चीनी बौद्ध भिक्षु की भारत यात्रा : लगभग पाँचवी शताब्दी ईसवी चीनी बौद्ध भिक्षु फा-शिएन भारत आया था | उसने अपनी यात्रा वृतांत में वर्णन किया है कि अस्पृश्यों को सड़क पर चलते हुए करताल बजाकर अपने होने की सूचना देनी पड़ती थी जिससे अन्य जन उन्हें देखने के दोष से बच जाएँ। एक और चीनी तीर्थयात्री (श्वैन-त्सांग लगभग सातवीं शताब्दी ईसवी) कहता है कि वधिक और सफाई करने वालों को नगर से बाहर रहना पड़ता था।
स्त्रीधन : स्त्री को विवाह के समय जो उपहार मिलते थे, उनपर उसी का अधिकार होता था | उसे स्त्रीधन कहा जाता था | इसे उसकी संतान विरासत के रूप के प्राप्त कर सकती थी | इस इसके पति का कोई अधिकार नहीं होता था |
सामाजिक अभिनायक और उनका समाज में स्थान :
भारतीय उपमहाद्वीप में दास, भूमिहीन खेतिहर मजदूर, शिकारी, मछुआरे, पशुपालक, किसान, ग्राममुखिया, शिल्पकार, वणिक और राजा सभी का यहाँ विभिन्न हिस्सों में सामाजिक अभिनायक के रूप में उदभव हुआ |
समाज में उनका स्थान : समाज में उनका स्थान इस बात पर निर्भर करता था कि आर्थिक संसाधनों पर उनका कितना नियंत्रण है |
पैतृक संसाधनों पर नियंत्रण : मनुस्मृति के अनुसार पैतृक जायदाद का माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए किन्तु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था। स्त्रिायाँ इस पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं।
मनुस्मृति के अनुसार धन अर्जित करने के तरीके :
(1) विरासत (2) खोज (3) खरीद (4) विजय प्राप्त करके (5) निवेश (6) कार्य द्वारा (7) सज्जनों द्वारा दी गई भेंट स्वीकार करके |