सकल निवेश व शुद्ध निवेश (GROSS INWESTMENT AND NET INWESTMENT)
निवेश का अर्थ = अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता (शक्ति) को बढ़ाने के लिए जिन भौतिक वस्तुओं को क्रय (खरीद) करने के लिए जो निवेश किया जाता है|
अर्थव्यवस्था उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि करना निवेश/ पूँजी निर्माण कहते है/ जैसे : मशीने, इमारते,उपकरणों के स्टॉक में वृद्धि|
इसमें परिसंपतियों का निर्माण व वृद्धि शामिल की जाती है|
सकल निवेश: एक समयावधि में वर्तमान में पूँजी के स्टॉक में की गई पूँजीगत वस्तुओं की कुल वृद्धि सकल निवेश कहलाता है | इसमें विद्यमान पूँजीगत वस्तुओं की टूट-फूट व रख-रखाव की प्रतिस्थापन लागत शामिल होती है| सकल निवेश में मूल्यह्रास को शामिल किया जाता है|
मूल्यह्रास=
अचल पूँजी का उपभोग = पूंजीगत वस्तुएं सामान्य टूट-फुट व प्रत्याशित अप्रचल के कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट (ह्रास) को मूल्यह्रास या अचल पूँजी का उपभोग कहते है |
जैसे :मशीनरी,ट्रेक्टर,रेल,इंजन,इमारत,रेलवे लाइन में समय के साथ-साथ टूट फुट होती रहती है और जीवन काल के अन्त में उन्हें बदलने (प्रतिस्थापन) की जरुरत पड़ती है|
शुद्ध (निवल) निवेश : यह एक समयावधि में अर्थव्यवस्था की पूँजी के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि का माप है | सकल निवेश में से मूल्यह्रास घटाने पर शुद्ध निवेश प्राप्त होता है|
सूत्र के रूप में
शुद्ध निवेश = सकल निवेश – मूल्यह्रास
घरेलू (आर्थिक) सीमा : घरेलू सीमा की अवधारणा का अभिप्राय है कि घरेलू सीमा कि घरेलू सीमा (देश के अन्दर) में सृजित आय को घरेलू आय कहते है|
परिभाषा :
आर्थिक सीमा से अभिप्राय ‘किसी देश की सरकार के द्वारा प्रशासित उस भौगोलिक सीमा से है जिसमे व्यक्ति,वस्तु तथा पूँजी का प्रवाह निर्बाध रूप से होता है|
एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में निम्न तत्व शामिल किया जाता है:
(1) देश का एक समस्त भू-भाग जो राजनैतिक सीमओं के अन्दर आता है| इसमें समुन्द्री सीमा भी शामिल है|
(2) ऐसे जलयान तथा वायुयान जो देशवासियों द्वारा पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से दो या दो से अधिक देशों के बीच चलाएँ जाते है|
(3) मछली पकडने की नौकाएँ,तेल व प्राकृतिक गैस वाले यान तथा तैरने वाले प्लेटफार्म जो पूर्ण रूप से देशवासियों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय समझौते से सर्वाधिकार प्राप्त जल सीमाओं में दोहन कार्य के लिए चलाएँ जाते है|
(4) विदेशों में स्थित देश के दूतावास,वाणिज्य दूतावास तथा सैनिक प्रतिष्ठान|
उदाहरणके लिए:
(1) भारतीय दूतावास जो अमेरिका व अन्य देशों में स्थित है भारत की घरेलू सीमा के अन्तर्गत माने जाएंगे|
(2) इसी प्रकार जापान, अमेरिका, रूस, आदि अन्य देशों के भारत में स्थित दूतावास,अपने –अपने देशों की घरेलू सीमा के नहीं|
घरेलू आय में जो मदे शामिल नहीं की जाएँगी
(1) भारत में स्थित विदेशी दूतावास,वाणिज्य दूतावास तथा सैनिक प्रतिष्ठान|
(2) अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ (कार्यालय) जो भारतीय सीमा में कार्य करती है|
(3) विदेशी नागरिकों की पारिश्रमिक जो भारतीय सीमा में कार्य करती है|
देश के सामान्य निवासी /सामान्य निवासी
एक देश के सामान्य निवासी से अभिप्राय उस व्यक्ति/ संस्था से है जो सामान्यतः उस देश में रहता है जिसमे उसकी आर्थिक हित व रुचि केन्द्रित होती है|
सामान्य निवासी की दो शर्ते है :
(1) एक वर्ष के लिए निवास|
(2) आर्थिक हितों व रुचि का होना |
सामान्य निवासी में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है :
(1) सामान्य निवासियों में व्यक्ति और संस्थाएँ दोनों शामिल होती है लेकिन उनके आर्थिक हित व रुचि उसी देश में निहित हो|
(2) सामान्य निवासियों में नागरिक और गैर-नागरिक (विदेशी) दोनों शामिल किये जाते है यदि वे किसी देश में एक वर्ष से अधिक समय के लिए रहते है और उसी देश में उनके आर्थिक हित निहित होते है|
(3) स्थानीय कर्मचारी जो अपने देश में स्तिथ विदेशी दूतावासों में काम करते है अपने देश के सामान्य निवासी समझे जाते है|
जैसे : अमेरिकी दूतावास में काम करने वाले भारतीय नागरिक|
(4) सीमा पर रहने वाले निवासी जो प्रातः सीमा को पार करके दूसरे देश में काम करने जाते है और शाम को अपने देश लौट आते है|
(5) अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में काम करने वाले भारतीय नागरिक|
जैसे: विश्व बैंक,विश्व स्वास्थ्य संगठन,अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि|
उपभोग वस्तुएँ व पूंजीगत वस्तुएँ :
अर्थव्यवस्था में उत्पादित सब अन्तिम वस्तुओं/उपयोग हेतु अन्तिम वस्तुओं को दो भागो में बाँटा जा सकता है|
(1) उपभोग वस्तुएँ / उपभोक्ता वस्तुएँ
(2) पूँजीगत वस्तुएँ / उत्पादन के उत्पादित साधन
(1) उपभोग वस्तुएँ (उपभोक्ता वस्तुएँ) = वे वस्तुएँ जो उपभोक्ताओं के द्वारा अन्तिम उपभोग के लिए की जाती है| या उपभोक्ताओं की तत्काल आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से पूरा करती है|
उपभोग वस्तुएँ / उपभोक्ता वस्तुएँ कहलाती है|
जैसे: भोजन,कपडा,जूता,मकान,सिगरेट,टी.वी. सेट,पेन आदि|
महत्व :
(1) उपभोग वस्तुओं से किसी अर्थव्यवस्था के मूल उद्देश्य व उपभोग की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है|
(2) जीवित रहने व काम करने के लिए उपभोग वस्तुएँ मानव की मूल आवश्यकता है|
(1) टिकाऊ प्रदार्थ : टिकाऊ वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जिसका प्रयोग दीर्घकाल में बार –बार किया जा सकता है|
जैसे: कार, मकान, टी.वी. सेट, कंप्यूटर, फ्रिज़, कपड़ा धोने की मशीन, आदि|
(2) गैर-टिकाऊ प्रदार्थ : गैर – टिकाऊ वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जिसका उपभोग करने पर तत्काल या थोड़े समय के बाद इनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है|
जैसे : भोजन,फल,सब्जियाँ, दूध,कोयला, माचिस आदि|
(2) पूँजीगत वस्तुएँ / उत्पादन के उत्पादित साधन
वे टिकाऊ वस्तुएँ जो अन्य वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए खरीदी जाती है| इन्हें पूँजीगत वस्तुएँ या उत्पादन के साधन कहते है|
जैसे : मशीन, औजार, उपकरण, इमारत आदि|
विशेषताएँ :
(1) इनका प्रयोग उत्पादन इकाइयों द्वारा आय सृजित करने के लिए किया जाता है|
(2) ये अन्य वस्तुओं का उत्पादन सम्भव बनाती है पर स्वयं उत्पादन प्रक्रिया में रूपांतरित हो जाती है|
(3) इन उत्पादन प्रक्रिया के दौरान टूट-फुट या घिसावट होती है| और कुछ समय बाद इनकी मरम्मत व बदलने की जरुरत होती है|
(4) ये अर्थव्यवस्था की उत्पादन प्रक्रिया की रीढ़ की हड्डी के समान है जो अर्थव्यवस्था को उत्पादन का चक्रीय प्रवाह जारी रखने के योग्य बनाती है|
पूँजीगत वस्तुओं के निर्माण / वृद्धि से लाभ
(1) ये भविष्य में अर्थवयवस्था की उत्पादन क्षमता को बढाती है|
(2) मूल व भारी उधोग स्थापित करने में सहायक होती है|
(3) देश की विकास दर को प्रत्यक्ष निर्धारित करती है|
उत्पादन के साधन (FP) :
उत्पादन के साधनों से अभिप्राय उन सभी तत्वों या आगतों (INPUT) से है जो वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में योगदान देते है|
जैसे :
(1) गेंहूँ के उत्पादन के लिए एक किसान भूमि, श्रम, बीज, खाद, पानी, बैल, ट्रैक्टर आदि का प्रयोग करता है| तथा इसमें निहित सभी जोखिम उठाता है|
(2) फर्नीचर का निर्माता लकड़ी, कील, विभिन्न औजार, पेंच और बढ़ई की सेवाओं का प्रयोग करता है|
साधन आगतें: साधन आगतें वे आगतें होती है जो उत्पादन में अपनी केवल सेवाएँ प्रदान करते है और अपना अस्तित्व नहीं खोते हैं| ये टिकाऊ वस्तुएँ होती हैं|
जैसे : भूमि, किसान (श्रम), ट्रैक्टर (पूँजी) आदि|
गैर-साधन आगतें : गैर-साधन आगतें वे आगतें होती है जो उत्पादन में प्रयोग होने पर प्रदार्थ में विलीन (MERGE) हो जाती हैं और अपना अस्तित्व खो देती है|
जैसे : खाद, बीज,पानी आदि|
स्थिर पूँजी का उपभोग / मूल्यह्रास /अंचल पूँजी का उपभोग :
पूँजीगत वस्तुएँ (प्रदार्थ)में सामान्य टूट-फुट व प्रत्याशित अप्रचलन के कारण पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में गिरावट को मूल्यह्रास व अचल पूँजी का उपभोग या स्थिर पूँजी का उपभोग कहते है|
जैसे : मशीन औजार, इमारते, रेल आदि|
वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में स्थाई पूँजीगत वस्तुओं में मूल्यह्रास के दो प्रमुख कारण है:
(1) सामान्य टूट-फुट : उत्पादन प्रक्रिया में स्थाई पूँजीगत वस्तुओं में घिसावट व टूट-फुट होती रहती है जिसके फलस्वरूप इनके मूल्य में गिरावट आ जाती है|
जैसे : मशीन, औजार, इमारतें, रेल, इंजन, ट्रक, पुल आदि|
(2) प्रत्याशित अप्रचलन / तकनालाजीय अप्रचलन (चलन से बाहर होना) :
अप्रचलन से अभिप्राय है कि तकनीक में परिवर्तन या वस्तुओं की माँग में परिवर्तन के कारण पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में गिरावट से है| कभी-कभी पूँजीगत वस्तुएँ चलन से बाहर हो जाती हैं क्योंकि उत्पादन तकनीक में परिवर्तन आ जाता है|
उदाहरण के लिए :
(1) भाप द्वारा चालित रेल इंजन, डीज़ल इंजन के आने से चलन से बाहर हो गया|
(2) डीज़ल इंजन द्वारा चालित रेल इंजन, विद्युत इंजन के आने से बाहर होता जा रहा है|
(3) LED T.V. के आने से साधारण T.V.चलन से बाहर होता जा रहा है|
मूल्यह्रास प्रबंध / मूल्यह्रास आरक्षित कोष
स्थाई पूँजी के वर्तमान स्तर को बनाए रखने के लिए उधमी अपनी चालू आय से कुछ राशि अलग बचाकर रखता है ताकि नाकारा या घिसी मशीनरी की जगह नई मशीनरी लगाकर अचल पूँजी का प्रयोग करके उसके अनुमानित जीवन काल तक किया जा सके| इसे मूल्यह्रास प्रबंध या मूल्यह्रास आरक्षित कोष कहते है|
पूंजीगत हानि :
अप्रत्याशित अप्रचलन और प्राकृतिक विपत्तियों के कारण पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में गिरावट पूँजीगत हानि कहलाती है|
जैसे : आग, बाढ़,भूकंप, चोरी आदि के द्वारा |
अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं का मौद्रिक मूल्य :
Question: बाज़ार कीमत (MP) पर घरेलू उत्पाद (FC) को निकलने के लिए क्यों प्रत्यक्ष कर जोड़ा जाता है पर आर्थिक सहायता घटाई जाती है?
Answer: अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं का मौद्रिक मूल्य को दो तरीकों से मापा जा सकता है:
(1) साधन लागत (FACTOR COST)
(2) बाज़ार कीमत (MARKET PRICE)
साधन लागत / साधन आय : साधन लागत से अभिप्राय यह है की उत्पादन के साधनों को किसी वस्तु के उत्पादन में योगदान देने के बदले में जो पूँजी का भुगतान किया जाता है उसे साधन लागत कहते है| यह साधनों की साधन आय होती है परन्तु (या) एक उधमी (मालिक) के द्वारा किसी वस्तु के उत्पादन में योगदान देने के बदले में जितनी पूँजी का भुगतान किया जाता है उसे साधन लागत कहते है|
जैसे : मजदूरी, लगान, ब्याज और लाभ| साधन लागत में अप्रत्यक्ष कर या आर्थिक सहायता शामिल नहीं होती है|
- बाजार कीमत (MP) : जिस कीमत पर एक वस्तु बाजार में खरीदी या बेचीं जाती है,वह वस्तु की कीमत कहलाती है| यह साधन लागत +शुद्ध अप्रत्यक्ष कर के बराबर होती है| बाजार कीमत में साधन लागत के अतिरिक्त शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर –आर्थिक सहायता) शामिल होता है|
सूत्र के रूप में,
बाजार कीमत: साधन लागत + अप्रत्यक्ष कर –आर्थिक सहायता
साधन लागत + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
साधन लागत: बाजार कीमत – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
बाजार कीमत –शुद्ध कीमत अप्रत्यक्ष कर
Q. किसी वस्तु में अप्रत्यक्ष कर लगाने से वस्तु की कीमत में वृद्धि व आर्थिक सहायता मिलने से वस्तु की कीमत में कमी आती है क्यों? या
(1) अप्रत्यक्ष कर लगाने से वस्तु की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है|
(2) आर्थिक सहायता से वस्तु की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है|
ANS. अप्रत्यक्ष कर : सरकार द्वारा वस्तुओं के उत्पादन व बिक्री पर लगाए गए करों को अप्रत्यक्ष कर कहते है|
जैसे : उत्पादन शुल्क,बिक्री कर,सीमा शुल्क, मनोरंजन कर आदि| जब कोई क्रेता किसी वस्तु का क्रय करता है तो क्रेता द्वारा दी गई कीमत में अप्रत्यक्ष कर की राशी भी शामिल होती है क्योंकि क्रेता इन करों का भुगतान अप्रत्यक्ष रूप में करता है| अप्रत्यक्ष कर लगाने से वस्तु की कीमत बढ़ जाती है|
उदाहरण के लिए:
दिल्ली में बिजली के उपकरणों पर सरकार ने 10% की दर से बिक्री कर लगाया है| एक बिजली का पंखा जो बिक्री कर के बिना 500 रू. में बिकता है परन्तु बिक्री कर लगने से 55 रू में बिकेगा |
आर्थिक सहायता : यह सरकार के द्वारा अनुदान या धन संबधी सहायता होती है | जो उधमो की वस्तु विशेष के उत्पादन करने के लिए या निर्यात बढ़ाने के लिए तथा उपभोग प्रदार्थो की कीमत कम हो जाती है |
उदाहरण के लिए:
दिल्ली दुग्ध योजना (DMS) एक लिटर फुल क्रीम दूध की थैली 44 रू. में बेचती है जबकि इस पर उसकी लागत 45 रू. आती है क्योंकि सरकार एक रू. प्रति लीटर दूध पर आर्थिक सहायता देती है |
सरकार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता को निम्न तीन मुख्य रूप है:
(1) उधमो को सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर उपभोग वस्तु बेचने के लिए आर्थिक सहायता |
(2) निर्यात बढ़ाने के लिए निर्यातकों को नकद सहायता|
(3) श्रम-प्रधान तकनीक अपनाने के लिए उधमो को नकद सहायता|
विदेशों से शुद्ध साधन (कारक) आय (NOT FACTOR INCOME FROM APROAD)
यह देश में आने वाली और देश से बाहर जाने वाली साधन आय का अन्तर होता है|
देश के सामान्य निवासियों द्वारा अन्य देशों को साधन सेवाएँ प्रदान करने के फलस्वरूप अर्जित आय और दुसरे के द्वारा साधन सेवाओं के लिए गए साधन भुगतान के अन्तर को विदेशों से शुद्ध साधन आय कहते है|
जैसे: भारत के सामान्य निवासी न केवल घरेलू सीमा में साधन आय अर्जित करते है बल्कि विदेशी भी भारत में साधन आय अर्जित करते है|
काम से आय+ संपत्ति से आय
परिभाषा :
CSO के अनुसार, देश के सामान्य निवासियों द्वारा शेष-विश्व को प्रदान की गई साधन सेवाओं से आय- शेष विश्व के द्वारा उन्हें प्रदान की गई सेवाओं से आय को विदेशों से शुद्ध साधन आय कहते है|