मौर्यवंश की स्थापना : मौर्यवंश की स्थापना आज से लगभग 321 ई०. पू० मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वरा किया गया | मौर्यवंश का शासन पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था |
मौर्यवंश के बारे में जानकारी के स्रोत :
(i) पुरातात्विक प्रमाण विशेषतया मूर्तिकला |
(ii) समकालीन रचनाएँ : चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए यूनानी राजदूत मेगस्थनीश द्वारा लिखा गया विवरण।
(iii) अर्थशास्त्र : अर्थशास्त्र एक महत्वपूर्ण स्रोत है क्योंकि चन्द्रगुप्त के मंत्री कौटिल्य जिन्हें चाणक्य के नाम से जाना जाता है की एक अद्भुत रचना है |
(iv) मौर्य शासकों का उल्लेख परवर्ती जैन, बौद्ध और पौराणिक ग्रंथों तथा संस्कृत वाड्मय में भी मिलता है।
(v) पत्थरों और स्तंभों पर मिले अशोक के अभिलेख |
अर्थशास्त्र और उसकी विशेषताएँ :
कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीति से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है | इसकी रचना कौटिल्य ने की थी जो एक बहुत बड़ा विद्वान और चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था उसने इस ग्रन्थ के प्रशासन में सिंद्धांतो का वर्णन किया है | इस ग्रंथ का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व था | यह ग्रंथ मौर्येकाल का सुंदर चित्र प्रस्तुत करता है | इससे हमें चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन प्रबंध तथा उसके चारित्रिक गुणों की जानकारी मिलती है | यह ग्रंथ मौर्येकाल के समाज पर भी प्रकाश डालता है | सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें दिए गए शासन के सिद्धांतों की झलक आज के भारतीय शासन में देखी जा सकती है |
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में कुछ महत्वपूर्ण गणराज्य निम्नलिखित थे :
(1) कुशिनारा के मल्ल
(2) पावा के मल्ल
(3) कपिलवस्तु के शाक्य
(4) रामग्राम के कोलिय
(5) पिप्पलिवन के मोरिय
(6) अल्कप्प के बुलि
(7) केसपुत्त के कलाम
(8) सुमसुमारगिरी के भम्ग
(9) वैशाली के लिच्छवी |
मौर्य साम्राज्य के राजनितिक या प्रशासनिक केंद्र :
मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे - जिसका स्रोत अशोक के अभिलेख है जिसमें इनका उल्लेख हैं |
(i) राजधनी पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र |
(ii) तक्षशिला,
(ii) उज्जयिनी,
(iii) तोसलि और
(iv) सुवर्णगिरि।
मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य साम्राज्य का प्रशासन व्यवस्था नियंत्रण :
मौर्य साम्राज्य में सैनिक गतिविधियों के संचालन का काम एक समिति और छ: उपसमितियाँ किया करती थी | ये समितियाँ निम्न प्रकार से काम करती थी |
(i) एक का काम नौसेना का संचालन करना था,
(ii) दूसरी यातायात और खान-पान का संचालन करती थी |
(iii) तीसरी का काम पैदल सैनिकों का संचालन |
(iv) चौथी का अश्वारोहियों, पाँचवीं का रथारोहियों तथा छठी का काम हाथियों का संचालन करना था।
(v) दूसरी उपसमिति का दायित्व विभिन्न प्रकार का था: उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाडि़यों की
व्यवस्था, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना।
मौर्यकाल में कृषि उपज/आय में वृद्धि के कारण :
(i) लोहे के फाल वाले हल की वजह से फसलों की उपज में वृद्धि हुई |
