अध्याय - समीक्षा:
- बारहवीं सदी के मध्य में तोमरों को अजेमर के चौहानों (जिन्हें चाहमान नाम से भी जाना जाता हैं) ने परास्त किया|
- तेरहवीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्ल्नत की स्थापना हुई और इसके साथ दिल्ली एक ऐसी राजधानी में बदल गई जिसका नियंत्रण इस उपमहाद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर फैला था|
- हालाँकि अभिलेख, सिक्कों और स्थापत्य (भवन निर्माण कला) के माध्यम से काफी सूचना मिलाती हैं, मगर और भी महत्त्वपूर्ण वे 'इतिहास', तारीख (एकवचन)/तवारीख (बहुवचन) हैं जो सुलतानों के शासनकाल में, प्रशासन की भाषा फ़ारसी में लिखे गए थे|
- सन 1236 में सुलतान इल्तुतमिश की बेटी रज़िया सिहांसन पर बैठी| उस युग के इतिहासकार मिन्हाज - ए - सिराज ने स्वीकार किया हैं|
- दरबारी जन भी उसके स्वतंत्र रूप में मान्यता नहीं दे पा रहा था| दरबारी जन भी उसके स्वतंत्र रूप से शासक करने की कोशिशों से प्रसन्न नहीं थे| सन 1240 में उसे सिंहासन से हटा दिया गया|
- शहरों से संबद्ध, लेकिन उनसे सूर भीतरी प्रदेशों पर उनका नियंत्रण ण के बराबर था उनकी इसलिए उन्हें आवश्यक सामग्री, रसद आदि के लिए व्यापार, कर या लूटमार पर ही निर्भर रहना पड़ता था|
- दिल्ली से सुदूर बंगाल और सिंध के गैरिसन शहरों का नियंत्रण बहुत ही कठिन था|
- बारहवीं सदी के आखिरी दशक में बनी कुव्वत अल - इस्लाम मसजिद तथा उसकी मीनार| यह जामा मसजिद दिल्ली के सुल्तानों द्व्रारा बनाए गए सबसे पहले शहर में स्थित हैं| इतिहास में इस शहर को देहली - ए कुहना (पुराना शहर) कहा गया हैं|
- दिल्ली के आरंभिक सुलतान, विशेषकर इल्तुतमिश, सामंतों और ज़मीदारों के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदारों तथा प्रशासकों की जरूरत थी| दिल्ली के आर्न्ब्हीं सुलतान, विशेषकर इल्तुतमिश, सामंतों और ज़मीदारों के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदार नियुक्त करना अधिक पसनद करते थे| इन गुलामों को फ़ारसीमें बंदगाँ कहा जाता हैं|
- चंगेज़ खान के नेतृत्व में मंगोलों ने 1219 में उत्तर - पूर्वी इरान में ट्रांसआॉकससियाना (आधुनिक उज़बेकिस्तान) पर हमला किया और इसके शीघ्र बाद ही दिल्ली सल्तनत को उनका धावा झेलना पड़ा|
- तुगलक़ वंश के बाद 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर सैयद तथा लोदी वंशों का राज्य रहा|