मुग़ल अभिजात वर्ग के विशिष्ट लक्षण :
(i) मुगलों के अधीन अभिजात-वर्ग मिश्रित किस्म का था-अर्थात उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी शामिल थे।
(ii) इस बात का ध्यान रखा कि कोई भी समूह इतना बड़ा न हो जाये कि राज्य के लिए खतरा बन जाये |
(iii) प्रत्येक अधिकारी का पद अथवा मान सब निश्चित था |
(iv) अभिजात सैनिक अभियानों में अपने सैनिक के साथ भाग लेते थे | वे प्रशासनिक कार्य करते थे |
(v) राज्य में ऊंचा स्तर होने के कारण अभीजात वर्ग काफी धनी तथा शक्तिशाली था | उसे समाज में बहुत अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी |
अभिजात वर्गों का मुग़ल बादशाह से संबंध :
(i) अभिजात वर्गों को दिए गए पद और पुरस्कार पूरी तरह से राजा के प्रति उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित थे |
(ii) अभिजात सैनिक अभियानों में अपने सैनिक के साथ भाग लेते थे | वे प्रशासनिक कार्य करते थे |
(iii) मुग़ल दरबार में भी अभिजात वर्गों के लोगों को पद और मान मिला हुआ था | दरबार में किसी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह शासक के कितना पास और दूर बैठा है।
(iv) एक ऐसा भी वर्णन मिलता है जो जेसुइट पादरी फादर मान्सेरेट द्वारा उल्लेखित है कि सत्ता के बेधड़क उपयोग से उच्च अभिजातों को रोकने के लिए राजा उन्हें दरबार में बुलाता था और निरंकुश आदेश देता था जैसे कि वे उसके दास हो |
(v) अभिजात-वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक जरिया थी।
(vi) सेवा में आने का इच्छुक व्यक्ति एक अभिजात के जरिए याचिका देता था जो बादशाह के सामने तजवीज प्रस्तुत करता था। अगर याचिकाकर्ता को सुयोग्य माना जाता था तो उसे मनसब प्रदान किया जाता था।
बादशाह द्वारा प्रजा के चार सत्वों की रक्षा : ये चार सत्व थे -
(i) जीवन (जन) (ii) धन (माल) (iii) सम्मान (नामस) (iv) विश्वास (दीन)
चार सत्वों की रक्षा के बदले में बादशाह की माँग :
(i) वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता था |
न्याय के विचार का दृश्य निरूपण : न्याय के विचार के लिए अनेक प्रतीकों की रचना दृश्य निरूपण के लिए किया गया -
(i) मुग़ल राजतन्त्र में न्याय को सर्वोतम सद्गुण माना जाता था |
(ii) सर्वाधिक पसंदीदा प्रतीकों में से एक था एक दुसरे के साथ शांतिपूर्ण बैठे शेर और बकरी का दृश्य, इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दिखाना था जहाँ दुर्बल तथा सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते थे।
मुग़ल साम्राज्य में राजधानियों की विशेषताएँ :
(i) मुगल साम्राज्य का हृदय-स्थल उसका राजधानी नगर था, जहाँ दरबार लगता था।
(ii) सोलहवीं और सत्रहवी शताब्दियों के दौरान मुग़लों की राजधानियाँ तेजी से स्थान्तरित होती रही |
(iii) बाबर के शासन के चार वर्षों के दौरान राजसी दरबार भिन्न-भिन्न स्थान पर लगाए जाते रहे।
(iv) कई बार सीमाओं की चौकसी के उदेश्य से मुग़ल राजधानियाँ स्थान्तरित होती रही | इसी कारण अकबर ने उत्तर-पश्चिम पर नियंत्रण के लिए लाहौर को राजधानी बनाया |
(v) फतेहपुर सीकरी को मुग़ल राजधानी इसलिए बनाया गया क्योंकि यह अजमेर जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था जहाँ शेख मुइनुदिन चिश्ती के दरगाह था |