(ii) उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों और कहीं-कहीं नहरों के माध्यम से सिंचाई करना था।
धम्म के प्रमुख सिद्धांत : धम्म के सिद्धांत बहुत ही साधारण और सार्वभौमिक थे |
(i) बड़ों के प्रति आदर
(ii) सन्यासियों तथा ब्राम्हणों के प्रति उदारता
(iii) अपने सेवकों तथा दासों के प्रति उदार व्यवहार
(iv) दूसरों के धर्मों और परम्पराओं का आदर
धम्म महामात्रों की नियुक्ति :
असोक ने अपने साम्राज्य को अखंड बनाए रखने का प्रयास किया। ऐसा उन्होंने धम्म के प्रचार द्वारा भी किया। असोक के अनुसार धम्म के माध्यम से लोगों का जीवन इस संसार में और इसके बाद के संसार में अच्छा रहेगा। धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्त नाम से विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई।
अशोक बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत थे :
अशोक अन्य राजाओं की अपेक्षा एक बहुत शक्तिशाली और परिश्रमी शासक थे | साथ थी वे बाद के उन राजाओं की अपेक्षा विनीत भी थे जो अपने नाम के साथ बड़ी-बड़ी उपाधियाँ जोड़ते थे | चूँकि अशोक को भारतवर्ष का सबसे शक्तिशाली सम्राट माना जाता है जिस पर सभी भारतीय गर्व करते हैं यही कारण है कि अशोक राष्ट्रवादी नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत थे |
मौर्य साम्राज्य के महत्व को कम/धुंधली करने वाली बातें :
(i) यह साम्राज्य मात्र डेढ़ सौ साल तक ही चल पाया जिसे उपमहाद्वीप के इस लंबे इतिहास में बहुत बड़ा काल नहीं माना जा सकता।
(ii) मौर्य साम्राज्य उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में नहीं फ़ैल पाया था। यहाँ तक कि साम्राज्य की सीमा के अंतर्गत भी नियंत्रण एकसमान नहीं था।
(iii) दूसरी शताब्दी ई.पू. आते-आते उपमहाद्वीप के कई भागों में नए-नए शासक और रजवाड़े स्थापित होने लगे।
यूनानी स्रोतों के अनुसार मौर्य सम्राट के पास सेना :
यूनानी स्रोतों के अनुसार, मौर्य सम्राट के पास छः लाख पैदल सैनिक, तीस हजार घुड़सवार तथा नौ हजार हाथी थे।
असोक द्वारा अपनाई गई उपाधियां :
(i) देवानांपिय अर्थात् देवताओं का प्रिय और
(ii) ‘पियदस्सी’ यानी ‘देखने में सुन्दर’।
अभिलेखों से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य :
(i) इन अभिलेखों का परीक्षण करने के बाद अभिलेखशास्त्रिायों ने पता लगाया कि उनके विषय, शैली, भाषा और पुरालिपिविज्ञान सबमें समानता है, अतः वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इन अभिलेखों को एक ही शासक ने बनवाया था।
अशोक के अभिलेखों का भारतीय इतिहास में महत्व : भातीय इतिहास में अशोक में अभिलेखों का बहुत ही महत्त्व है |
(i) ये हमें उस काल के इतिहास के साथ साथ भौगोलिक स्थिति, प्रशासनिक व्यवस्था और लोगों के रहन सहन के बारे में जानकारी देते है |
(ii) इन शिलालेखों से हमें अशोक के समय प्रचलित बौद्ध एवं जैन धर्म के बारे में जानकारी मिलती है |
(iii) शिलालेख अशोक के उच्च चरित्र और उसके द्वारा किए गए प्रजा के भलाई के कार्य का वर्णन करते है |
(iv) ये शिलालेख मौर्यकालीन कला के अद्भुत नमूने का वर्णन करते हैं |
अशोक के शिलालेख और उनके स्थान :
(i) सिद्धपुर : मैसूर राज्य के चीतल दुर्ग में
(ii) ब्रम्हागिरी : मैसूर राज्य में
(iii) मास्की : हैदराबाद के निकट एक स्थान
(iv) सहसाराम : यह स्थान शाहाबाद बिहार में है |