अध्याय - समीक्षा:
- 1791 में बनारस में हिन्दू कॉलेज की स्थापना हुई |
- विलियम जोन्स 1783 में कलकता आये |
- जोन्स और कोल ब्रुक भारत के प्रति एक खास रवैया रखते थे, वे भारत और पश्चिमी दोनों की प्राचीन संस्कृतियों के प्रति गहरा आदर भाव रखते थे |
- अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1835 में पारित किया गया |
- विलियम जोन्स, हेनरी थॉमस कोलब्रुक तथा नेथैनियल होल्हेड ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की स्थापना किसने की |
- एशिया की भाषा और संस्कृति का गहन ज्ञान रखने वाले लोगों को प्राच्यवादी कहा जाता है |
- 1854 के नीतिपत्र के बाद अंग्रेजों ने कई अहम कदम उठाए।
- सरकारी शिक्षा विभागों का गठन किया गया ताकि शिक्षा संबंधी सभी मामलों पर सरकार का नियंत्रण स्थापित किया जा सके।
- विश्वविद्यालयी शिक्षा की व्यवस्था विकसित करने के लिए भी कदम उठाए गए।
- कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की जा रही थी |
- स्कूली शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के प्रयास भी किए गए।
- 1854 के वुड के नितिपत्र की मुख्य बातें थी - (i) आर्थिक क्षेत्र में शिक्षा का व्यावहारिक लाभ (ii) भारतियों को यूरोपीय जीवनशैली से अवगत कराना | (iii) यूरोपीय शिक्षा से भारतीयों के नैतिक चरित्र का उत्थान करना | (iv) शासन के लिए आवश्यक निपुणता पैदा करना |
- 1813 तक ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में प्रचारक गतिविधियों के विरुद्ध थी।
- कंपनी को भय था कि प्रचारकों की गतिविधियों की वजह से स्थानीय जनता के बीच असंतोष पैदा होगा |
- अंग्रेजों को डर था कि लोग भारत में अंग्रेजों की उपस्थिति को शक की नज़र से देखने लगेंगे।
- सरकार को लगता था कि स्थानीय रीति-रिवाजों, व्यवहारों, मूल्य-मान्यताओं और धर्मिक विचारों से किसी भी तरह की छेड़छाड़ "देशी" लोगों को भड़का सकती है।
- प्रचारकों का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य लोगों के नैतिक चरित्र में सुधार लाना होता है और नैतिकता उत्थान केवल ईसाई शिक्षा के जरिए ही संभव है |
- महात्मा गांधी एक ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे जो भारतीयों के भीतर प्रतिष्ठा और स्वाभिमान का भाव पुनर्जीवित करे।
- महात्मा गाँधी का कहना था कि पश्चिमी शिक्षा मौखिक ज्ञान की बजाय केवल पढ़ने और लिखने पर केन्द्रित है। उसमें पाठ्यपुस्तकों पर तो जोर दिया जाता है लेकिन जीवन अनुभवों और व्यावहारिक ज्ञान की उपेक्षा की जाती है।
- गाँधी का तर्क था कि शिक्षा से व्यक्ति का दिमाग और आत्मा विकसित होनी चाहिए। उनकी राय में केवल साक्षरता - यानी पढ़ने और लिखने की क्षमता पा लेना ही शिक्षा नहीं होती। इसके लिए तो लोगों को हाथ से काम करना पड़ता है, हुनर सीखने पड़ते हैं और यह जानना पड़ता है कि विभिन्न चीजें किस तरह काम करती हैं। इससे उनका मस्तिष्क और समझने की क्षमता, दोनों विकसित होंगे। वे शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा के पक्षधर थे |
- शांतिनिकेतन की स्थापना 1901 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी |
- टैगोर का मानना था कि सृजनात्मक शिक्षा को केवल प्राकृतिक परिवेश में ही प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- इसीलिए उन्होंने कलकत्ता से 100 किलोमीटर दूर एक ग्रामीण परिवेश में अपना स्कूल खोलने का फैसला लिया। उन्हें यह जगह निर्मल शांति से भरी (शांतिनिकेतन) दिखाई दी जहाँ प्रकृति के साथ जीते हुए बच्चे अपनी स्वाभाविक सृजनात्मक मेध को और विकसित कर सकते थे।
- टैगोर को ऐसे लगता था मानो स्कूल कोई जेल हो, क्योंकि वहाँ बच्चे मनचाहा कभी नहीं कर पाते थे।
- कलकत्ता के अपने स्कूल जीवन के अनुभवों ने शिक्षा के बारे में टैगोर के विचारों को काफी प्रभावित किया। यही कारण था कि रविंद्रनाथ टैगोर को शांति निकेतन की स्थापना करनी पड़ी |
- महात्मा गाँधी अंग्रेजी भाषाओँ के बजाय भारतीय भाषाओँ में ही शिक्षा चाहते थे | और वे पश्चिमी सभ्यता और मशीनों व प्रौद्योगिकी की उपासना के कट्टर आलोचक थे। जबकि टैगोर आधुनिक पश्चिमी सभ्यता और भारतीय परंपरा के श्रेष्ठ तत्वों का सम्मिश्रण चाहते थे।
- अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1870 में लागु किया गया |