परिवार और बंधुता के लिए प्रयुक्त शब्द :
संस्कृत ग्रंथों में ‘कुल’ शब्द का प्रयोग परिवार के लिए और ‘जाति’ का बांधवों के बड़े समूह के लिए होता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी भी कुल के पूर्वज इक्कठे रूप में एक ही वंश के माने जाते हैं।
पितृवंशिकता : पितृवंशिकता का अर्थ है वह वंश परंपरा जो पिता के पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है। पितृवंशिकता में पुत्रा पिता की मृत्यु के बाद उनके संसाधनों पर (राजाओं के संदर्भ में सिंहांसन भी) अधिकार जमा सकते थे।
मातृवंशिकता : मातृवंशिकता शब्द का इस्तेमाल हम तब करते हैं जहाँ वंश परंपरा माँ से जुड़ी होती है।
सबंधी या जातीय समूह :
एक ही परिवार के लोग भोजन और अन्य संसाधनों का आपस में मिल-बाँटकर इस्तेमाल करते हैं, एक साथ रहते और काम करते हैं और अनुष्ठानों को साथ ही संपादित करते हैं। परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते हैं जिन्हें हम सबंधी कहते हैं। तकनीकी भाषा का इस्तेमाल करें तो हम संबंधियों को जाति समूह कह सकते हैं।
अंतर्विवाह : अंतर्विवाह में वैवाहिक संबंध् समूह के मध्य ही होते हैं। यह समूह एक गोत्र कुल अथवा एक जाति या फिर एक ही स्थान पर बसने वालों का हो सकता है।
बहिर्विवाह : बहिर्विवाह गोत्र से बाहर विवाह करने को कहते हैं।
बहुपत्नी प्रथा : बहुपत्नी प्रथा एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परिपाटी है।
बहुपति प्रथा : बहुपति प्रथा एक स्त्री के अनेक पति होने की पद्धति है।
पितृवंश को आगे बढ़ाना :
पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण थे वहाँ इस व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था। पैतृक संसाधनों पर उनका कोई अधिकार नहीं था। अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना ही अपेक्षित था। इस प्रथा को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं और इसका तात्पर्य यह था कि ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम उम्र की कन्याओं और स्त्रिायों का जीवन बहुत सावधनी से नियमित किया जाता था जिससे ‘उचित’ समय और ‘उचित’ व्यक्ति से उनका विवाह किया जा सके | इसका प्रभाव यह हुआ कि कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया।
नए नगरों के उदभव से उत्पन्न जटिलताएं :
(i) सामाजिक जीवन जटिल हो गया |
(ii) नए नगरों में निकट और दूर से आकर लोग मिलते थे और वस्तुओं की खरीद फरोख्त के साथ-साथ नगरीय परिवेश में विचारों का भी आदान प्रदान होता था |
(iii) संभवतः इस वजह से आरंभिक विश्वासों और व्यवहारों पर प्रश्न चिन्ह लगाए गए ।
(iv) इस चुनौती के जवाब में ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार की |