हड़प्पा सभ्यता के डेढ़ हजार वर्षों के बाद : इस अवधि के दौरान उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास कार्य हुए :
(i) ऋग्वेद का लेखन कार्य
(ii) कृषक बस्तियों का उदय
(iii) अंतिम संस्कार के नए तरीके
(iii) नए नगरों का उदय
ऋग्वेद का लेखन : हड़प्पा सभ्यता के डेढ़ हजार वर्षों के बाद सिन्धु नदी और इसकी उपनदियों के किनारे रहने वाले लोगों द्वारा ऋग्वेद का लेखन किया गया |
हड़प्पा सभ्यता के डेढ़ हजार वर्षों के बाद के काल के इतिहास को जानने के मुख्य स्रोत :
(i) अभिलेख
(ii) ग्रन्थ
(iii) सिक्के
(iv) चित्र इत्यादि |
जेम्स प्रिंसेप : जेम्स प्रिंसेप के द्वारा 1830 के दशक में ब्राम्ही और खरोष्ठी लिपि का अर्थ निकला गया | जिनसे राजा असोक के अभिलेखों और सिक्कों का पता चला |
इससे निम्न बातों का पता चला :
(i) अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी, यानी मनोहर मुखाकृति वाले राजा का नाम लिखा है।
(ii) कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम असोक भी लिखा है |
(iii) अशोक के अभिलेख मुख्यत: ब्राम्ही तथा खरोष्ठी लिपियों में लिखा गया गया है |
जेम्स प्रिंसेप के शोध के परिणाम :
(i) आरंभिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को नयी दिशा मिली |
(ii) भारतीय और यूरोपीय विद्वानों ने उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की वंशावलियों की पुनर्रचना के लिए विभिन्न भाषाओं में लिखे अभिलेखों और ग्रंथों का उपयोग किया।
(iii) बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों तक उपमहाद्वीप के राजनीतिक इतिहास का एक सामान्य चित्र तैयार हो गया।
आहत सिक्के :
चाँदी या ताम्बे को आहत करके (खोद कर अथवा पीटकर) बनाए गए सिक्कों को आहत सिक्का कहा जाता है | इन सिक्कों का प्रचलन छठी शताब्दी ई. पू. के समय था |
आहत सिक्कों की विशेषताएँ :
(i) इन्हें राजाओं अथवा व्यापारी समूहों ने जारी किए |
(ii) ये सिक्के चाँदी और ताँबे के बने हुए थे |
(iii) इन सिक्कों के प्रचलन से विनिमय आसान हो गया |
(iv) चाँदी या ताँबे के चादर पर प्रतिक चिन्हों को आहत कर बनाए गए थे |
(v) मौर्य काल में इस प्रकार के सिक्कों का प्रचलन था |
सोने के सिक्कों का प्रचलन :
सोने के सिक्के सबसे पहले प्रथम शताब्दी ईसवी में कुषाण राजाओं ने जारी किए थे। इनके आकार और वजन तत्कालीन रोमन सम्राटों तथा ईरान के पार्थियन शासकों द्वारा जारी सिक्कों के बिलकुल समान थे।
सोने के सिक्कों की सिक्कों की प्राप्ति :
उत्तर और मध्य भारत के कई पुरास्थलों पर ऐसे सिक्के मिले हैं। सोने के सिक्कों के व्यापक प्रयोग से संकेत मिलता है कि बहुमूल्य वस्तुओं और भारी मात्रा में वस्तुओं का विनिमय किया जाता था।
दक्षिण भारत में रोमन सिक्कों के प्रमाण :
दक्षिण भारत के अनेक पुरास्थलों से बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं जिनसे यह स्पष्ट है कि व्यापारिक तंत्र राजनीतिक सीमाओं से बँधा नहीं था | ये सिक्के दक्षिण भारत के व्यापारियों द्वारा रोमन साम्राज्य से व्यापार के अंतर्गत प्राप्त हुए थे |
यौधेयों द्वारा जारी ताम्बे के सिक्के :
पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों के यौधेय (प्रथम शताब्दी ई.) कबायली गणराज्यों ने भी सिक्के जारी किए थे। पुराविदों को यौधेय शासकों द्वारा जारी ताँबे के सिक्के हजारों की संख्या में मिले हैं जिनसे
यौधेयों की व्यापार में रुचि और सहभागिता परिलक्षित होती है।
मुद्राशास्त्र : मुद्राशास्त्र सिक्कों का अध्ययन है। इसके साथ ही उन पर पाए जाने वाले चित्र, लिपि
आदि तथा उनकी धातुओं का विश्लेषण और जिन संदर्भों में इन सिक्के को पाया गया है, उनका अध्ययन भी मुद्राशास्त्र के अंतर्गत आता है।
छठी शताब्दी ई. से सोने के सिक्के कम मिलने का कारण :
(i) कुछ इतिहासकारों का मानना था कि उस काल में कुछ आर्थिक संकट पैदा हो गया था |
(ii) कुछ का कहना है कि रोमन साम्राज्य के पतन के बाद दूरवर्ती व्यापार में कमी आई जिससे उन
राज्यों, समुदायों और क्षेत्रों की संपन्नता पर असर पड़ा जिन्हें दूरवर्ती व्यापार से लाभ मिलता था।
(iii) इस काल में नए नगरों और व्यापार के नवीन तंत्रों का उदय होने लगा था।
(iv) सिक्के इसलिए कम मिलते हैं क्योंकि वे प्रचलन में थे और उनका किसी ने संग्रह करके नहीं रखा था।
अभिलेख : अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर
खुदे होते हैं।
अभिलेखों की विशेषताएँ/उपयोग:
