दो-ध्रुवीय विश्व का आरम्भ :
दोनों महाशक्तियाँ विश्व के विभिन्न हिस्सों पर अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने के लिए तुली हुई थीं। दुनिया दो गुटों के बीच बहुत स्पष्ट रूप से बँट गई थी। ऐसे में किसी मुल्क के लिए एक रास्ता यह था कि वह अपनी सुरक्षा के लिए किसी एक महाशक्ति के साथ जुड़ा रहे और दूसरी महाशक्ति तथा उसके गुट के देशों के प्रभाव से बच सके।
पश्चिमी गठबंधन : पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों ने अमरीका का पक्ष लिया | इन्ही देशों के समूह को पश्चिमी गठबंधन कहते हैं |
इस गठबंधन में शामिल देश है - ब्रिटेन, नार्वे, फ़्रांस, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन, इटली और बेल्जियम आदि |
पूर्वी गठबंधन : पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत गठबंधन में शामिल हो गया | इस गठबंधन को पूर्वी गठबंधन कहते है |
इसमें शामिल देश हैं - पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया आदि |
नाटो (NATO) : पश्चिमी गठबन्धन ने स्वयं को एक संगठन का रूप दिया। अप्रैल 1949 में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की स्थापना हुई जिसमें 12 देश शामिल थे।
इस संगठन ने घोषणा की कि उत्तरी अमरीका अथवा यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर भी हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे | और नाटो में शामिल हर देश एक दुसरे की मदद करेगा |
उदेश्य : अमरीका द्वारा विश्व में लोकतंत्र को बचाना |
वारसा संधि : सोवियत संघ की अगुआई वाले पूर्वी गठबंधन को वारसा संधि के नाम से जाना जाता है | इसकी स्थापना सन् 1955 में हुई थी और इसका मुख्य काम 'नाटो' में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना था |
अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन का निर्धारण :
शीतयुद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों का निर्धारण महाशक्तियों की जरूरतों और छोटे देशों के लाभ-हानि के गणित से होता था |
कुछेक मामलों में यह भी हुआ कि महाशक्तियों ने अपने-अपने गुट में शामिल करने के लिए कुछ देशों पर अपनी ताकत का इस्तेमाल किया। पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ की दखलंदाजी इसका उदाहरण है।
महाशक्तियों के लिए छोटे देश का महत्व :
(i) महत्त्वपूर्ण संसाधनों - जैसे तेल और खनिज के लिए |
(ii) भू-क्षेत्र - ताकि यहाँ से महाशक्तियाँ अपने हथियारों और सेना का संचालन कर सके |
(iii) सैनिक ठिकाने - जहाँ से महाशक्तियाँ एक-दूसरे की जासूसी कर सके और
(iv) आर्थिक मदद - जिसमें गठबंधन में शामिल बहुत से छोटे-छोटे देश सैन्य-खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे।
(v) विचारधारा - गुटों में शामिल देशों की निष्ठा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध जीत रही हैं।
(vi) गुट में शामिल हो रहे देशों के आधार पर वे सोंच सकते थे कि उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद, समाजवाद और साम्यवाद से कही बेहतर है |
शीतयुद्ध के परिणाम :
(i) गुटनिरपेक्ष देशों का जन्म |
(ii) अनेक खूनी लडाइयों के वावजूद तीसरे विश्वयुद्ध का टल जाना |
(iii) अनेक सैन्य संगठन संधियाँ
(iv) दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणु जखीरे और हथियारों की होड़
(v) दो ध्रुवीय विश्व
सैन्य संधि संगठन : शीतयुद्ध के दौरान अनेक ऐसी घटनाएँ हुई जिससे दोनों महाशक्तियों ने एक दुसरे के वर्चस्व को समाप्त करने की पुरजोर कोशिश की | इसी कड़ी में सैन्य संधि संगठन भी बनाये गए | अपने-अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए दोनों ही महाशक्तियों ने अन्य सहयोगी या समान विचारधारा वाले देशों से सैन्य सहयोग संधियाँ की | इस दौरान अमरीका ने 3 संधियाँ की जबकि सोवियत संघ ने एक संधि की |
अमरीका द्वारा की गई सैन्य संधियाँ -
(i) नाटो (NATO) - 1949 में
(ii) सीटो (SEATO) - 1954 में
(iii) सेंटो (CENTO) - 1955 में
सोवियत संघ द्वारा की गई संधि -
(i) वारसा पैक्ट 1955
शीतयुद्ध के दायरे :
(i) 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी
(ii) 1950 में कोरिया संकट
(iii) 1954-1975 तक वियतनाम में अमरीकी हस्तक्षेप
(iv) 1956 में हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप
(v) 1962 -क्यूबा मिसाइल संकट
(vi) गुटनिरपेक्ष देशों का उदय और युद्ध संकट टालने में कारगर भूमिका
दोनों महाशक्तियों द्वारा परमाणु जखीरे एवं हथियारों की होड़ कम करने के लिए सकारात्मक कदम -
(i) परमाणु परिक्षण प्रतिबन्ध संधि
(ii) परमाणु अप्रसार संधि
(iii) परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि (एंटी बैलेस्टिक मिसाइल ट्रीटी)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीकी और सोवियत संघ के प्रमुख चुनौतियों में अन्तर :
अमरीकी चुनौतियां और सोवियत संघ की चुनौतियाँ :
(i) अमरीकी चुनौतियाँ सोवियत संघ की अपेक्षा काफी कम थी | जापान पर परमाणु हमले के बाद विश्व राजनीति में अमरीका का दबदबा बढ़ गया था, जबकि सोवियत संघ को अभी अपना प्रभुत्व स्थापित करना बाकि था |
(ii) दोनों महाशक्तियां वरन द्वितीय विश्व युद्ध की विजयी टीम से सम्बंधित थी परन्तु अमरीका संचार और तकनीकी मामले में सोवियत संघ से काफी आगे निकल चूका था | सोवियत संघ इस अंतर को कम करने के लिए अपने संसाधनों का खूब उपयोग किया जिससे आर्थिक रूप से वह पिछड़ गया |
(iii) सभी अमरीकी राज्य सोवियत संघ की तुलना में समृद्ध थे जबकि सोवियत संघ में शामिल कई राज्य रूस जैसे विकसित राज्य पर निर्भर थे | इन राज्यों को अलग से आर्थिक मदद देनी पड़ती थी |
(iv) परमाणु हथियारों एवं अन्य युद्ध हथियारों की होड़ के मामलों में सोवियत संघ ने अन्य विकास कार्यों की अपेक्षा इन पर ज्यादा धन खर्चा किया जिससे उसके जनता में असंतोष तेजी से फैली और वह पश्चिमी देशों के मुकाबले संचार और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में पिछड़ गया |