नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना :
(i) नेपाल अतीत में एक हिन्दू-राज्य था फिर आधुनिक काल में कई सालों तक यहाँ संवैधनिक राजतंत्र रहा।
(ii) संवैधनिक राजतंत्र के दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता ज्यादा खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाते रहे। लेकिन राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया और नेपाल में लोकतंत्र की राह अवरुद्ध हो गई।
(iii) 1990 में राजा ने एक मजबूत लोकतंत्र-समर्थक आन्दोलन के आगे झुककर नेपाल में एक लोकतांत्रिक संविधान की मांग मान ली |
(iv) 1990 के दशक में नेपाल में माओवादियों का प्रभाव था | माओवादी, राजा और सत्ताधारी अभिजन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर दिया | 2002 में राजा ने संसद भंग कर दिया और सरकार गिरा दिया |
(v) अप्रैल 2006 में नेपाल ने देशव्यापी लोकतंत्र के समर्थन में आन्दोलन और प्रदर्शन हुए | अंत में राजा ज्ञानेंद्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल कर दिया | इस प्रतिरोध का नेतृत्व सप्तदलीय गठबंधन (सेवेन पार्टी एल्लाएंस) ने किया |
(vi) वर्त्तमान में नेपाल में लोकतान्त्रिक सरकार है, अब नेपाल का अपना एक संविधान भी बनकर तैयार हो चूका है |
अप्रैल 2006 में नेपाल में जनसंघर्ष : नेपाल के राजा ज्ञानेद्र द्वारा 2002 में नेपाली संसद को भंग कर दिए जाने के बाद अप्रैल 2006 में एक बहुत बड़ा लोकतंत्र के समर्थन में आन्दोलन हुआ | जिसका नेतृत्व यहाँ के सात दलों से बने एक गठबंधन ने किया | यह जनसंघर्ष सफल रहा और राजा को हार माननी पड़ी और संसद को पुन: बहाल करना पड़ा |
नेपाल में माओवाद : नेपाल अतीत से एक हिन्दू-राष्ट्र रहा है और यहाँ राजा का शासन था | लेकिन नेपाल की लोकतान्त्रिक समर्थक पार्टियाँ और यहाँ के माओवादी (चीनी नेता माओ के विचारधारा को मानने वाले) नेताओं ने लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक संविधान के लिए सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना जिससे नेपाल में कई हिंसक प्रदर्शन हुए | इस वजह से राजा की सेना और माओवादी गुरिल्लों के बीच हिंसक लड़ाई भी छिड़ गई।नेपाल में संवैधानिक लोकतंत्र तो स्थापित तो हो गया परन्तु माओवाद का प्रभाव काफी गहरा है | माओवादी समूहों ने सशस्त्र संघर्ष की राह छोड़ देने की बात मान ली है | इनका भारत के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक नहीं रहा है | माओवादी और कुछ अन्य राजनीतिक समूह भारत की सरकार और नेपाल के भविष्य में भारतीय सरकार की भूमिका को लेकर बहुत शंकित हैं।
श्रीलंका में लोकतंत्र : श्रीलंका 1948 में आजादी के बाद से ही इसमें लोकतंत्र कायम है | इसके साथ ही श्रीलंका को जातीय संघर्ष जैसे कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा | यह चुनौती न सेना की थी और न राजतंत्र की थी | लोकतंत्र को लेकर श्रीलंका में कोई समस्या नहीं थी | वहां लोकतंत्र बहुत मजबूती के साथ चल रहा है |
श्रीलंका में जातीय संघर्ष : श्रीलंका की आज़ादी के बाद से ही जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा है | श्रीलंका में दो जातीय समूह है |
(i) सिंहली : ये श्रीलंका के मूल निवासी है |
(ii) तमिल : ये लोग भारत छोड़कर श्रीलंका में आ बसे तमिल है |
इन दोनों समूहों के बीच अलग राष्ट्र को लेकर सघर्ष जारी है | यहाँ तमिलों का प्रतिनिधित्व करने वाला 'लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम' (लिट्टे) श्रीलंकाई सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष कर रहा है | श्रीलंका के उत्तर पूर्वी हिस्से पर लिट्टे का नियंत्रण था |
