माँग फलन या माँग के निर्धारक तत्व - माँग फलन किसी वस्तु की माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्वों के बीच फल्नात्मक सम्बंध है |
माँग फलन के प्रकार -
1. व्यक्तिगत माँग फलन - व्यक्तिगत माँग फलन किसी व्यक्तिगत क्रेता द्वारा की गई माँग तथा उसे प्रभावित करने वाले कारको के बीच सम्बंध को प्रकट करती है |
Dx = f(Px,Pr,Y,T,E)
Dx = वस्तु X की माँगी गई मात्रा |
PX = वस्तु X की अपनी कीमत |
Pr = संबंधित वस्तुओं की कीमत |
Y = क्रेता की आय
T = उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकता |
E = उपभोक्ता की संभावनाएं |
2. बाजार माँग फलन - बाजार माँग फलन किसी दिए गए बाजार में सभी क्रेताओं द्वारा की गई माँग तथा उसे प्रभावित करने वाले कारको के बीच सम्बंध को प्रकट करती है |
Dx = f(Px,Pr,Y,T,E,N,Yd)
Dx = वस्तु X की माँगी गई मात्रा |
Px = वस्तु X की अपनी कीमत |
Pr = संबंधित वस्तुओं की कीमत |
Y = क्रेता की आय
T = उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकता |
E = उपभोक्ता की संभावनाएं |
N = जनसंख्या का आकार |
Yd = आय का वितरण |
व्यक्तिगत माँग को प्रभावित करने वाले कारक -
(क) वस्तु की अपनी कीमत - किसी वस्तु की अपनी कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी होती है उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होती है उस वस्तु की माँग कम हो जाती है | अतः वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी मांगी गई मात्र के बीच विपरीत सम्बंध होता है |
(ख) सम्बंधित वस्तु की कीमत - संबंधित वस्तु की कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | सम्बंधित वस्तु दो प्रकार की होती है -
(i) प्रतिस्थापन वस्तुएं - वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग एक दुसरे के स्थान पर किया जाता है प्रतिस्थापन वस्तुएँ कहलाती है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत के बीच धनात्मक या प्रत्यक्ष सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होगी तो उस वस्तु की माँग में वृद्धि होगी तथा प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी होने के कारण उस वस्तु की माँग में कमी होगी | जैसे - चाय और कॉफ़ी, चाय की कीमत बढ़ने पर कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी |
(ii) पूरक वस्तुएं - पूरक वस्तुएं वो वस्तुएं होती है जो एक तुसरे की माँग को पूरा करती है जैसे - पेन और स्याही, पेन और स्याही दोनों एक दुसरे की माँग को पूरा करते है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी पूरक वस्तु की कीमत के बीच विपरीत सम्बंध या ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की माँग में कमी हो जाएगी तथा पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने पर उस वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाएगी | जैसे - स्याही की कीमत में वृद्धि होने पर पेन की माँग में कमी हो जाएगी |
(ग) उपभोक्ता की आय - उपभोक्ता की आय किसी वस्तु की माँग को दो तरह से प्रभावित करती है | उपभोक्ता की आय तथा समान्य वस्तु की माँग में धनात्मक सम्बंध पाया जाता है | उपभोक्ता की आय बढ़ने पर समान्य वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है तथा इसके विपरीत भी | उपभोक्ता की आय तथा निम्नकोटि वस्तुओं की माँग में ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | अर्थात उपभोक्ता की आय बढ़ने पर निम्नकोटि वस्तुओं की माँग कम हो जाती है तथा आय कम होने पर माँग बढ़ जाती है |
(घ) रूचि तथा प्राथमिकता - वस्तु तथा सेवाओं की माँग उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकताओं पर निर्भर करती है | उपभोक्ता जिन वस्तुओ की रूचि रखता है तथा जिसे प्राथमिकता देता है उन वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है | इसके आलावा जिन वस्तुओं में रूचि कम हो जाती है उन वस्तुओं की माँग कम हो जाती है |
