अतिरिक्त - प्रश्न:
प्रश्न: जोन्स और कोल ब्रुक भारत के प्रति क्या रवैया रखते थे ?
उत्तर: जोन्स और कोल ब्रुक भारत के प्रति एक खास रवैया रखते थे, वे भारत और पश्चिमी दोनों की प्राचीन संस्कृतियों के प्रति गहरा आदर भाव रखते थे | उनका मानना था कि भारतीय सभ्यता प्राचीन काल में अपने वैभव के शिखर पर थी परन्तु बाद में उसका पतन होता चला गया |
प्रश्न: 19 वीं सदी के शुरुआत में ही बहुत सारे अंग्रेज ऑफिसर शिक्षा के प्राच्यवादी दृष्टिकोण की आलोचना क्यों करने लगे थे ?
उत्तर: उनका कहना था कि पूर्वी समाजों का ज्ञान त्रुटियों से भरा हुआ और अवैज्ञानिक है उनके मुताबिक पूर्वी साहित्य अगंभीर और सतही था | इसलिए उन्होंने दलील दी कि अंग्रेजों को अरबी और संस्कृत भाषा साहित्य के अध्ययन को बढ़ावा देने पर इतना खर्चा नहीं करना चाहिए |
प्रश्न: 1854 के वुड के नितिपत्र में कौन सी बात प्राच्यवादी ज्ञान का विरोधी थी ?
उत्तर: इस नितिपत्र में कहा गया था कि हमें जोर देकर यह बात कहनी चाहिए कि भारत में हम जिस शिक्षा का प्रसार करना चाहते हैं उस शिक्षा का लक्ष्य यूरोप की
श्रेष्ठतर कलाओं, सेवाओं, दर्शन और साहित्य यानी यूरोपीय ज्ञान का प्रसार करना है।
प्रश्न: 1854 के नितिपत्र के बाद अंग्रेजों के शिक्षा के लिए कौन-कौन से कदम उठाए ?
उत्तर: 1854 के नीतिपत्र के बाद अंग्रेजों ने कई अहम कदम उठाए।
(i) सरकारी शिक्षा विभागों का गठन किया गया ताकि शिक्षा संबंधी सभी मामलों पर
सरकार का नियंत्रण स्थापित किया जा सके।
(ii) विश्वविद्यालयी शिक्षा की व्यवस्था विकसित करने के लिए भी कदम उठाए गए।
(iii) कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की जा रही थी।
(iv) स्कूली शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के प्रयास भी किए गए।
प्रश्न: 1854 के वुड के नितिपत्र की मुख्य बातें क्या थी ?
उत्तर:
(i) आर्थिक क्षेत्र में शिक्षा का व्यावहारिक लाभ
(ii) भारतियों को यूरोपीय जीवनशैली से अवगत कराना |
(iii) यूरोपीय शिक्षा से भारतीयों के नैतिक चरित्र का उत्थान करना |
(iv) शासन के लिए आवश्यक निपुणता पैदा करना |
प्रश्न: 1813 तक ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में प्रचारक गतिविधियों के विरुद्ध थी। क्यों ?
उत्तर:
(i) कंपनी को भय था कि प्रचारकों की गतिविधियों की वजह से स्थानीय जनता के बीच असंतोष पैदा होगा |
(ii) लोग भारत में अंग्रेजों की उपस्थिति को शक की नज़र से देखने लगेंगे।
(iii) सरकार को लगता था कि स्थानीय रीति-रिवाजों, व्यवहारों, मूल्य-मान्यताओं और धर्मिक विचारों से किसी भी तरह की छेड़छाड़ "देशी" लोगों को भड़का सकती है।
प्रश्न: ब्रिटिश शिक्षा से पहले भारत में शिक्षा किस प्रकार दी जाती थी ?
उत्तर: ईसाई प्रचारक विलियम एडम के अनुसार "बंगाल और बिहार में एक लाख से ज्यादा पाठशालाएँ हैं। ये बहुत छोटे-छोटे केंद्र थे जिनमें आम तौर पर 20 से ज्यादा विद्यार्थी नहीं होते थे। ये पाठशालाएँ सम्पन्न लोगों या स्थानीय समुदाय द्वारा चलाई जा रही थीं। कई पाठशालाएँ स्वयं गुरु द्वारा ही प्रारम्भ की गई थीं। शिक्षा का तरीका काफी लचीला था। आज आप जिन चीजों की स्कूलों से उम्मीद करते हैं उनमें से कुछ चीजे उस समय की पाठशालाओं में भी मौजूद थीं। बच्चों की फीस निश्चित नहीं थी। छपी हुई किताबें नहीं होती थीं, पाठशाला की इमारत अलग से नहीं बनाई जाती थी, बेंच और कुर्सियां नहीं होती थीं, ब्लैक बोर्ड नहीं होते थे, अलग से कक्षाएँ लेने, बच्चों की हाजिरी लेने का कोई इंतजाम नहीं होता था, सालाना इम्तेहान और नियमित समय-सारणी जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। कुछ पाठशालाएँ बरगद की छाँव में ही चलती थीं तो कई गाँव की किसी दुकान या मंदिर के कोने में या गुरु के घर पर ही बच्चों को पढ़ाया जाता था। बच्चों की फीस उनके माँ-बाप की आमदनी से तय होती थी: अमीरों को ज्यादा और गरीबों को कम फीस देनी पड़ती थी। शिक्षा मौखिक होती थी और क्या पढ़ाना है यह बात विद्यार्थियों की जरूरतों को देखते हुए गुरु ही तय
करते थे। विद्यार्थियों को अलग कक्षाओं में नहीं बिठाया जाता था। सभी एक जगह, एक साथ बैठते थे।"
प्रश्न: महात्मा गाँधी किस प्रकार के शिक्षा के पक्षधर थे ?
