मुग़ल शब्द : सोलहवीं शताब्दी के दौरान यूरोपियों ने परिवार की इस शाखा के भारतीय शासकों का वर्णन करने के लिए मुग़ल शब्द का प्रयोग किया। मुग़ल नाम मंगोल से व्युत्पन्न हुआ है |
मुग़ल वंश : पितृपक्ष से मुग़ल तुर्की शासक तिमुरी से वंशज थे | पहला मुग़ल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेश खाँ का संबंधी था। वह तुर्की बोलता था और उसने मंगोलों का उपहास करते हुए उन्हें बर्बर गिरोह के रूप में उल्लिखित किया है।
मुग़ल साम्राज्य का विस्तार : मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक जहिरुदीन बाबर को उसके मध्य एशियाई स्वदेश फरगाना से उसके उजबेक प्रतिद्वंदियों में उसे भगा दिया | उसने सबसे पहले स्वयं को काबुल में स्थापित किया और फिर 1526 में अपने दल के सदस्यों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए क्षेत्रों और संसाधनों की खोज में वह भारतीय उपमहाद्वीप में और आगे की ओर बढ़ा। बाबर के उतराधिकारी नसीरूदीन हुमायूँ (1530-40, 1555-56) ने साम्राज्य की सीमाओं में विस्तार किया किंतु वह अफगान नेता शेरशाह सुर से पराजित हो गया जिसने उसे ईरान के सफावी शासक के दरबार में निर्वासित होने के लिए बाध्य कर दिया | 1555 में हुमायूँ ने सूरों को पराजित कर दिया किंतु एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद तीसरे मुग़ल शासक अकबर ने मुग़ल सीमाओं का विस्तार किया | इसे अपने समय का विशालतम, दृढ़तम और सबसे समृद्ध राज्य बनाकर सुदृढ़ भी किया। अकबर के बाद जहाँगीर (1605-27), शाहजहाँ (1628-58) और औरंगजेब (1658-1707) के रूप में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्वों वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी हुए। इनके अधीन क्षेत्रीय विस्तार जारी रहा यद्यपि इसकी गति काफी धीमी रही।
सोलहवी और सत्रहवीं सदी के मुग़ल प्रशासनिक व्यवस्था की विशेषताएँ :
(i) सोलहवीं और सत्राहवीं शताब्दियों के दौरान शाही संस्थाओं के ढाँचे का निर्माण हुआ। '
(ii) इनके अंतर्गत प्रशासन और कराधान के प्रभावशाली तरीके शामिल थे। मुग़ल शक्ति का सुस्पष्ट केंद्र दरबार था |
(iii) राजनीतिक संबंध गढ़े जाते थे, साथ ही श्रेणियाँ और हैसियतें परिभाषित की जाती थीं।
(iv) मुग़लों द्वारा शुरू की गई राजनीतिक व्यवस्था सैन्य शक्ति और उपमहाद्वीप की भिन्न-भिन्न परंपराओं को समायोजित करने की चेतन नीति के संयोजन पर आधारित थी।
मुग़ल साम्राज्य और दरबार के अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत : इतिवृत
मुग़ल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ये इतिवृत्त इस साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन की प्रायोजना के उद्देश्य से लिखे गए थे। इसी तरह इनका उद्देश्य उन लोगों को, जिन्होंने मुग़ल शासन का विरोध किया था, यह बताना भी था कि उनके सारे विरोधों का असपफल होना नियत है। मुग़ल इतिवृत्तों के लेखक निरपवाद रूप से दरबारी ही रहे। उन्होंने जो इतिहास लिखे उनके केंद्रबिंदु में थीं शासक पर केन्द्रित घटनाएँ, शासक का परिवार, दरबार व अभिजात, युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर (मुग़ल शासक औरंगजेब की एक पदवी) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक अकबरनामा, शाहजहाँनामा, आलमगीरनामा यह संकेत करते हैं कि इनके लेखकों की निगाह में साम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।