श्रीलंका में जातीय संघर्ष का कारण :
(i) श्रीलंका की राजनीती पर बहुसंख्यक सिंहली जातियों का दबदबा है जो तमिल आबादी के खिलाफ है |
(ii) सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना था कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई ‘रियायत’ नहीं बरती जानी चाहिए क्योंकि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है।
(iii) श्रीलंका में तमिलों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है, यहाँ ये समुदाय उपेक्षित है जिससे एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई और लिट्टे जैसे संगठन का जन्म हुआ |
(iv) इन दो जातियों का आपसी संघर्ष गृह युद्ध का रूप ले चूका है |
श्रीलंका में तमिलों की मांग :
(i) श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग राष्ट्र बनाया जाय।
(ii) वर्त्तमान में श्रीलंका से लिट्टे और उसके समर्थकों का सफाया हो चूका है और अब यहाँ पर तमिल जनता राजनीती में अपना प्रतिनिधित्व चाहती है |
श्रीलंकाई संघर्ष में भारतीय हस्तक्षेप का कारण :
(i) श्रीलंका की समस्या भारतवंशी लोगों से जुड़ी है। भारत की तमिल जनता का भारतीय सरकार पर भारी दबाव है कि वह श्रीलंकाई तमिलों के हितों की रक्षा करे।
(ii) भारतीय सरकार ने समय-समय पर तमिलों के सवाल पर श्रीलंका की सरकार से बातचीत की कोशिश की है | लेकिन 1987 में भारतीय सरकार श्रीलंका के तमिल मसले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई।
(iii) भारत की सरकार ने श्रीलंका से एक समझौता किया तथा श्रीलंका सरकार और तमिलों के बीच रिश्ते सामान्य करने के लिए भारतीय सेना को भेजा।
(iv) भारतीय सेना लिट्टे के साथ संघर्ष में फंस गई और श्रीलंका की जनता ने भी भारतीय सेना की उपस्थित का विरोध किया इसे उन्होंने श्रीलंका के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप माना |
(v) भारत ने श्रीलंका में जो सेना भेजा था उसे शांति सेना का नाम दिया गया था | 1989 में भारत ने अपनी ‘शांति सेना’ लक्ष्य हासिल किए बिना वापस बुला ली।
श्रीलंका की आर्थिक स्थिति और विकास :
(i) संघर्षों की चपेट में होने के बाद भी श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है।
(ii) जनसंख्या की वृद्धि-दर पर सफलतापूर्वक नियंत्रण करने वाले विकासशील देशों में श्रीलंका प्रथम है।
(iii) दक्षिण एशिया के देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया।
(iv) गृहयुद्ध से गुजरने के बावजूद कई सालों से इस देश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष :
(i) कश्मीर समस्या : विभाजन के तुरंत बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले पर लड़ पड़े | चूँकि विभाजन के समय कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था और उसका अधिकारिक विलय भारत में हुआ था | जबकि पाकिस्तान उस पर नाजायज अपना दावा करता है | इस समस्या को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच 1947-48 और 1965 में युद्ध हो चूका है | 1948 के युद्ध के फलस्वरूप कश्मीर के दो हिस्से हो गए। एक हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहलाया जबकि दूसरा हिस्सा भारत का जम्मू-कश्मीर प्रान्त बना। कश्मीर समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है | आज इस क्षेत्र में आतंकवाद एक बहुत बड़ी समस्या है |
(ii) बंगलादेश समस्या : 1971 में बांग्लादेश की आतंरिक समस्याएँ आई जिसको लेकर बंगलादेश के नेताओं ने भारत से हस्तक्षेप और समर्थन माँगा | भारत ने सैन्य सहायता दी और बांग्लादेशियों का समर्थन किया | इससे भारत -पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ |
