ध्वनि श्रव्यता का परास/परिसर/सीमा (Range of Hearing Sound):
हम सभी प्रकार की ध्वनियों को नहीं सुन सकते हैं |
ध्वनि तीन प्रकार की होती है |
(1) अवश्रव्य ध्वनि (Infrasound) : 20 Hz से कम आवृति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं |
अवश्रव्य ध्वनि को सुनने वाले जन्तु :
(i) राइनोसिरस (गैंडा) : राइनोसिरस (गैंडा) 5 Hz तक की आवृत्ति की अवश्रव्य ध्वनि का उपयोग करके संपर्क स्थापित करता है। व्हेल तथा हाथी अवश्रव्य ध्वनि परिसर की ध्वनियाँ उत्पन्न करते हैं।
(ii) कुछ जन्तु जैसे चूहे, साँप जो धरती में रहते है भूकंप के समय परेशान हो जाते हैं | ऐसा इसलिए होता है कि जब भूकंप की मुख्य प्रघाती तरंगे आने से पहले एक निम्न आवृति की अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न होता है | जो जंतुओं को सावधान कर देते हैं |
(2) श्रव्य ध्वनि (audible sound) : वह ध्वनि जिसकों मनुष्य अपने कानों से सहज सुन सकता है उसे श्रव्य ध्वनि कहते हैं | इसका परिसर 20 Hz से 20 kHz या 20000 Hz होता है | मनुष्य इस सीमा से कम की ध्वनि को सुन नहीं सकता है और इस सीमा से अधिक ध्वनि अर्थात 20 kHz या 20000 Hz की आवृति की ध्वनि को सहन नहीं कर सकता है |
(3) पराध्वनि (Ultrasound) : 20 kHz या 20000 Hz से अधिक आवृति की ध्वनि को पराध्वनि (utrasound) कहते है |
ध्वनि बूम (Sonic Boom): जब ध्वनि उत्पादक स्रोत ध्वनि की चाल से अधिक तेजी से गति करती हैं। तो ये वायु में प्रघाती तरंगे उत्पन्न करती हैं इस प्रघाती तरंगों में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। इस प्रकार की प्रघाती तरंगों से संबद्ध वायुदाब में परिवर्तन से एक बहुत तेज और प्रबल ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे ध्वनि बुम कहते है।
पराध्वनि उत्पन्न करने वाले कुछ जन्तु :
- डॉल्फिन, चमगादड़ और पॉरपॉइज पराध्वनि उत्पन्न करते हैं।
- कुछ प्रजाति के शलभों (moths) के श्रवण यंत्रा अत्यंत सुग्राही होते हैं। ये शलभ चमगादड़ों द्वारा उत्पन्न उच्च आवृत्ति की चींचीं की ध्वनि को सुन सकते हैं। उन्हें अपने आस-पास उड़ते हुए चमगादड़ के बारे में जानकारी मिल जाती है और इस प्रकार स्वयं को पकड़े जाने से बचा पाते हैं।
- चूहे भी पराध्वनि उत्पन्न करके कुछ खेल खेलते हैं।