(ङ) संभावनाएं - संभावनाएं वस्तु की माँग पर विशेष प्रभाव डालता है | जैसे यदि उपभोक्ता को लगता है की आने वाले समय में किसी वस्तु की उपलब्धता कम होने वाली है तो वह अभी उस वस्तु की माँग में वृद्धि करेगा |
बाजार माँग को प्रभावित करने वाले करक -
(क) वस्तु की अपनी कीमत - किसी वस्तु की अपनी कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी होती है उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा जैसे ही किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होती है उस वस्तु की माँग कम हो जाती है | अतः वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी मांगी गई मात्र के बीच विपरीत सम्बंध होता है |
(ख) सम्बंधित वस्तु की कीमत - संबंधित वस्तु की कीमत उस वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | सम्बंधित वस्तु दो प्रकार की होती है -
(i) प्रतिस्थापन वस्तुएं - वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग एक दुसरे के स्थान पर किया जाता है प्रतिस्थापन वस्तुएँ कहलाती है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत के बीच धनात्मक या प्रत्यक्ष सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होगी तो उस वस्तु की माँग में वृद्धि होगी तथा प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी होने के कारण उस वस्तु की माँग में कमी होगी | जैसे - चाय और कॉफ़ी, चाय की कीमत बढ़ने पर कॉफ़ी की माँग बढ़ जाएगी |
(ii) पूरक वस्तुएं - पूरक वस्तुएं वो वस्तुएं होती है जो एक तुसरे की माँग को पूरा करती है जैसे - पेन और स्याही, पेन और स्याही दोनों एक दुसरे की माँग को पूरा करते है | किसी वस्तु की माँग तथा उसकी पूरक वस्तु की कीमत के बीच विपरीत सम्बंध या ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | इसका अर्थ है यदि पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की माँग में कमी हो जाएगी तथा पूरक वस्तु की कीमत में कमी होने पर उस वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाएगी | जैसे - स्याही की कीमत में वृद्धि होने पर पेन की माँग में कमी हो जाएगी |
(ग) उपभोक्ता की आय - उपभोक्ता की आय किसी वस्तु की माँग को दो तरह से प्रभावित करती है | उपभोक्ता की आय तथा समान्य वस्तु की माँग में धनात्मक सम्बंध पाया जाता है | उपभोक्ता की आय बढ़ने पर समान्य वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है तथा इसके विपरीत भी | उपभोक्ता की आय तथा निम्नकोटि वस्तुओं की माँग में ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है | अर्थात उपभोक्ता की आय बढ़ने पर निम्नकोटि वस्तुओं की माँग कम हो जाती है तथा आय कम होने पर माँग बढ़ जाती है |
(घ) रूचि तथा प्राथमिकता - वस्तु तथा सेवाओं की माँग उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकताओं पर निर्भर करती है | उपभोक्ता जिन वस्तुओ की रूचि रखता है तथा जिसे प्राथमिकता देता है उन वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है | इसके आलावा जिन वस्तुओं में रूचि कम हो जाती है उन वस्तुओं की माँग कम हो जाती है |
(ङ) संभावनाएं - संभावनाएं वस्तु की माँग पर विशेष प्रभाव डालता है | जैसे यदि उपभोक्ता को लगता है की आने वाले समय में किसी वस्तु की उपलब्धता कम होने वाली है तो वह अभी उस वस्तु की माँग में वृद्धि करेगा |
(च) जनसंख्या का आकार - किसी वस्तु के क्रेताओं की संख्या में वृद्धि होने पर उस वस्तु की माँग में वृद्धि होती तथा उस वस्तु के क्रेताओं की संख्या में कमी होने पर उस वस्तु की माँग में कमी होती है |
(छ) आय का वितरण - समाज में आय का वितरण किसी वस्तु की माँग को काफी प्रभावित करती है | यदि समाज में अमीर अधिक है और गरीब कम है तो विलासिता की वस्तुओं की अधिक माँग की जाएगी | यदि समाज में गरीब अधिक तथा अमीर कम है तो निम्नकोटि वस्तुओं की अधिक माँग की जाएगी |