उत्तर: महात्मा गांधी एक ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे जो भारतीयों के भीतर प्रतिष्ठा और स्वाभिमान का भाव पुनर्जीवित करे। महात्मा गाँधी का कहना था कि पश्चिमी शिक्षा मौखिक ज्ञान की बजाय केवल पढ़ने और लिखने पर केन्द्रित है। उसमें पाठ्यपुस्तकों पर तो जोर दिया जाता है लेकिन जीवन अनुभवों और व्यावहारिक ज्ञान की उपेक्षा की जाती है।
प्रश्न: महात्मा गाँधी ऐसा क्यों मानते थे कि अंग्रेजी शिक्षा भारतियों को अपाहिज बना देती है ?
उत्तर: गाँधी का तर्क था कि शिक्षा से व्यक्ति का दिमाग और आत्मा विकसित होनी चाहिए। उनकी राय में केवल साक्षरता - यानी पढ़ने और लिखने की क्षमता पा लेना ही शिक्षा नहीं होती। इसके लिए तो लोगों को हाथ से काम करना पड़ता है, हुनर सीखने पड़ते हैं और यह जानना पड़ता है कि विभिन्न चीजें किस तरह काम करती हैं। इससे उनका मस्तिष्क और समझने की क्षमता, दोनों विकसित होंगे। वे शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा के पक्षधर थे |
प्रश्न: रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना क्यों की ?
उत्तर: टैगोर का मानना था कि सृजनात्मक शिक्षा को केवल प्राकृतिक परिवेश में ही प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसीलिए उन्होंने कलकत्ता से 100 किलोमीटर दूर एक ग्रामीण परिवेश में अपना स्कूल खोलने का फैसला लिया। उन्हें यह जगह निर्मल शांति से भरी (शांतिनिकेतन) दिखाई दी जहाँ प्रकृति के साथ जीते हुए बच्चे अपनी स्वाभाविक सृजनात्मक मेध को और विकसित कर सकते थे। टैगोर को ऐसे लगता था मानो स्कूल कोई जेल हो, क्योंकि वहाँ बच्चे मनचाहा कभी नहीं कर पाते थे। कलकत्ता के अपने स्कूल जीवन के अनुभवों ने शिक्षा के बारे में टैगोर के विचारों को काफी प्रभावित किया। यही कारण था कि रविंद्रनाथ टैगोर को शांति निकेतन की स्थापना करनी पड़ी |
प्रश्न: रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गाँधी के शिक्षा के बारे में कमोबेश एक जैसी राय थी लेकिन दोनों के बीच क्या अंतर था ?
उत्तर: महात्मा गाँधी अंग्रेजी भाषाओँ के बजाय भारतीय भाषाओँ में ही शिक्षा चाहते थे | और वे पश्चिमी सभ्यता और मशीनों व प्रौद्योगिकी की उपासना के कट्टर आलोचक थे। जबकि टैगोर आधुनिक पश्चिमी सभ्यता और भारतीय परंपरा के श्रेष्ठ तत्वों का सम्मिश्रण चाहते थे। इसलिए उन्होंने शांतिनिकेतन में कला, संगीत और नृत्य के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर भी जोर दिया।
प्रश्न: रविंद्रनाथ टैगोर किस प्रकार कि शिक्षा के पक्षधर थे ?
उत्तर: टैगोर और महात्मा गाँधी शिक्षा के बारे में कमोबेश एक जैसी राय रखते थे। परन्तु दोनों में अन्तर था | टैगोर आधुनिक पश्चिमी सभ्यता और भारतीय परंपरा के श्रेष्ठ तत्वों का सम्मिश्रण चाहते थे। उन्होंने शांतिनिकेतन में कला, संगीत और नृत्य के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर भी शोर दिया।
प्रश्न: टैगोर और महत्मा गाँधी के शिक्षा के बारे के क्या राय थे ?
उत्तर: बहुत सारे मामलों में टैगोर और महात्मा गाँधी शिक्षा के बारे में कमोबेश एक जैसी राय रखते थे। लेकिन दोनों के बीच फर्क भी थे। गाँधी जी पश्चिमी सभ्यता और मशीनों व प्रौद्योगिकी की उपासना के कट्टर आलोचक थे। वे स्वदेशी के पक्षधर थे जबकि टैगोर आधुनिक पश्चिमी सभ्यता और भारतीय परंपरा के श्रेष्ठ तत्वों का सम्मिश्रण चाहते थे।