अध्याय 8. जीव जनन कैसे करते हैं ?
मानव में लैंगिक जनन :
मनुष्य में लैंगिक जनन के लिए लैंगिक जनन के लिए उत्तरदायी कोशिकाओं का विकास बहुत ही आवश्यक है | इन कोशिकाओं को जनन कोशिकाएँ कहते है | इन कोशिकाओं का विकास मनुष्य के जीवन काल के एक विशेष अवधि में होता है, जिसमें शरीर के विभिन्न भागों में विशेष परिवर्तन होते हैं | विशेषतया जनन कोशिकाओं में परिवर्तन होते है | जैसे-जैसे शरीर में समान्य वृद्धि दर धीमी होती है जनन-उत्तक परिपक्व (Mature) होना आरंभ करते हैं |
किशोरावस्था (Adolescence) :
वृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रम है। जीवन काल की वह अवधि जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनन परिपक्वता आती है, किशोरावस्था कहलाती है।
यौवनारंभ (Puberty) : किशोरावस्था की वह अवधि जिसमें लैंगिक विकास सर्वप्रथम दृष्टिगोचर होती है उसे यौवनारंभ कहते हैं | यौवनारंभ का सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन लड़के एवं लड़कियों की जनन क्षमता का विकास होता है |
दुसरे शब्दों में, किशोरावस्था की वह अवधि जिसमें जनन उतक परिपक्व होना प्रारंभ करते है । यौवनारंभ कहा जाता है ।
यौवनारंभ की शुरुआत : लड़कों तथा लडकियों में यौवनारंभ निम्न शारिरिक परिवर्तनों के साथ आरंभ होता है ।
लडकों में परिवर्तन - दाढ़ी मूँछ का आना , आवाज में भारीपन, काँख एवं जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलिय हो जाना, आदि ।
लडकियों में परिवर्तन - स्तन के आकार में वृद्धि होना, आवाज में भारीपन, काँख एवं जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलिय हो जाना, और रजोधर्म का होने लगना , जंघा की हडियो का चौडा होना, इत्यादि।
लडकियों में यौवनारंभ 12 - 14 वर्ष में होता है जबकि लडको में यह 13 - 15 वर्ष में आरंभ होता है ।
द्वितीयक या गौण लैंगिक लक्षण (Secondry Sexual Characters):
गौंड लैंगिक लक्षण वे लक्षण है जो यौवनारंभ के दौरान वृषण एवं अंडाशय शुक्राणु एवं अंडाणु उत्पन्न करते है तथा लडकियों में स्तनों का विकास होने लगता है तथा लडकों के चेहरे पर बाल उगने लगते हैं अर्थात् दाढ़ी-मूॅछ आने लगती है। ये लक्षण क्योंकि लड़कियों को लड़कों से पहचानने में सहायता करते हैं अतः इन्हें गौण लैंगिक लक्षण कहते हैं।
शारीरिक परिवर्तनों की सूची :
(i) लंबाई में वृद्धि ।
(ii) शारीरिक आकृति में परिवर्तन ।
(iii) स्वर में परिवर्तन ।
(iv) स्वेद एवं तैलग्रेथियों की क्रियाशीलता में वृद्धि ।
(v) जनन अंगो का विकास ।
(vi) मानसिक, बौद्धिक एवं संवेदनात्मक परिपवक्ता ।
(vii) गौंड लैंगिक लक्षण
रजोदर्शन : यौवनारंभ के समय रजोधर्म के प्रारंभ को रजोदर्शन कहते है।
यह 12 से 14 वर्ष की आयु की युवतियो में प्रारंभ होता हैं ।
रजोनिवृति (Menopause) : जब स्त्रियो के रजोधर्म 50 वर्ष की आयु में ऋतुस्राव तथा अन्य धटना चक्रो की समाप्ती रजोनिवृति कहलाती है।
आवर्त चक्र (Menstrual Cycle) : प्रत्येक 28 दिन बाद अंडाशय तथा गर्भाशय में होनें वाली घटना ऋतुस्राव द्धारा चिन्हित होती है तथा आर्वत चक्र या स्त्रियों का लैगिक चक्र कहलाती है।
लैंगिक परिवर्तन (Sexual changes) : किशोरावस्था में होने वाले ये सभी परिवर्तन एक स्वत: होने वाली प्रक्रिया है जिसका उदेश्य लैंगिक परिपक्वता (Maturity) है | लैंगिक परिपक्वता 18 से 19 वर्ष की आयु में लगभग पूर्ण हो जाती है, जिसका आरंभ यौवनारंभ से शुरू होता है |
संवेदनाओं में परिवर्तन : इस अवधि में होने वाले परिवर्तनों में महत्वपूर्ण परिवर्तनों में से है मानसिक, बौद्धिक एवं संवेदनाओं में परिवर्तन |
किशोरावस्था में परिवर्तनों का कारण :
किशोरावस्था में इन परिवर्तनों का समान्य कारण लिंग हार्मोन के कारण होते है | वे हार्मोन जो शरीर में लैंगिक परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी होते हैं लिंग हार्मोन कहा जाता है |
