अतिरिक्त - प्रश्न:
प्रश्न: तोमर राजपूतों के काल में दिल्ली की किस साम्राज्य की राजधानी बनी?
उत्तर: पहले पहल तोमर राजपूतों के काल में दिल्ली किस साम्राज्य की राजधानी बनी| बारहवीं सदी के मध्य में तोमरों को अजेमर के चौहानों (जिन्हें चाहमान नाम से भी जाना जाता हैं) ने परास्त किया| तोमरों और चौहानों के राज्यकाल में ही दिल्ली वाणिज्य का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया| इस शहर में बहुत सारे समृद्धिशाली जैन व्यापारी रहते थे जिन्होंने अनेक मदिंरों का निर्माण करवाया| यहाँ देहालिवाल कहे जाने वाले सिक्के भी ढाले जाते थे जो काफी प्रचलन में थे|
प्रश्न: दिल्ली कब राजधानी बनी?
उत्तर: तेरहवीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और इसके साथ दिल्ली एक ऐसी राजधानी में बदल गई जिसका नियंत्रण इस उपमहाद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर फ़ैला था|
प्रश्न: तोमर राजपूत वंश का दिल्ली पर कब का शासक रहा?
उत्तर:
तोमर आरंभिक बारहवी शताब्दी - 1165
अनंगपाल 1130 - 1145
चौहान 1165 - 1192
पृथ्वीराज चौहान 1175 - 1192
प्रश्न: पांडुलिपि को तैयार करने के चारण क्या - क्या हैं?
उत्तर: पांडुलिपि को तैयार करने के चार चरण:
1. कागज़ तैयार करना|
2. लेखन - कार्य|
3. महत्त्वपूर्ण शब्दों और अनुच्छेदों की और ध्यान आकर्षित करने के लिए सोने को पिघला कर उसका प्रयोग|
4. जिल्द तैयार करना|
प्रश्न: दिल्ली में होने कुछ इतिहासिक ध्यान रखने योग्य बाते?
उत्तर:
1. तवारीख के लेखक नगरों में (विशेषकर दिल्ली में) रहते थे, गाँव में शायद ही कभी रहते हो|
2. वे अक्सर अपने इतिहास सुलतानों के लिए, उनसे शेर सारे इनाम - इकराम पाने की आशा में लिखा करते थे|
3. ये लेखक अकसर शासकों को जन्मसिद्ध अधिकार और लिंगभेद पर आधारित 'आदर्श' समाज व्यवस्था बनाए रखने की सलाह देते थे| उनके विचारों से सारे लोग सहमत नहीं होते थे|
प्रश्न: बंदगाँ किसे कहते हैं?
उत्तर: दिल्ली के आरंभिक सुलतान, विशेषकर इल्तुतमिश, सामंतों और ज़मीदारों के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदार नियुक्त करना अधिक पसंद करते थे| इन गुलामों को फ़ारसी में बंदगाँ कहा जाता हैं तथा इन्हें सैनिक सेवा के लिए ख़रीदा जाता था|