इतिवृतों के केंद्रबिंदु :
(i) शासक पर केन्द्रित घटनाएँ,
(ii) शासक का परिवार,
(iii) दरबार व अभिजात,
(iv) युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ
मुग़ल इतिवृतों की विशेषताएँ :
(i) मुग़ल इतिहास मुग़ल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए राजवंशीय इतिहास है |
(ii) ये घटनाओं का कालक्रम के अनुसार विवरण प्रस्तुत करते हैं |
(iii) मुग़लों के इतिहास लिखने के इच्छुक किसी भी लेखक के लिए ये इतिवृत स्रोत महत्वपूर्ण है |
(iv) एक ओर ये इतिवृत मुग़ल राज्य की संस्थाओं के बारे जानकारी देते हैं तो दूसरी ओर ये उनके उदेश्यों पर प्रकाश डालते है |
(v) ये ये भी बताते हैं कि किस प्रकार शाही विचारधारा रची और प्रचारित की जाती है |
मुग़ल दरबारी भाषा : मुग़लों की अपनी मातृभाषा तुर्की थी परन्तु मुग़ल दरबारी इतिहास फारसी में लिखे गए थे | मुग़ल चगताई मूल के थे | चगताई तुर्क स्वयं को चंगेज खां से सबसे बड़े पुत्र का
वंशज मानते थे | बाबर ने कविताएँ और अपने संस्मरण तुर्की भाषा में लिखे थे | अकबर ने फारसी भाषा को दरबार का मुख्य भाषा बनाया |
अबु फजल की भाषा शैली की विशेषताएँ :
(i) अबुल फज़ल की भाषा बहुत ही अलंकृत थी क्योंकि इस भाषा के पाठों को ऊँची आवाज़ में पढ़ा जाता था |
(ii) उसके भाषा में लय और कथन शैली को बहुत ही महत्व दिया जाता था |
(iii) उसकी भाषा भारतीय-फारसी शैली की थी जिसे मुग़ल दरबार से संरक्षण प्राप्त था |
मुग़लकाल के महत्वपूर्ण इतिहासकार या लेखक:
(i) अकबरनामा - अबुल अफ़ज
(ii) बादशाहनामा - अब्दुल हामिद लाहौरी
मुग़ल शासक अकबर द्वारा फारसी भाषा को दरबारी भाषा बनाए जाने का कारण :
(i) अकबर ने सोंच-समझकर फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया। संभवतया ईरान के साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक संपर्कों के साथ-साथ मुग़ल दरबार में पद पाने को इच्छुक ईरानी और मध्य एशियाई प्रवासियों ने बादशाह को इस भाषा को अपनाए जाने के लिए प्रेरित किया होगा।
(ii) फारसी को दरबार की भाषा का ऊँचा स्थान दिया गया तथा उन लोगों को शक्ति व प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनकी इस भाषा पर अच्छी पकड़ थी।
(iii) राजा, शाही परिवार के लोग और दरबार के विशिष्ट सदस्य यह भाषा बोलते थे। कुछ और आगे यह सभी स्तरों के प्रशासन की भाषा बन गई जिससे लेखाकारों, लिपिकों तथा अन्य अधिकारियों ने भी इसे सीख लिया।
(iv) सोलहवें और सत्रहवीं शताब्दियों के दौरान फारसी का प्रयोग करने वाले लोग उपमहाद्वीप के कई अलग-अलग क्षेत्रों से आए थे और वे अन्य भारतीय भाषाएँ भी बोलते थे अतः स्थानीय मुहावरों को समाविष्ट करने से फारसी का भी भारतीयकरण हो गया था।
(v) फारसी के हिदंवी के साथ पारस्परिक संपर्क से उर्दू के रूप में एक नयी भाषा निकल कर आई।
(vi) मुग़ल बादशाहों ने महाभारत और रामायण जैसे संस्कृत ग्रंथों को फारसी में अनुवादित किए जाने का आदेश दिया।
मुग़ल दरबार में पांडुलिपियों की तैयार करने की प्रक्रिया :
(i) मुग़ल भारत की सभी पुस्तके पांडुलिपियों के रूप में थीं अर्थात् वे हाथ से लिखी होती थीं। पांडुलिपि रचना का मुख्य केंद्र शाही किताबख़ाना था।
