उत्तक:
एक ही प्रकार की संरचना और कार्य करने वाले कोशिकाओं के समूह को उत्तक कहते हैं |
एपिडर्मिस (Epidermis):
कोशिकाओं की सबसे बाहरी परत को एपिडर्मिस कहते हैं | समान्यत: यह कोशिकाओं की एक परत की बनी होती हैं | शुष्क स्थानों पर मिलने वाले पौधों में एपिडर्मिस मोटी हो सकती है |
क्योंकि एपीडर्मल कोशिकाओं का उत्तरदायित्व रक्षा करने का है, अत: इसकी कोशिकाएँ बिना किसी अंतर्कोशिकीय स्थान के अछिन्न परत बनाती हैं | अधिकांश एपीडर्मल कोशिकाएँ अपेक्षाकृत चपटी होती हैं | सामान्यत: उनकी बाह्य तथा पार्श्व भित्तियाँ उनकी आंतरिक भित्तियों से मोटी होती हैं |
गुण (Features):
(i) यह जल की हानि कम करके पादपों की रक्षा करती हैं |
(ii) यह पौधे के सभी भागों की रक्षा करती है क्योंकि पौधे की पूरी सतह एपिडर्मिस से ढकी रहती है |
(iii) जड़ों की एपीडर्मल कोशिकाएँ पानी को सोंखने का कार्य करती हैं |
(iv) एपीडर्मल कोशिका पौधों की बाह्य सतह पर प्राय: एक मोम जैसी जल प्रतिरोधी परत बनाती है |
(v) यह जल प्रतिरोधी परत, जल के हानि के विरुद्ध यांत्रिक आधात तथा परजीवी कवक के प्रवेश से पौधों की रक्षा करती है |
पौधों में एपिडर्मिस का कार्य (Functions Of Epidermis in plants):
(i) यह जल की हानि कम करके पादपों की रक्षा करती हैं |
(ii) यह जल प्रतिरोधी परत, जल के हानि के विरुद्ध यांत्रिक आधात तथा परजीवी कवक के प्रवेश से पौधों की रक्षा करती है |
(iii) इसकी जेली जैसी पदार्थ जल प्रतिरोधी परत का निर्माण करती है |
(iv) जड़ों की एपीडर्मल कोशिकाएँ पानी को सोंखने का कार्य करती हैं |
जड़ों में एपिडर्मिस का कार्य (Functions of Epidermis in roots):
जड़ों की एपीडर्मल कोशिकाएँ पानी को सोंखने का कार्य करती हैं | साधारणत: उनमें बाल जैसे प्रवर्धन होते हैं, जिससे जड़ों की कुल अवशोषण सतह बढ़ जाती है तथा उनकी पानी सोंखने की क्षमता में वृद्धि होती है |
मरुस्थलीय पौधों में एपिडर्मिस की भूमिका (Role of Epidermis in Desert Plants):
मरुस्थलीय पौधों की बाहरी सतह वाले एपिडर्मिस में क्यूटीन नामक रासायनिक पदार्थ ला लेप होता है जो जल अवरोधक का कार्य करता है | मरुस्थलीय पौधों को जल की अधिक आवश्यकता होती है यह रासायनिक पदार्थ बाहरी परत से जल के ह्रास को रोकता है |
क्यूटीन (Cutin): यह एक रासायनिक पदार्थ है जिसमें जल अवरोधक का गुण होता है | यह मुख्यत: मरुस्थलीय पौधों की एपिडर्मिस में पाया जाता है |
सुबेरिन (Suberin): सुबरिन एक रासायनिक पदार्थ है जो वृक्ष के बाहरी सुरक्षात्मक परत या वृक्षों के छालों में पाया जाता है और यह इन छालों को जल और वायु के लिए अभेद बनाता है |
रंध्र (Stomata): पत्तियों की सतह पर बहुत सी ब्बहुत सी छोटी छोटी छिद्र पाए जाते है इन छोटी-छोटी छिद्रों को रंध्र कहते हैं |
रक्षी कोशिकाएँ : स्टोमेटा को दो वृक्क के आकार की कोशिकाएँ घेरे रहती हैं, जिन्हें रक्षी कोशिकाएँ कहते हैं | ये कोशिकाएँ वायुमंडल से गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं |
रक्षक परत (Protective Layer): Asजैसे-जैसे वृक्ष की आयु बढती है, उसके बाह्य सुरक्षात्मक उतकों में कुछ परिवर्तन होता है | एक दुसरे विभज्योतक की पट्टी ताने के एपिडर्मिस का स्थान ले लेती है | बाहरी सतह की कोशिकाएँ इस सतह से अलग हो जाती हैं | यह पौधों पर बहुत परतों वाली मोटी छल का निर्माण करती हैं |
स्टोमेटा का कार्य (Functions of stomata):
(i) वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी स्टोमेटा के द्वारा होती है |
(ii) गैसों का आदान-प्रदान भी स्टोमेटा के द्वारा ही होता हैं |
वाष्पोत्सर्जन (Transpiration): Thisजल वाष्प के रूप में जल का ह्रास होने की प्रक्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं |
रक्षी कोशिकाओं का कार्य (Function of guard Cells):
रक्षी कोशिकाएँ वायुमंडल से गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए आवश्यक है |