सहयोगमूलक सुरक्षा :
सुरक्षा पर मंडराते अनेक अपारंपरिक ख़तरों से निपटने के लिए सैन्य- संघर्ष की नहीं बल्कि आपसी सहयोग की
जरुरत है। आतंकवाद से लड़ने अथवा मानवाधिकारों को बहाल करने में भले ही सैन्य-बल की कोई भूमिका हो लेकिन गरीबी मिटाने, तेल तथा बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति बढ़ाने, आप्रवासियों और शरणार्थियों की आवाजाही के प्रबंधन तथा महामारी के नियंत्रण में सैन्य-बल की बजाय देशों की आपसी सहयोग द्वारा निपटा जा सकता है |
सहयोग मूलक व्यवस्था में विभिन्न तत्वों की भूमिका :
(i) द्विपक्षीय (दो देशों वेफ बीच) सहयोग, क्षेत्रीय सहयोग, महादेशीय अथवा वैश्विक स्तर का सहयोग |
(ii) सहयोगमूलक सुरक्षा में विभिन्न देशों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर की अन्य संस्थाएँ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन ;संयुक्त राष्ट्रसंघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि) स्वयंसेवी संगठन (एमनेस्टी
इंटरनेशनल, रेड क्रॉस, निजी संगठन तथा दानदाता संस्थाएँ, चर्च और धर्मिक संगठन, मजदूर संगठन, सामाजिक और विकास संगठन) और
(iii) कुछ जानी-मानी हस्तियाँ जैसे नेल्सन मंडेला एवं मदर टेरेसा |
(iv) अंतिम उपाय के रूप में बल प्रयोग ऐसा अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के अनुमति से किया जा सकता है !
भारत के समक्ष खतरे :
(i) पारंपरिक (सैन्य)
(ii) अपारंपरिक (आतंरिक)
भारत के सुरक्षा निति के घटक :
भारत की सुरक्षा-नीति के चार बड़े घटक हैं और अलग-अलग वक्त में इन्हीं घटकों के हेर-फेर से सुरक्षा की रणनीति बनायी गई है।
(i) सैन्य-क्षमता को मजबूत करना : सुरक्षा-नीति का पहला घटक रहा सैन्य-क्षमता को मजबूत करना क्योंकि भारत पर पड़ोसी देशों से हमले होते रहे हैं। पाकिस्तान ने 1947-48, 1965, 1971 तथा 1999 में और चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला किया। दक्षिण एशियाई इलाके में भारत के चारों तरफ परमाणु हथियारों से लैस देश हैं। ऐसे में भारत के परमाणु परीक्षण करने के फैसले (1998) को उचित ठहराते हुए भारतीय सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दिया था। भारत ने सन् 1974 में पहला परमाणु परीक्षण किया था।
(ii) सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना : भारत की सुरक्षा नीति का दूसरा घटक है अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना। भारत के पहले प्रधनमंत्राी जवाहरलाल नेहरू ने एशियाई एकता, अनौपनिवेशीकरण (Decolonisation) और निरस्त्रीकरण के प्रयासों की हिमायत की। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय
संघर्षों में संयुक्त राष्ट्रसंघ को अंतिम पंच मानने पर जोर दिया।
(iii) देश की अंदरूनी सुरक्षा-समस्याओं से निबटने की तैयारी : भारत की सुरक्षा रणनीति का तीसरा घटक है देश की अंदरूनी सुरक्षा-समस्याओं से निबटने की तैयारी। नगालैंड, मिजोरम, पंजाब और कश्मीर जैसे क्षेत्रों से कई उग्रवादी समूहों ने समय-समय पर इन प्रांतों को भारत से अलगाने की कोशिश की। भारत ने राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का पालन किया है। यह विभिन्न समुदायों और जन-समूहों को अपनी शिकायतों को खुलकर रखने और सत्ता में भागीदारी करने का मौका देती है।
(iv) अर्थव्यवस्था को विकसित करना : भारत में अर्थव्यवस्था को इस तरह विकसित करने के प्रयास किए गए हैं कि बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी और अभाव से निजात मिले तथा नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता ज्यादा न हो।