(vi) 1648 में दरबार, सेना व राजसी ख़ानदान आगरा से नयी निर्मित शाही राजधानी शाहजहाँनाबाद चले गए। दिल्ली के प्राचीन रिहायशी नगर में शाहजहाँनाबाद एक नयी और शाही आबादी थी।
1570 के दशक में फतेहपुर सीकरी को मुग़ल राजधानी बनाए जाने का कारण :
1570 के दशक में उसने फतेहपुर सीकरी में एक नयी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। इस निर्णय का एक कारण यह था कि सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था, जहाँ शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल बन चुकी थी।
कोर्निश अभिवादन :
कोर्निश औपचारिक अभिवादन का एक ऐसा तरीका था जिसमें दरबारी दाएँ हाथ की तलहथी को ललाट पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाते थे। यह इस बात का प्रतीक था कि कोर्निश करने वाला व्यक्ति अपने इंद्रिय और मन के स्थल को हाथ लगाते हुए झुककर विनम्रता के साथ शाही दरबार में अपने को प्रस्तुत कर रहा है।
मुग़ल शाही दरबार के नियम :
(i) एक बार जब बादशाह सिंहासन पर बैठ जाता था तो किसी को भी अपनी जगह से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी और न ही कोई अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था |
(ii) दरबारी समाज में सामाजिक नियंत्रण का व्यवहार दरबार में मान्य संबोधन, शिष्टाचार तथा बोलने के ध्यानपूर्वक निर्धारित किए गए नियमों द्वारा होता था।
(iii) शिष्टाचार का जरा सा भी उल्लंघन होने पर ध्यान दिया जाता था और उस व्यक्ति को तुरंत ही दंडित किया जाता था।
(iv) जिस व्यक्ति के सामने ज्यादा झुककर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत
ज्यादा ऊँची मानी जाती थी।
(v) आत्मनिवेदन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत लेटना था। शाहजहाँ के शासनकाल में इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम तथा जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।
(vi) मुगल बादशाह के समक्ष प्रस्तुत होने वाले राजदूत से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अभिवादन के मान्य रूपों में से एक-या तो बहुत झुककर अथवा जमीन को चूमकर अथवा फारसी रिवाज के मुताबिक छाती के सामने हाथ बाँधकर-तरीके से अभिवादन करेगा।
मुग़ल बादशाह की दिनचर्या :
(i) बादशाह अपने दिन की शुरुआत सूर्योदय के समय कुछ व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था और इसके बाद वह पूर्व की ओर मुँह किए एक छोटे छज्जे अर्थात झरोखे में आता था। इसके नीचे लोगों की भीड़ (सैनिक, व्यापारी, शिल्पकार, किसान, बीमार बच्चों के साथ औरतें) बादशाह की एक झलक पाने के लिए इंतजार करती थी।
(ii) अकबर द्वारा शुरू की गई झरोखा दर्शन की प्रथा का उद्देश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति को और विस्तार देना था।
(iii) झरोखे में एक घंटा बिताने के बाद बादशाह अपनी सरकार के प्राथमिक कार्यों के संचालन हेतु सार्वजनिक सभा भवन (दीवान-ए आम) में आता था।
(iv) वहाँ राज्य के अधिकारी रिपोर्ट प्रस्तुत करते तथा निवेदन करते थे। दो घंटे बाद बादशाह दीवान-ए-ख़ास में निजी सभाएँ और गोपनीय मुद्दों पर चर्चा करता था।
(v) राज्य के वरिष्ठ मंत्री उसके सामने अपनी याचिकाएँ प्रस्तुत करते थे और कर अधिकारी हिसाब का ब्योरा देते थे। कभी-कभी बादशाह उच्च प्रतिष्ठित कलाकारों के कार्यों अथवा वास्तुकारों (मिमार) के द्वारा बनाए गए इमारतों के नक्शों को देखता था।