भारत विरोधी गतिविधियाँ :
(a) पाकिस्तान पर आरोप है कि वह कश्मीरी उग्रवादियों को हथियार, प्रशिक्षण और धन देता है तथा भारत पर आतंकवादी हमले के लिए उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है।
(b) हमले के लिए उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है। भारत सरकार का यह भी मानना है कि पाकिस्तान ने 1985-1995 की अवधि में खालिस्तान-समर्थक उग्रवादियों को हथियार तथा गोले-बारुद दिए थे।
(c) पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) पर बांग्लादेश और नेपाल के गुप्त ठिकानों से पूर्वोत्तर भारत में भारत-विरोधी अभियानों में संलग्न होने का आरोप है।
सिन्धु-जल-संधि : भारत और पाकिस्तान के बीच नदी- जल के बँटवारे के सवाल पर भी तनातनी हुई है। 1960 तक दोनों के बीच सिन्धु जल को लेकर तीखे विवाद हुए। संयोग से, 1960 में विश्व बैंक की मदद से भारत और पाकिस्तान ने ‘सिंधु-जल-संधि' पर दस्तख़त किए और यह संधि भारत-पाक के बीच कई सैन्य संघर्षों के बावजूद अब भी कायम है।
भारत और बंगला देश के बीच समस्या :
(i) बांग्लादेश और भारत के बीच गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के जल में हिस्सेदारी सहित कई मुद्दों पर मतभेद हैं।
(ii) इसके साथ और भी कई समस्याएं हैं जैसे - भारत में अवैध् आप्रवास पर ढाका के खंडन |
(iii) भारत-विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन,
(iv) भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश के इंकार |
(v) ढाका के भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने के फैसले तथा म्यांमार को बांग्लादेशी इलाके से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देने जैसे मसले शामिल हैं।
पूरब चलो निति : पूरब चलो निति भारत सरकार की वह निति है जिसके द्वारा वह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से अपने संबंध और आर्थिक संबंध अच्छा बनाना चाहती है | इसी निति के अंतर्गत बांग्लादेश, म्यांमार, इंडोनेशिया, सिंगापुर और मलेशिया से संपर्क साधने की बात है | इस बात के भी प्रयास किए जा रहे हैं कि साझे खतरों को पहचान कर तथा एक दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता बरतकर सहयोग के दायरे को बढ़ाया जाए।
भारत और नेपाल संबंध : भारत और नेपाल के बीच मधुर संबंध् हैं और दोनों देशों के बीच एक संधि हुई है। इस संधि के तहत दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं। ख़ास संबंधें के बावजूद दोनों देश के बीच अतीत में व्यापार से संबंधित मनमुटाव पैदा हुए
हैं। नेपाल की चीन के साथ दोस्ती को लेकर भारत सरकार ने अक्सर अपनी अप्रसन्नता जतायी है। नेपाल सरकार भारत-विरोधी तत्त्वों के खिलाफ कदम नहीं उठाती। इससे भी भारत नाखुश है।
बहरहाल भारत-नेपाल के संबंध् एकदम मजबूत और शांतिपूर्ण है। विभेदों के बावजूद दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाध्न, बिजली उत्पादन और जल प्रबंध्न ग्रिड के मसले पर एक साथ हैं। नेपाल में लोकतन्त्र की बहाली से दोनों देशों के बीच संबंधों के और मजबूत होने की उम्मीद बंधी है।
भारत और भूटान संबंध : भारत के भूटान के साथ भी बहुत अच्छे रिश्ते हैं और भूटानी सरकार के साथ कोई बड़ा झगड़ा नहीं है। भूटान से अपने काम का संचालन कर रहे पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों और गुरिल्लों को भूटान ने अपने क्षेत्र से खदेड़ भगाया। भूटान के इस कदम से भारत को बड़ी मदद मिली है। भारत भूटान में पनबिजली की बड़ी परियोजनाओं में हाथ बँटा रहा है। इस हिमालयी देश के विकास कार्यों के लिए सबसे ज्यादा अनुदान भारत से हासिल होता है।