अध्याय समीक्षा :
- अनेक विधियों द्वारा मिश्रण के घटकों को अलग किया जाता है | जैसे चाय बनाते समय चाय की पत्तियों को द्रव से चालनित्र (छलनी) द्वारा पृथक किया जाता है |
- सस्य कर्तन के समय अनाज को डंडियों से पृथक करते हैंजबकि मक्खन को पृथक करने के लिए दूध् या दही का मंथन किया जाता है |
- कई बार हम मिश्रण से हानिकारक तथा अनुपयोगी पदार्थ को पृथक करते है और कभी-कभी हम उपयोगी पदार्थों को भी पृथक करते हैं जिनकी हमें अलग से उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
- पृथक किए जाने वाले पदार्थों के कणों के आमाप अथवा द्रव्य भिन्न हो सकते हैं। ये ठोस, द्रव या गैस भी हो सकते हैं। इसलिए हम किन्हीं पदार्थों के ऐसे मिश्रण का पृथक्करण करते हैं जिनके गुणधर्मों में अत्यधिक भिन्नता है।
- पृथक्करण की विधियाँ - हस्तचयन, थ्रेसिंग, निष्पावन, चालन, अवसादन, निस्तारण तथा निस्यंदन, वाष्पन आदि हैं |
- द्रव तथा उसमें अविलेय पदार्थ के अवयवों को निस्यंदन के उपयोग से पृथक किया जा सकता है।
- किसी द्रव को उसी वाष्प में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं। वाष्पन की विधि का उपयोग द्रव में घुले ठोस को पृथक करने में किया जा सकता है।
- जिस विलयन में कोई पदार्थ और अधिक न घुल सके वह उस पदार्थ का संतृप्त विलयन होता है।
- किसी पदार्थ के विलयन को गर्म करने पर उसमें और अधिक पदार्थ घोला जा सकता है।
- जल विलेय पदार्थों की विभिन्न मात्राएँ घोलता है।
- अनाज से भूसा और पत्थरों को हस्त चयन द्वारा पृथक किया जा सकता है।
- भूसा, अनाज के भारी बीजों से निस्पावन विधि द्वारा पृथक किया जाता है।
- किसी मिश्रण के कणों की आमाप में अंतर का उपयोग चालन तथा निस्यंदन प्रक्रियाओं द्वारा पृथक्करण में किया जाता है।
- रेत और जल के मिश्रण में, रेत के भारी कण तली में बैठ जाते हैं और निस्तारण की विधि द्वारा जल को पृथक किया जा सकता है।