विदेश निति : प्रत्येक देश अन्य देशों के साथ संबंधों की स्थापना में एक विशेष प्रकार की ही निति का प्रयोग करता है जिसे विदेश निति कहते हैं |
भारत की विदेश निति के दो प्रमुख तत्व :
(i) अन्य सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करना
(ii) शांति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना
भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ एक संघर्ष :
भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन अपने आप में यह कोई अकेली/स्वतंत्र घटना नहीं थी बल्कि यह उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ शेष विश्व में चल रहे आन्दोलन अथवा संघर्ष का ही एक हिस्सा था |
(i) इस आन्दोलन का असर एशिया और अफ्रीका के कई मुक्ति आन्दोलनों पर हुआ |
(ii) आज़ादी से पहले से ही राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता दुनिया में अन्य उपनिवेशों के लिए मुक्ति आन्दोलन चला रहे नेताओं के संपर्क में थे |
(iii) दुसरे विश्वयुद्ध के दौरान नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने इंडियन नेशनल आर्मी (I. N. A) का गठन किया |
गुटनिरपेक्षता की निति :
विश्वयुद्ध के तुरंत बाद ही शीतयुद्ध का दौर शुरू हो गया | दुनिया के देश दो खेमों में बंट रहे थे | दोनों खेमों के बीच विश्वस्तर पर आर्थिक, राजनितिक और सैन्य टकराव जारी था | इसी दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ भी अस्तित्व में आया | विश्व दो खेमे संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ जैसे दो ध्रुवों में बंटा हुआ था | परमाणु हथियारों की होड़ शुरू हो गई | भारत इन दोनों गुटों में से किसी में भी नहीं शामिल होने का फैसला किया | लेकिन भारत जिस गुट में शामिल हुआ उसका नाम था गुटनिरपेक्ष गुट, ये इन दो ध्रुवीय गुट से अलग था जो भारत को अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों से अलग करता था | भारत की इस निति को गुटनिरपेक्षता की निति कहा जाता है |
भारत के प्रथम विदेश मंत्री : जवाहर लाल नेहरू |
नेहरू के विदेश निति के तीन बड़े उदेश्य :
(i) कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना
(ii) क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना
(iii) तेज रफ़्तार से आर्थिक विकास करना
नेहरू ने अपने विदेश निति के उदेश्य को हासिल करने के लिए गुटनिरपेक्षता की निति अपनाई :
नेहरू गुटनिरपेक्षता की निति को अपनाकर अपने विदेश निति के उदेश्य को प्राप्त करना चाहते थे - लेकिन इस निति से तो राष्ट्र की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को तो प्राप्त किया जा सकता था परन्तु आर्थिक विकास की चाभी तो विश्व के इन्ही दो गुटों के देशों के पास थी | भारत के बहुत से अन्य नेता भी चाहते थे की भारत अमेरिकी खेमे से ज्यादा नजदीकियाँ बढ़ाना चाहिए | इसका कारण वे मानते थे कि अमेरिका लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा हिमायती है | कुछ साम्यवादी नीतियों के विरोधी पार्टिया जैसे जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी भी चाहती थी भारत अमेरिकी गुट में शामिल हो जाये | लेकिन विदेश निति पर नेहरू का कब्जा था |
विश्व शांति के लिए भारत का प्रयास :
आज़ादी के बाद से ही भारत की विदेश निति में विश्व शांति का सपना था और इसके लिए भारत ने गुटनिरपेक्षता की निति अपनाई | इसके लिए भारत ने निम्नलिखित प्रयास किए -
(i) गुटनिरपेक्षता की निति को अपनाना
(ii) शीतयुद्ध से उपजे तनावों को कम करने की कोशिश की
(iii) संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति-अभियानों में अपनी सेना भेजी |
(iv) अंतरराष्ट्रीय मामलों पर भारत ने स्वतंत्र रवैया अपनाया |
भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की निति अपनाने का कारण :
(i) भारत विश्व शांति चाहता था और वह शीतयुद्ध का हिस्सा नहीं बनाना चाहता था|
(ii) भारत अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों में नहीं पड़ना चाहता था |
(iii) नेहरू अपने विदेश निति के तीनों उदेश्यों को गुटनिरपेक्ष निति को अपनाकर हासिल करना चाहते थे |
एफ्रो-एशियाई एकता के लिए नेहरू / भारत के प्रयास :
(i) नेहरू के दौर में भारत ने एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतंत्र देशों के साथ संपर्क बनाए |
(ii) 1940 और 1950 के दशक में नेहरू ने बड़े मुखर स्वर में एशियाई एकता की पैरोकारी की |
(iii) नेहरू की अगुआई में भारत ने मार्च 1947 में एशियाई संबंध सम्मलेन का आयोजन कर डाला |
(iv) नेहरू की अगुआई में भारत ने इंडोनेशिया की आज़ादी के लिए भरपूर प्रयास किए | इसके लिए भारत ने इसके समर्थन में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन किया |
(v) भारत ने खासकर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का विरोध किया |
(vi) दक्षिण अफ्रीका के बांडुंग-सम्मलेन में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी | इस आन्दोलन की स्थापना में नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका थी |
पंचशील की घोषणा : शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धांत यानि पंचशील की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री नेहरू और चीन के प्रमुख चाऊ एन. लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल 1954 में की | दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध का एक अगला कदम था |
पंचशील के सिद्धांत : भारत तथा चीन
विदेश निति के मामलों पर सर्व-सहमति : विदेश निति के मामलों में सर्व-सहमति आवश्यक है जिसके निम्नलिखित कारण है :
(i) यदि किसी देश की विदेश निति पर सर-सहमति नहीं होगा तो वह देश अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी बातों को या अपने पक्ष को प्रभावी ढंग से नहीं रख पायेगा |
(ii) भारत के विदेश निति के कुछ अंशों जैसे - गुट-निरपेक्षता, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, दुसरे देशों से मित्रवत सम्बन्ध और अन्तर्रष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा आदि मामलों पर हमेशा से ही सहमति रही है |
भारत की विदेश निति :
(i) गुट-निरपेक्षता,
(ii) साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध,
(iii) दुसरे देशों से मित्रवत सम्बन्ध
(iv) अन्तर्रष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा
भारत और चीन के बीच मतभेद और सैनिक संघर्ष :
भारत और चीन के बीच मुख्यत: दो मुद्दों पर मतभेद रहे है -
(i) तिब्बत की समस्या : 1962 के भारत-चीन युद्ध का प्रमुख कारण तिब्बत की समस्या थी | चीन ने सदैव तिब्बत पर अपना दावा किया, जबकि भारत इस समस्या को तिब्बतवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सुलझाना चाहता था |
(ii) सीमा विवाद : भारत और चीन के बीच सीमा विवाद भी युद्ध का एक प्रमुख कारण रहा है | भारत ने सदैव मैकमोहन रेखा को स्वीकार किया, परन्तु चीन ने इसे स्वीकार नहीं किया | सीमा-विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि इसने आगे चलकर युद्ध का रूप ले लिया |