दानात्मक अभिलेख :
दानात्मक अभिलेख दूसरी शताब्दी ई. के छोटे-छोटे अभिलेख हैं जो विभिन्न नगरों से मिले हैं | इनमें धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का विवरण है |
दानात्मक अभिलेखों की विशेषताएँ :
(i) इनमें धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का विवरण है |
(ii) इनमें दान दिए गए व्यक्ति के साथ-साथ उसके व्यवसाय का भी उल्लेख किया गया है |
(iii) इनमें नगरों में रहने वाले धोबी, बुनकर, लिपिक, बढ़ाई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, अधिकारी, धर्मिक गुरु, व्यापारी और राजाओं के बारे में विवरण लिखे होते हैं।
श्रेणी : कभी-कभी उत्पादकों और व्यापारियों के संघ का भी उल्लेख मिलता है जिन्हें श्रेणी कहा गया है। ये श्रेणियाँ संभवतः पहले कच्चे माल को खरीदती थीं फिर उनसे सामान तैयार कर बाजार में बेच देती थीं।
अग्रहार का अर्थ : अग्रहार दान में दिए गए भूभागों को कहते थे | ब्राहमणों से भूमिकर अथवा कोई कर नहीं लिया जाता था | साथ-ही साथ ब्राह्मणों को अन्य स्थानीय लोगों से कर वसूलने का अधिकार प्राप्त था |
गहपति :
गहपति घर का मुखिया होता था और घर में रहने वाली महिलाओं, बच्चों, नौकरों और दासों पर नियंत्रण करता था। घर से जुड़े भूमि, जानवर या अन्य सभी वस्तुओं का वह मालिक होता था। कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नगरों में रहने वाले संभ्रांत व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता था।
प्रशस्ति : कवियों द्वारा अपने राजा या स्वामी की प्रशंशा में लिखी गई कविताओं या लेखों को प्रशस्ति कहा जाता है |
प्रशस्तियाँ विश्वसनीय नहीं होती :
प्रशस्तियों को इतिहासकार तथ्यात्मक विवरण की अपेक्षा काव्यात्मक ग्रन्थ मानते है क्योंकि कवि इसे अपने राजा की प्रशंशा में लिखता है |
प्रयाग प्रशस्ति : इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति की रचना हरिषेण जो स्वयं गुप्त सम्राटों के संभवतः सबसे शक्तिशाली सम्राट समुद्रगुप्त के राजकवि थे, ने संस्कृत में की थी।
बाणभट्ट : बाणभट्ट कनौज के शासक हर्षवर्धन के राजकवि थे | जिन्होंने ने हर्षवर्धन की जीवनी को संस्कृत में हर्षरचित ग्रन्थ में वर्णन किया है |
प्रभावती : प्रभावती गुप्त आरंभिक भारत के एक सबसे महत्वपूर्ण शासक चंद्रगुप्त द्वितीय (लगभग 375-415 ई.पू.) की पुत्राी थी। उसका विवाह दक्कन पठार के वाकाटक परिवार में हुआ था जो एक महत्वपूर्ण शासक वंश था।
उतरी कृष्ण मार्जित पात्र : कुछ पूरा स्थलों से विभिन्न प्रकार के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। इनमें
उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली हैं जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है। इन्हें उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र कहा जाता है।
पेरिप्लस ऑफ एरीथ्रियन सी : यह एक यूनानी समुद्र यात्री द्वारा रचित एक पुस्तक है जिसमें समुद्री यात्रा का वृतांत है |
रोमन साम्राज्य से व्यापार :
रोमन साम्राज्य में काली मिर्च, जैसे मसालों तथा कपड़ों व जड़ी-बूटियों की भारी माँग थी। इन सभी वस्तुओं को अरब सागर के रास्ते भूमध्य क्षेत्र तक पहुँचाया जाता था।
गुजरात की सुदर्शन झील :
सुदर्शन झील एक कृत्रिम जलाशय था। हमें इसका ज्ञान लगभग दूसरी शताब्दी ई. के संस्कृत के एक पाषाण अभिलेख से होता है। इस अभिलेख को शक शासक रुद्रदमन की उपलब्धियों का उल्लेख करने के लिए बनवाया गया था।
सुदर्शन झील का निर्माण :
जलद्वारों और तटबंधें वाली इस झील का निर्माण मौर्य काल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। लेकिन एक भीषण तूपफान के कारण इसके तटबंध् टूट गए और सारा पानी बह गया।
सुदर्शन झील का मरम्मत :
शासक रुद्रदमन ने इस झील की मरम्मत अपने खर्चे से करवाई थी, और इसके लिए अपनी प्रजा से कर भी नहीं लिया था। बाद में गुप्त वंश के एक शासक ने एक बार फिर इस झील की मरम्मत करवाई थी।