अमरीकी वर्चस्व का अर्थ : अमरीकी वर्चस्व के कई क्षेत्रों में कई अर्थ है |
(i) आर्थिक केंद्र के रूप में : द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमरीका एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है |
(ii) अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के रूप में : सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया में एकमात्र महाशक्ति अमरीका बचा। इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था अमरीकी हाथों में चली गई | इसे ‘एकध्रुवीय’ व्यवस्था भी कहा जाता है।
(iii) तकनीकी क्षेत्र में : हमने इराक युद्ध में देखा कि किस तरह अमरीका सैन्य एवं अन्य वैज्ञानिक तकनीकों में अन्य पश्चिमी देशों से कही आगे है |
(iv) सैन्य शक्ति के रूप में : शीतयुद्ध के बाद अमरीका एक सैन्य शक्ति के रूप में उभरा है | उसने विश्व के कई देशों में सैनिक ठिकाने बना रखा है |
अमरीकी सैन्य शक्ति : अमरीका की मौजूदा ताकत की रीढ़ उसकी बढ़ी-चढ़ी सैन्य शक्ति है। आज
अमरीका की सैन्य शक्ति अपने आप में अनूठी है और बाकी देशों की तुलना में बेजोड़। अनूठी इस अर्थ में कि आज अमरीका अपनी सैन्य क्षमता के बूते पूरी दुनिया में कहीं भी निशाना साध सकता है। एकदम सही समय में अचूक और घातक वार करने की क्षमता है उसके पास। अपनी सेना को युद्धभूमि से अधिकतम दूरी पर सुरक्षित रखकर वह अपने दुश्मन को उसकके घर में ही पंगु बना
सकता है।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में सार्वजनिक वस्तु का सबसे बढि़या उदाहरण समुद्री व्यापार-मार्ग (सी लेन ऑव कम्युनिवेफशन्स -SLOCs) हैं जिनका इस्तेमाल व्यापारिक जहाज करते हैं।
साम्राज्यवादी शक्तियों के बल प्रयोग का लक्ष्य :
साम्राज्यवादी शक्तियों ने सैन्य बल का प्रयोग महज चार लक्ष्यों -
(i) जीतने,
(ii) अपरोध् करने,
(iii) दंड देने और
(iv) कानून व्यवस्था बहाल रखने के लिए किया है।
वैश्विक अर्थव्यस्था में मुक्त-व्यापार : वैश्विक अर्थव्यस्था में मुक्त-व्यापार अमरीकी वर्चस्व की देन है | वह इस व्यवस्था को हर हालत में बनाए रखना चाहता है | इसके लिए उसे आपेक्षिक हानि भी उठानी पड़ती है | जबकि दुसरे प्रतियोगी देश वैश्विक अर्थव्यवस्था के खुलेपन का फायदा उठाते हैं जबकि इस खुलेपन को कायम रखने के लिए उन्हें कोई खर्च भी नहीं करना पड़ता। इस व्यवस्था को कायम रखने के लिए सार्वजानिक वस्तुएँ उपलब्ध करवाने में अमरीका की महत्वपूर्ण भूमिका है, जैसे समुद्री मार्ग (सी लेन ऑव कम्युनिकेशन - SLOCs)इत्यादि |
सार्वजानिक वस्तु के उदाहरण : स्वच्छ वायु, सड़क और इन्टरनेट |
समुद्री मार्गों पर नियंत्रण : खुली वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुक्त-व्यापार समुद्री व्यापार-मार्गों के खुलेपन के बिना संभव नहीं। दबदबे वाला देश अपनी नौसेना की ताकत से समुद्री व्यापार-मार्गों पर आवाजाही के नियम तय करता है और अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में अबाध् आवाजाही को सुनिश्चित करता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश नौसेना का जोर घट गया। अब यह भूमिका अमरीकी नौसेना निभाती है जिसकी उपस्थिति दुनिया के लगभग सभी महासागरों में है।
इन्टरनेट पर नियंत्रण : इन्टरनेट एक सार्वजनिक वस्तु है जो वर्ल्ड वाइड वेव के जरिए पुरे विश्व को जोड़ता है | इंटरनेट अमरीकी सैन्य अनुसंधन परियोजना का परिणाम है। यह परियोजना 1950 में शुरू हुई थी। आज भी इंटरनेट उपग्रहों के एक वैश्विक तंत्र पर निर्भर है और इनमें से अधिकांश उपग्रह अमरीका के हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण : अमरीका दुनिया के हर हिस्से, वैश्विक अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र