(i) अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्ध्यिाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं जो उन्हें बनवाते हैं।
(ii) इनमें राजाओं के क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धखमक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्योरा होता है।
(iii) अभिलेख एक प्रकार से स्थायी प्रमाण होते हैं।
(iv) कई अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है जिन पर तिथि नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण आमतौर पर पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधर पर काफी सुस्पष्टता
से किया जा सकता है।
जनपद : जनपद का अर्थ एक ऐसा भूखंड है जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है। इस शब्द का प्रयोग प्राकृत व संस्कृत दोनों में मिलता है |
छठी शताब्दी ई.पू. एक परिवर्तनकारी काल माना जाता है क्योंकि:
(i) इस काल को प्रायः आरंभिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है।
(ii) इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ।
(iii) बौद्ध और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख मिलता है। (iv) इनमें से वज्जि, मगध्, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधर और अवन्ति जैसे नाम प्रमुख हैं।
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षण :
(i) अधिकांश महाजनपदों पर एक राजा का शासन होता था | परन्तु गण और संघ के नाम से विख्यात राज्यों पर कई लोगों का सामूहिक शासन होता था | इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था |
(ii) प्रत्येक महाजनपद की एक राजधनी होती थी जिसे प्रायः किले से घेरा जाता था। किलेबंद राजधनियों के रख-रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोत की आवश्यकता होती थी।
(iii) संस्कृत में ब्राम्हणों ने धर्मशास्त्र की रचना की | इनमें शासक सहित अन्य के लिए नियमों का निर्धारण किया गया और यह अपेक्षा की जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ण से ही होंगे |
(iv) शासकों का काम किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना जाता था।
(v) महाजनपदों में संपत्ति जुटाने का एक वैध् उपाय पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकठठा करना भी माना जाता था।
(vi) राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तंत्र तैयार कर लिए। बाकी राज्य अब भी सहायक-सेना पर निर्भर थे जिन्हें प्रायः कृषक वर्ग से नियुक्त किया जाता था।
मगध महाजनपद : छठी से चौथी शताब्दी ई० पू० में मगध सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया | इसके शक्तिशाली होने के कई कारण हैं |
आधुनिक इतिहासकार के अनुसार इसके शक्तिशाली होने के कारण :
(i) मगध् क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी।
(ii) लोहे की खदानें (आधुनिक झारखंड में) भी आसानी से उपलब्ध् थीं जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।
(iii) जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध् थे जो सेना क्र एक महत्वपूर्ण अंग थे।
(iv) साथ ही गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था।
आरंभिक जैन और बौद्ध लेखकों के अनुसार मगध् की महत्ता का कारण :
(i) विभिन्न शासकों की नीतियों
(ii) इन लेखकों के अनुसार बिंबिसार, अजातसत्तु और महापद्मनंद जैसे प्रसिद्ध राजा अत्यंत महत्त्वाकांक्षी शासक थे, और इनके मंत्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।
राजगाह (आधुनिक राजगीर) : यह मगध की आरंभिक राजधानी थी | यह पहाड़ियों के बीच बसा राजगाह एक किलेबंद शहर था | बाद में चौथी शताब्दी ई० पू० पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी बनाया गया | जिसे अब पटना कहा गया | जिसकी गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर महत्वपूर्ण अवस्थिति थी |
अशोक की अभिलेखों की विशेषताएँ :
(i) अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा में हैं जबकि पश्चिमोत्तर से मिले अभिलेख अरामेइक और यूनानी भाषा में हैं।
(ii) प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे जबकि पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी में लिखे गए थे।
- अरामेइक और यूनानी लिपियों का प्रयोग आफगानिस्तान में मिले अभिलेखों में किया गया था।
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