगी बेड़ों को आगे कर दिया ताकि क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए | इन दोनो महाशक्तियों के बीच ऐसी स्थिति बन गई कि लगा कि युद्ध होकर रहेगा | इतिहास में इसी घटना को क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है |
मित्र राष्ट्र : द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका फ्रांस तथा सोवियत संघ को विजय मिली इन्ही तीनों राष्ट्रों को संयुक्त रूप से मित्र राष्ट्र के नाम से जाना जाता है |
धुरी राष्ट्र : जिन राष्ट्रों को द्वितीय विश्व युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था उन्हें धुरी राष्ट्र के नाम से जाना जाता है | ये राष्ट्र थे जर्मनी, जापान और इटली |
द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत :
अगस्त 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े। इसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध का अंत हुआ।
अमरीका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराने के संबंध में आलोचनात्मक तर्क :
(i) अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है। ऐसे में बम गिराना गैर-जरूरी था।
(ii) अमरीका की इस कार्रवाई का लक्ष्य सोवियत संघ को एशिया तथा अन्य जगहों पर सैन्य और
राजनीतिक लाभ उठाने से रोकना था।
(iii) वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत
है।
(iv) अमरीका के समर्थकों का तर्क था कि युद्ध को जल्दी से जल्दी समाप्त करने तथा अमरीका और साथी राष्ट्रों की आगे की जनहानि को रोकने के लिए परमाणु बम गिराना जरूरी था।
शीतयुद्ध : शीत युद्ध दो सहशक्तियों की बीच शत्रुपूर्ण वातावरण था। विचारों में मतभेदों के होते हुए भी विश्व को तीसरे विश्व युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा जिसका कारण था परमाणु बम का अविष्कार/दोनों सहशक्तियां इससे परिपूर्ण थी। अर्थात परमाणु संपन्न होते हुए भी दोनों ही महाशक्तियों रक्त रंजित युद्ध के स्थान पर आपसी प्रतिद्वंदिता तथा तनाव की स्थिति बनी रही जिसे शीतयुद्ध कहा जाता है |
शीतयुद्ध की शुरुआत : द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही शीत युद्ध की शुरूआत हुई।
शीतयुद्ध का अंत : क्यूबा का मिसाइल संकट शीत युद्ध का अंत था | लेकिन इसका प्रमुख कारण सोवियत संघ का विघटन माना जाता है |
शीतयुद्ध का कारण :
(i) अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीतयुद्ध का कारण बना।
(ii) परमाणु बम से होने वाले विध्वंस की मार झेलना किसी भी राष्ट्र के बूते की बात नहीं।
(iii) दोनों महाशक्तियों परमाणु हथियारों से संपन्न थी, उनके पास इतनी क्षमता के परमाणु हथियार हों कि वे एक-दूसरे को असहनीय क्षति पहुँचा सकते है तो ऐसे में दोनों के रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना कम रह जाती है।
(iv) एक दुसरे को उकसावे के वावजूद कोई भी राष्ट्र अपने नागरिकों पर युद्ध की मार नहीं देखना चाहता था |
(v) दोनों राष्ट्रों के बीच गहन प्रतिद्वंदिता |
शीतयुद्ध एक विचारधारा की लड़ाई :
शीतयुद्ध सिर्फ जोर-आजमाइश, सैनिक गठबंधन अथवा शक्ति-संतुलन का मामला भर नहीं था बल्कि इसके साथ-साथ विचारधरा के स्तर पर भी एक वास्तविक संघर्ष जारी था। विचारधरा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि पूरे विश्व में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का
सबसे बेहतर सिद्धांत कौन-सा है। पश्चिमी गठबंधन का अगुआ अमरीका था और यह गुट उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवाद का हामी था। पूर्वी गठबंधन का अगुवा सोवियत संघ था और इस गुट की प्रतिबद्धता समाजवाद तथा साम्यवाद के लिए थी।
शीतयुद्ध के विभिन्न घटनाक्रम :
1947: साम्यवाद को रोकने के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रूमैन का सिद्धांत।
1947-52: मार्शल प्लान - पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण में अमरीका की सहायता।
1948-49: सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की घेराबंदी। अमरीका और उसके साथी देशों ने पश्चिमी बर्लिन के नागरिकों को जो आपूर्ति भेजी थी उसे सोवियत संघ ने अपने विमानों से उठा लिया।
1950-53: कोरियाई युद्ध - 38वीं समानांतर रेखा के द्वारा कोरिया का विभाजन।
1954: वियतनामियों के हाथों दायन बीयन पूफ में फ़्रांस की हार; जेनेवा समझौते पर हस्ताक्षर; 17वीं समानांतर रेखा द्वारा वियतनाम का विभाजन; सिएटो (SEATO) का गठन।
1954-75: वियतनाम में अमरीकी हस्तक्षेप।
1955: बगदाद समझौते पर हस्ताक्षर; बाद में इसे सेन्टो (CENTO) के नाम से जाना गया।
1956: हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप।
1961: क्यूबा में अमरीका द्वारा प्रायोजित ‘बे ऑपफ पिग्स’ आक्रमण
1961: बर्लिन-दीवार खड़ी की गई।
1962: क्यूबा का मिसाइल संकट।
1965: डोमिनिकन रिपब्लिक में अमरीकी हस्तक्षेप।
1968: चेकोस्लोवाकिया में सोवियत हस्तक्षेप।
1972: अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन का चीन दौरा।
1978-89: वंफबोडिया में वियतनाम का हस्तक्षेप।
1979-89: अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप
1985: गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने सुधर की प्रक्रिया आरंभ की।
1989: बर्लिन-दीवार गिरी; पूर्वी यूरोप की सरकारों के विरुद्ध लोगों का प्रदर्शन।
1990: जर्मनी का एकीकरण।
1991: सोवियत संघ का विघटन; शीतयुद्ध की समाप्ति।