(ii) किताबख़ाना शब्द पुस्तकालय के रूप में अनुवादित किया जा सकता है, यह दरअसल एक लिपिघर था अर्थात ऐसी जगह जहाँ बादशाह की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता तथा नयी पांडुलिपियों की रचना की जाती थी।
(iii) पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले बहुत लोग शामिल होते थे।
(iv) कागज बनाने वालों की पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने, सुलेखकों की पाठ की नकल तैयार करने, कोफ़्तगरों की पृष्ठों को चमकाने के लिए इसके विशेषज्ञ होते थे |
(v) चित्रकारों की पाठ से दृश्यों को चित्रित करने के लिए और जिल्दसाजों की प्रत्येक पन्ने को इक्कठा कर उसे अलंकृत आवरण में बैठाया जाता था |
इतिहासकारों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य जिससे मुग़ल राजाओं पर दैवीय प्रकाश था :
दरबारी इतिहासकारों ने कई साक्ष्यों का हवाला देते हुए यह दिखाया कि मुगल राजाओं को सीधे ईश्वर से शक्ति मिली थी। उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य निम्नलिखित थे -
(i) उनके द्वारा वर्णित दंतकथाओं में से एक मंगोल रानी अलानकुआ की कहानी है जो अपने
शिविर में आराम करते समय सूर्य की एक किरण द्वारा गर्भवती हुई थी। उसके द्वारा जन्म लेने वाली संतान पर इस दैवीय प्रकाश का प्रभाव था।
(ii) इस प्रकार पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह प्रकाश हस्तांतरित होता रहा। ईश्वर से निःसृत प्रकाश को ग्रहण करने वाली चीजों के पदानुक्रम में मुग़ल राजत्व को अबलु फजल ने उच्चे स्थान पर
रखा।
(iii) इस विषय में वह प्रसिद्द ईरानी सूफी शिहाबद्दु सुहरावर्दी (1191 में मृत) के विचारों से प्रभावित था जिसने सर्वप्रथम इस प्रकार का विचार प्रस्तुत किया था। इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम यह दैवीय प्रकाश राजा में संप्रेषित होता था जिसके बाद राजा अपनी प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।
(iv) इतिवृत्तों के विवरणों का साथ देने वाले चित्रों ने इन विचारों को इस तरीके से संप्रेषित किया कि उन्होंने देखने वालों के मन-मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव डाला |
(v) सत्रहवीं शताब्दी से मुगल कलाकारों ने बादशाहों को प्रभामंडल के साथ चित्रित करना शुरू किया। ईश्वर के प्रकाश के प्रतीक रूप इन प्रभामंडलों को उन्होंने ईसा और वर्जिन मेरी के यूरोपीय
चित्रों में देखा था।
सुलह-ए-कुल : मुग़ल इतिवृत
अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता है। सुलह-ए-कुल में यूँ तो सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।
सुलह-ए-कुल के अनुसार मुग़ल साम्राज्य एवं बादशाह और विभिन्न धार्मिक समुदाय
(i) मुगल इतिवृत्त साम्राज्य को हिंदुओं, जैनों, जरतुश्तियों और मुसलमानों जैसे अनेक भिन्न-भिन्न नृजातीय और धार्मिक समुदायों को समाविष्ट किए हुए साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
(ii) सभी तरह की शांति और स्थायित्व के स्रोत रूप में बादशाह सभी धार्मिक और नृजातीय समूहों से
उपर होता था, इनके बीच मध्यस्थता करता था, तथा यह सुनिश्चित करता था कि न्याय और शांति बनी रहे।
(iii) सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।
(iv) सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के जरिए लागू किया गया। मुगलों के अधीन अभिजात-वर्ग मिश्रित किस्म का था-अर्थात उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी शामिल थे।