कार्य का समीकरण :
गणितीय भाषा में कार्य को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है |
W = F . s . cos θ
जहाँ F = बल, s = विस्थापन और θ बल सदिश एवं विस्थापन सदिश के बीच का कोण है |
इसको समझने के लिए तीन स्थितयाँ हैं |
(A) स्थिति A : जब बल सदिश एवं विस्थापन सदिश एक ही दिशा में हो तो उनके बीच का कोण θ = 0० होता है | इस स्थिति में कार्य धनात्मक होता है |
(B) स्थति B : जब बल सदिश एवं विस्थापन सदिश एक दुसरे के विपरीत हो तो उनके बीच का कोण θ = 180० होता है | इस स्थति में कार्य ऋणात्मक होता है |
(C) स्थिति C : जब बल सदिश लग रहा है एवं वस्तु में कोई विस्थापन न हो तो F तथा s के बीच का कोण 90 डिग्री का होता है | इस स्थिति में कार्य शून्य होता है |
कार्य : ऋणात्मक एवं धनात्मक
ऋणात्मक कार्य (Negative Work): जब बल वस्तु के विस्थापन की दिशा के विपरीत दिशा में लग रहा हो तो दोनों दिशाओं के बीच 180० का कोण बनता है | इस स्थिति में कार्य का परिणाम ऋणात्मक होगा अत: किया गया कार्य ऋणात्मक माना जायेगा |
इसके लिए किया गया कार्य (W) = F × (–s) या (–F × s)
धनात्मक कार्य (Positive Work): जब बल वस्तु के विस्थापन की दिशा में लगता है तो किया गया कार्य धनात्मक माना जायेगा |
धनात्मक बल एवं ऋणात्मक बल :
जब हम किसी वस्तु को ऊपर उठाते हैं तो हमारे द्वारा वस्तु पर लगाया गया बल धनात्मक माना जायेगा | जबकि उसी दौरान वहां एक और बल कार्य करता है जिसे गुरुत्व बल कहा जाता है | गुरुत्व बल हमारे द्वारा लगाये गए बल के विपरीत कार्य करता है इसलिए यह बल ऋणात्मक माना जायेगा |
चूँकि हम जब किसी वस्तु पर बल लगाते है तो हम वस्तु को विस्थापित करने के लिए गुरुत्व बल के परिणाम से अधिक बल लगाना पड़ता है, इसलिए परिणामी बल धनात्मक हो जाता है | जैसे - मान लीजिये कि हमने एक वस्तु को उठाने के लिए 20 N बल लगाया जबकि वहां गुरुत्व बल का माप 10 N है तो
परिणामी बल = 20 - 10 = 10 N
इस स्थिति में वस्तु को विस्थापित करने में हमने कुल 10 N ही बल लगाया |
जहाँ गुरुत्वीय त्वरण लगता है वहां गुरुत्व बल (F) = mg होता है |
Example 4: एक कुली एक 25 kg का बोझ 2 मीटर ऊपर उठाकर अपने सिर पर रखता है | तो उस बोझे पर उसके द्वारा किया गया कार्य का परिकलन कीजिए |
हल :
बोझ का द्रव्यमान m = 25 kg
विस्थापन = 2 m तथा
वस्तु पर लगा बल F = mg = 25 kg × 10 m s-2
= 250 kg/m s-2 या 250 N
बोझ पर कार्य (W) = F × s
= 250 × 2 N m
= 500 N m = 500 J
1 जूल कार्य : जब किसी वस्तु को 1 N बल लगाकर उसे बल की दिशा में 1 मीटर विस्थापित किया जाए तो कहा जायेगा कि 1 जूल कार्य हुआ है |
ऊर्जा (ENERGY)
ऊर्जा (Energy): हमें कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है | सूर्य हमारे लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत है | हमारे ऊर्जा का बहुत से स्रोत सूर्य से व्युत्पन्न होते हैं | और भी कई ऊर्जा के स्रोत है जहाँ से हम ऊर्जा प्राप्त करते हैं |
(i) परमाणुओं के नाभिक से
(ii) पृथ्वी के आतंरिक भागों से
(iii) ज्वार-भाटों से आदि |
यदि किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता हो तो कहा जाता है कि उसमें ऊर्जा है | जो वस्तु कार्य करती है तो उसमें ऊर्जा की हानि होती है और जिस वस्तु पर कार्य किया जाता है उसमें ऊर्जा की वृद्धि होती है |
हमारे दैनिक जीवन में बहुत से वस्तुएँ कार्य करती रहती हैं जिनमें ऊर्जा संचित रहती है | इसी संचित ऊर्जा का उपयोग कर वस्तुएँ कार्य करती हैं |
कुछ वस्तुओं का उदाहरण जिनमें कार्य करने की क्षमता होती है :
(i) तीव्र वेग से गतिशील क्रिकेट की गेंद जो विकेटों से टकराती है जिससे विकेट दूर जा गिरते हैं |
(ii) ऊँचाई तक उठाया गया हथौड़ा जो कील को लकड़ी में ठोंक देता है |
(iii) चाबी भरी खिलौना कार जिसको फर्श पर रखते ही दौड़ने लगती है |
- यदि किसी वस्तु में ऊर्जा है तो वह दूसरी वस्तु पर बल लगाकर कार्य कर सकता है |
- जब कोई वस्तु दुसरे वस्तु पर बल लगाता है तो ऊर्जा पहली वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानांतरित हो जाती है |
- किसी वस्तु में निहित ऊर्जा को उसकी कार्य करने की क्षमता के रूप में मापा जाता है |
- इसलिए ऊर्जा का मात्रक जूल है जो कार्य का मात्रक है |
- ऊर्जा के बड़े मात्रक के रूप में किलोजूल (kJ) का उपयोग किया जाता है |