औपनिवेशवाद के चुंगल से आजाद होने बाद भी कई देशों के लोकतंत्र न अपनाने के पीछे तर्क :
(i) इन देशों के नेताओं ने कहा कि हमारा देश अभी लोकतंत्र नहीं अपना सकता क्योंकि राष्ट्रिय एकता हमारी प्राथमिकता है और लोकतंत्र को अपनाने से मतभेद और संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा |
(ii) ऐसे छोटे-मोटे तर्क देकर इन देशों ने अलोकतांत्रिक शासन व्यवस्था कायम की |
(iii) इन अलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में इन देशों में प्रभावी नियंत्रण किसी एक नेता के हाथ में था तो कही एक दल तो कही सता सीधे सेना के हाथ में थी |
भारत में लोकतंत्र स्थापित करने के कारण :
(i) आजाद भारत के नेताओं ने अपने लिए कही ज्यादा कठिन रास्ता चुनने का फैसला किया | हमारे नेताओं ने लोकतंत्र में राजनीति की निर्णायक भूमिका को लेकर सचेत थे |
(ii) वे राजनीति को समस्या के रूप में नहीं देखते थे बल्कि वे राजनीति को समस्या के समाधान के रूप में देखते थे |
(iii) लोकतंत्र में उनकी गह्ररी आस्था थी |
चुनाव आयोग का गठन : चुनाव योग का गठन जनवरी 1950 में हुआ | कुमारसेन पहले चुनाव आयुक्त बने |
चुनाव आयोग के गठन के आरंभिक वर्ष में चुनौतियाँ :
(i) चुनाव कराने के लिए चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन
(ii) मतदाता सूची यानी मताधिकार प्राप्त व्यस्क व्यक्तियों की सूची बनाना
(iii) 40 लाख महिलाओं के नाम दर्ज करना शेष था और पहले से दर्ज प्रविष्टियों का पुनरावलोकन |
(iv) ऐसा चुनाव संबंधित कार्य विश्व में कही इतने बड़े स्तर पर नहीं हुए थे उस वक्त देश में 17 करोड़ मतदाता थे | इन्हें 3200 विधायक और 489 सांसद चुनने थे |
(v) 15 प्रतिशत मतदाता साक्षर थे, इस कार्य को पूरा कराने के लिए 3 लाख से अधिक अधिकारीयों और चुनावकर्मियों को प्रशिक्षित किया |
इतिहास का सबसे बड़ा जुआ : भारत में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार का प्रयोग इतने बड़े स्तर पर करना एक बहुत बड़ी चुनौती और एक मुश्किल कार्य था | जिसे लेकर एक हिन्दुस्तानी संपादक ने इसे "इतिहास का सबसे बड़ा जुआ" करार दिया | ओर्गेनाइजर नाम की पत्रिका ने लिखा की "जवाहर लाल नेहरू "अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे और पछतायेंगे कि भारत में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार असफल रहा |"
इंडियन सिविल सर्विस के के अंग्रेज नुमाइंदे का दावा था कि "आने वाला वक्त और अब से कही ज्यादा जानकार दौर बड़े विस्मय से लाखों अनपढ़ लोगों के मतदान की यह बेहूदा नौटंकी देखेगा |"
पहला आम चुनाव : अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 के बीच हुए |
1952 का आम चुनाव एक सफल चुनाव था : इस चुनाव में कुल छ: महीने लगे | चुनाव में उम्मीदवारों के बीच मुकाबला भी हुआ | हारे हुए उम्मीदवारों ने चुनाव को निष्पक्ष बताया | लोगों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की | कुल मतदाताओं के आधे से अधिक लोगों ने मतदान किया | सार्वभौमिक मतदान के इस परिणाम ने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया | देश से बाहर से आए पर्यवेक्षक भी हैरान थे | हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा- "यह बात हर जगह मानी जा रही है कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम दिया है |
कांग्रेस के प्रभुत्व का कारण :
(i) कांग्रेस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत हासिल थी | तब के दिनों में यह एक मात्र पार्टी थी जिसका संगठन पुरे भारत में मजबूत था |
(ii) इस पार्टी में जवाहर लाल नेहरू जैसा लोकप्रिय और करिश्माई नेता था जो चुनाव के समय पार्टी की अगुआई की और पुरे देश का दौरा किया था |
(iii) पहले आम चुनाव में 489 सीटों में से 364 सीटें कांग्रेस ने अकेले जीती थी | दुसरे न० पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विजयी रही जिसने 16 सीटें जीती थी |
(iv) लगभग सभी राज्यों के चुनावों में कांग्रेस विजयी रही और उसी की सरकार बनी |
केरल में कम्युनिस्ट की जीत :
1957 में केरल के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का मुँह देखना पड़ा | इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिली | कुल 126 में से 60 सीटें हासिल हुई और 6 स्वतंत्र उम्मीदवारों का समर्थन मिला | राज्यपाल ने कम्युनिस्ट विधायक दल के नेता को ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद को सरकार बनाने का न्योता दिया | 1959 में केंद्र सरकार ने संविधान के धारा 356 के अंतर्गत केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया | यह फैसला विवादस्पद साबित हुआ |