तथा प्रौद्योगिकी के हर हलके में मौजूद है। विश्व की अर्थव्यवस्था में अमरीका की 28 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। यदि विश्व के व्यापार में यूरोपीय संघ के अंदरूनी व्यापार को भी शामिल कर लें तो विश्व के कुल व्यापार में अमरीका की 15 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। विश्व की अर्थव्यवस्था का एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें कोई अमरीकी कंपनी अग्रणी तीन कंपनियों में से एक नहीं हो।
अमरीका द्वारा तैयार संरचनात्मक ढाँचा जो उसे आर्थिक प्रबलता देती है :
अमरीका की आर्थिक प्रबलता उसकी ढाँचागत ताकत यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक खास शक्ल में ढालने की ताकत से जुड़ी हुई है।
(i) ब्रेटनवुड प्रणाली (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और (b) विश्व व्यापार संगठन
(ii) एमबीए (मास्टर ऑव बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) की अकादमिक डिग्री
अमरीकी वर्चस्व - सांस्कृतिक अर्थ में :
(i) इस वर्चस्व का आशय है सामाजिक, राजनीतिक और ख़ासकर विचारधारा के धरातल पर किसी वर्ग की बढ़त या दबदबा की | अमेरिका के संबंध में इसका रिश्ता 'सहमती गढ़ने' की ताकत से हैं |
(ii) कोई प्रभुत्वशाली वर्ग या देश अपने असर में रहने वालों को इस तरह सहमत कर सकता है कि वे भी दुनिया को उसी नजरिए से देखने लगें जिसमें प्रभुत्वशाली वर्ग या देश देखता है। ऐसी क्षमता अमेरिका में बखूबी है |
(iii) अमेरिका सिर्फ सैन्य शक्ति से काम नहीं लेता अपितु वह अपने प्रतिद्वंद्वी और अपने से कमजोर देशों के व्यवहार-बरताव को अपने मनमापिफक बनाने के लिए विचारधरा से जुड़े साधनों का भी इस्तेमाल करता है।
(iv) दुनिया के अधिकांश लोगों और समाजों के जो सपने हैं- वे सब बीसवीं सदी के अमरीका में प्रचलित व्यवहार-बरताव के ही प्रतिबिंब हैं। अमरीकी संस्कृति बड़ी लुभावनी है और इसी कारण
सबसे ज्यादा ताकतवर है।
सोवियत संघ को सांस्कृतिक उत्पाद द्वारा मात : शीतयुद्ध के दौरान अमरीका को लगा कि सैन्य शक्ति के दायरे में सोवियत संघ को मात दे पाना मुश्किल है। अमरीका ने ढाँचागत ताकत और सांस्कृतिक प्रभुत्व के दायरे में सोवियत संघ से बाजी मारी। सोवियत संघ की केंद्रीकृत और नियोजित अर्थव्यवस्था उसके लिए अंदरूनी आर्थिक संगठन का एक वैकल्पिक मॉडल तो थी लेकिन पूरे शीतयुद्ध के दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था पूँजीवादी तर्ज पर चली। अमरीका ने सबसे बड़ी जीत सांस्कृतिक प्रभुत्व के दायरे में हासिल की। सोवियत संघ में नीली जीन्स के लिए दीवानगी इस बात को साफ-साफ जाहिर करती है कि अमरीका एक सांस्कृतिक उत्पाद के दम पर सोवियत संघ में दो पीढि़यों के बीच दूरियाँ पैदा करने में कामयाब रहा।
अमरीकी वर्चस्व की सबसे बड़ी बाधा :
अमरीकी वर्चस्व को लगाम लगाने में ये तीन चीजें महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है |
(i) संस्थागत बनावट : पहला व्यवधान स्वयं अमरीका की संस्थागत बनावट है। यहाँ शासन के तीन अंगों के बीच शक्ति का बँटवारा है और यही बनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बेलगाम इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का काम करती है।
(ii) अमरीकी समाज : अमरीकी समाज जो अमरीका के विदेशी सैन्य-अभियानों पर अंकुश रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।
(iii) नाटो : अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में आज सिर्फ एक संगठन है जो संभवतया अमरीकी ताकत पर लगाम कस सकता है और इस संगठन का नाम है ‘नाटो’ अर्थात् उत्तर अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन।