अकबरनामा द्वारा मुग़ल इतिहास को दी गयी कल्पनाएँ : अकबरनामा ने मुग़ल इतिहास को निम्लिखित कल्पनाएँ दी है |
(i) मुग़ल क्रिया और सत्ता लगभग पूरी तरह से एकमात्र बादशाह में निहित होती है |
(ii) शेष राज्य को बादशाह के आदेशों का अनुपालन करते हुए प्रदर्शित किया गया है।
(iii) कई भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्थाओं पर आधारित शाही संगठन प्रभावशाली ढंग से कार्य करने में सक्षम हुआ।
(iv) मुग़ल राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ इसके अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक रूप से अभिजात-वर्ग भी कहते हैं।
मुग़ल साम्राज्य में संचार एवं सुचनायें :
(i) मुग़ल साम्राज्य में दरबार की बैठकों की तिथि और समय के साथ "उच्च दरबार से समाचार" (अख़बार-ए-दरबार-ए-मुअल्ला) शीर्षक से दरबार की सभी कार्यवाहियों का विवरण तैयार होता था |
(ii) राजाओं और अभिजातों के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन का इतिहास लिखने के लिए यह सूचनाएँ बहुत उपयोगी होती हैं।
(iii) समाचार वृत्तांत और महत्त्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज शाही डाक के जरिए मुगल शासन के अधीन क्षेत्रों में एक छोर से दूसरे छोर तक जाते थे।
(iv) काफी दूर स्थित प्रांतीय राजधानियों से भी वृत्तांत बादशाह को कुछ ही दिनों में मिल जाया
करते थे।
(v) शाही उद्घोषणाओं को अधीनस्थ शासक नक़ल तैयार करवाकर संदेशवाहको के जरिए अपनी टिप्पणियाँ अपने स्वामियों के पास भेज देते थे |
(vi) सार्वजनिक समाचार के लिए पूरा साम्राज्य आश्चर्यजनक रूप से तीव्र सूचना तंत्र से जुड़ा हुआ था।
मुग़ल बादशाहों द्वारा घारण की गई पदवियाँ :
(i) शहंशाह (राजाओं का राजा)
(ii) जहाँगीर (विश्व पर कब्ज़ा करने वाला)
(iii) शाहजहाँ (विश्व का राजा)
आदि अपनाई गई ख़ास उपाधियाँ शामिल थीं।
मुग़ल साम्राज्य का ऑटोमन साम्राज्य से संबध :
(i) ऑटोमन साम्राज्य के साथ मुगलों ने अपने संबंध इस हिसाब से बनाए कि वे ऑटोमन नियंत्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों व तीर्थयात्रियों के स्वतंत्रा आवागमन को बरकरार रखवा सकें ।
(ii) मक्का और मदीना जैसे ऑटोमन क्षेत्र के साथ अपने संबंधों में मुग़ल बादशाह आमतौर पर धर्म एवं वाणिज्य के मुद्दों को मिलाने की कोशिश करता था |
(iii) लाल सागर के बंदरगाह अदन और मोखा को बहुमूल्य वस्तुओं के निर्यात को प्रोत्साहन देता था और इनकी बिक्री से अर्जित आय को उस इलाके के धर्मस्थलों व फकीरों में दान में बाँट देता था।
अरब भेजे जाने वाले धन से दुरूपयोग होने से औरंगजेब का रोक :
औरंगजेब को जब अरब भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग का पता चला तो उसने भारत में उसके वितरण का समर्थन किया क्योंकि उसका मानना था कि "यह भी वैसा ही ईश्वर का घर है जैसा कि मक्का |"
कंधार सफ़ावियों और मुग़लों के बीच झगड़े की जड़ था :
कंधार सफ़ावियों और मुग़लों के बीच झगड़े की जड़ इसलिए था क्योंकि -
(i) यह किला-नगर आरंभ में हुमायूँ के अधिकार में था जिसे 1595 में अकबर द्वारा पुनः जीत
लिया गया।
(ii) यद्यपि सफावी दरबार ने मुगलों के साथ अपने राजनयिक संबंध बनाए रखे तथापि कंधार पर यह दावा करता रहा।
(iii) 1613 में जहाँगीर ने शाह अब्बास के दरबार में कंधार को मुगल अधिकार में रहने देने की
वकालत करने के लिए एक राजनयिक दूत भेजा लेकिन यह शिष्टमंडल अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ।
(iv) 1622 की शीत ऋतू में एक फारसी सेना ने कंधार पर घेरा डाल दिया। मुगल रक्षक सेना पूरी तरह से तैयार नहीं थी। अतः वह पराजित हुई और उसे किला तथा नगर सफावियों को सौंपने पड़े।
अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता है। सुलह-ए-कुल में यूँ तो सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।
सुलह-ए-कुल-मुग़ल साम्राज्य के एकीकरण का स्रोत : सुलह-ए-कुल में यूँ तो सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे। यह निम्नलिखित प्रकार से मुग़ल साम्राज्य के एकीकरण का स्रोत था |
(i) मुगल इतिवृत्त साम्राज्य को हिंदुओं, जैनों, जरतुश्तियों और मुसलमानों जैसे अनेक भिन्न-भिन्न नृजातीय और धार्मिक समुदायों को समाविष्ट किए हुए साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
(ii) सभी तरह की शांति और स्थायित्व के स्रोत रूप में बादशाह सभी धार्मिक और नृजातीय समूहों से
उपर होता था, इनके बीच मध्यस्थता करता था, तथा यह सुनिश्चित करता था कि न्याय और शांति बनी रहे।
(iii) सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।
(iv) सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के जरिए लागू किया गया। मुगलों के अधीन अभिजात-वर्ग मिश्रित किस्म का था-अर्थात उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी शामिल थे।
सुलह-ए-कुल के आदर्श को बढ़ावा देने के लिए अकबर द्वारा उठाए गए दो कदम :
(i) अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर और 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया क्योंकि दोनों धार्मिक पक्षपात के प्रतिक थे |
(ii) साम्राज्य में सभी अधिकारीयों को प्रशासन में सुलह-ए-कुल के नियम का पालन करने का निर्देश दिए गए |
भूमि राजस्व - राजस्व का पारिश्रमिक :
अबुल फज़ल ने भूमि राजस्व को राजस्व का पारिश्रमिक बताया - क्योंकि हमने बर्नियर के विवरण में देखा कि मुग़ल साम्राज्य में भूमि का स्वामी सम्राट था जो इसे अपने अमीरों के बीच बाँटता था | इसके विनाशकारी प्रभाव भी था | लेकिन एक भी सरकारी दस्तावेज यह नहीं बाताते है की भूमि का स्वामी राज्य है | अबुल फजल भूमि राजस्व को राजस्व का पारिश्रमिक बताता है | यह राजस्व राजा द्वारा अपनी प्रजा की सुरक्षा के बदले में लिए जाते हैं न कि अपने स्वामित्व वाले भूमि के लगान के रूप में | वास्तव में न तो यह लगान था, न भूमि कर था, बल्कि यह उपज पर लगने वाला कर था |
जेसुइट शिष्टमंडल का एक सदस्य मान्सेरेट द्वारा अकबर के बारे में उसका अनुभव:
अकबर से भेंट करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए उसकी पहुँच कितनी सुलभ है इसके बारे में अतिशयोक्ति करना बहुत कठिन है। लगभग प्रत्येक दिन वह ऐसा अवसर निकालता है कि कोई भी आम आदमी अथवा अभिजात उससे मिल सके और बातचीत कर सके । उससे जो भी बात करने आता है उन सभी के प्रति कठोर न होकर वह स्वयं को मधुरभाषी और मिलनसार दिखाने का प्रयास करता है। उसे उसकी प्रजा के दिलो-दिमाग से जोड़ने में इस शिष्टाचार और भद्रता का बड़ा असाधारण प्रभाव था।
यूरोप को भारत के बारे में जानकारी:
यूरोप को भारत के बारे में जानकारी निम्न लोगों के भारत यात्रा से मिलती है -
(i) जेसुइट धर्म प्रचारकों की भारत यात्रा,
(ii) अन्य यात्रियों के द्वारा,
(iii) व्यापारियों और राजनयिकों के विवरणों से
यूरोपीय विवरण में मुग़ल दरबार / जेसुइट प्रचारकों का अकबर से नजदीकियाँ :
मुगल दरबार के यूरोपीय विवरणों में जेसुइट वृत्तांत सबसे पुराने वृत्तांत हैं। पंद्रहवीं शताब्दी के अंत
में भारत तक एक सीधे समुद्री मार्ग की खोज का अनुसरण करते हुए पुर्तगाली व्यापारियों ने तटीय नगरों में व्यापारिक केन्द्रों का जाल स्थापित किया। अकबर ने जेसुइट पादरियों को आमंत्रित करने के लिए एक दूतमंडल गोवा भेजा। पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वह वहाँ लगभग दो वर्ष रहा। लाहौर के मुगल दरबार में दो और शिष्टमंडल 1591 और 1595 में भेजे गए। जेसुइट विवरण व्यक्तिगत प्रेक्षणों पर आधारित हैं और वे बादशाह के चरित्र और सोच पर गहरा प्रकाश डालते हैं। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों को अकबर के सिंहासन के काफी नजदीक स्थान दिया जाता था। वे उसके साथ अभियानों में जाते, उसके बच्चों को शिक्षा देते तथा उसके फुरसत के समय में वे अकसर उसके साथ होते थे। जेसुइट विवरण मुगलकाल के राज्य अधिकारियों और सामान्य जन-जीवन के बारे में फारसी इतिहासों में दी गई सूचना की पुष्टि करते हैं।
ईसाई धर्म के विषय में अकबर की रूचि : अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने को बहुत उत्सुक था | अकबर ने जेसुइट पादरियों को आमंत्रित करने के लिए एक दूतमंडल गोवा भेजा। पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वह वहाँ लगभग दो वर्ष रहा।
जेसुइट प्रचारकों का भारत आगमन : पुर्तगाली राजा भी सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट) के धर्मप्रचारकों की मदद से ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में रुचि रखता था। सोलहवीं शताब्दी के दौरान भारत आने वाले जेसुइट शिष्टमंडल व्यापार और साम्राज्य निर्माण की इस प्रक्रिया का हिस्सा थे।