लिंग हार्मोन दो प्रकार के होते हैं :
1. नर लिंग हार्मोन : वे हार्मोन जो नर में लैंगिक परिवर्तन के उत्तरदायी होते हैं, नर लिंग हार्मोन कहते हैं | जैसे - नर में टेस्टोस्टेरॉन |
2. मादा लिंग हार्मोन : वे हार्मोन जो मादा में लैंगिक परिवर्तन के उत्तरदायी होते हैं, मादा लिंग हार्मोन कहते है | उदाहरण - मादा में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन |
नर जनन तंत्र (Male Reproductive System) :
जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग, संयुक्त रूप से, नर जनन तंत्र बनाते हैं।
नर जनन तंत्र बनाने वाले अंग जो जनन क्रिया में भाग लेते है नर जननांग कहलाते हैं |
1. वृषण (Testes) : नर जननांगों में वृषण प्रमुख अंग है जो नर जनन कोशिका अर्थात शुक्राणु का निर्माण करता है | यह उदर गुहा के बाहर वृषण कोष (Scrotum) में स्थित होता है | इसके दो भाग होते है | एक वह भाग जो शुक्राणु का निर्माण करता है और दूसरा भाग जिसे अंत:स्रावी ग्रंथि (endocrine gland) भी कहते है ये टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन का स्राव करता है | टेस्टोस्टेरॉन जो नर में लैंगिक परिवर्तनों के उत्तरदायी है और इसे नियंत्रण भी करता है |
वृषण का कार्य :
(i) नर जनन कोशिका अर्थात शुक्राणु का निर्माण करता है |
(ii) ये टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन का स्राव करता है |
वृषण कोष (Scrotum) का कार्य : इसी कोश में वृषण स्थित होता है |
(i) यह वृषण के शुक्राणु (sperm) निर्माण के लिए आवश्यक ताप को नियंत्रण करता है | चूँकि शुक्राणु निर्माण के लिए शरीर के ताप से भी कम ताप की आवश्यकता होती है |
(ii) यह वृषण को स्थित रहने के लिए स्थान प्रदान करता हैं |
शुक्रवाहिनी (Vas Difference) : वृषण में शुक्राणु निर्माण के बाद इसी शुक्रवाहिनी से होकर शुक्राशय तक पहुँचता है | आगे ये शुक्रवाहिकाएँ मूत्राशय से आने वाली नली से जुड़ कर एक संयुक्त नली बनाती है। अतः मूत्रामार्ग (urethra) शुक्राणुओं एवं मूत्र दोनों के प्रवाह के उभय मार्ग है।
शुक्राशय (Seminal Vesicles) :
शुक्राशय एक थैली जैसी संरचना है जो शुक्राणुओं का संग्रह करता है | ये अपने यहाँ संग्रहित शुक्राणुओं को शुक्रवाहिका में डालते हैं |
प्रोस्ट्रेट ग्रंथि या पौरुष ग्रंथि : यह एक बाह्य स्रावी ग्रंथि है जो एक तरल पदार्थ का निर्माण करता है जिसे वीर्य (semen) कहते है |
वीर्य के कार्य :
(i) यह शुक्राणुओं की गति के लिए एक तरल माध्यम प्रदान करता हैं |
(ii) इसके कारण शुक्राणुओं का स्थानांतरण सरलता से होता है |
(iii) ये शुक्राणुओं का पोषण भी प्रदान करता है |
शुक्राणु (Sperms) : शुक्राणु सूक्ष्म सरंचनाएँ हैं जिसमें मुख्यतः आनुवंशिक पदार्थ होते हैं तथा एक लंबी पूँछ होती है जो उन्हें मादा जनन-कोशिका की ओर तैरने में सहायता करती है।
मादा जनन तंत्र (Female Reproductive System) :
मादा जनन तंत्र में तीन प्रमुख जननांग हैं |
(1) अंडाशय (Ovary)
(2) अंडवाहिका (fallopiun tube)
(3) गर्भाशय (Uterus)
(1) अंडाशय (Ovary) : यह मादा जनन अंगों में से प्रमुख अंग है |
इसके कार्य क्षेत्र में भी वृषण की तरह दो भाग होते हैं, एक भाग जो मादा जनन-कोशिका अर्थात अंडाणु का निर्माण करता है और दूसरा अंत:स्रावी ग्रंथि (endocrine gland) भाग जो लिंग हार्मोन एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन का स्राव करता है | अंडाणु का निर्माण अंडाशय के फोलिकल्स से होता है | एक मादा में दो अंडाशय होते है जो दोनों गर्भाशय के दोनों ओर स्थित होते हैं | दोनों अंडाशय में असंख्य फोलिकल्स होते है जिसमें अपरिपक्व (Imatured) अंडाणु होते है | वह अंडाणु जो परिपक्व हो चूका होता है समान्यत: 28 दिन में अंडाशय से निकलता है और अंडवाहिनी से होकर गर्भाशय तक पहुँचता है |
अंडाशय का कार्य:
(i) मादा जनन-कोशिका अर्थात अंडाणु का निर्माण करता है |
(ii) मादा लिंग हार्मोन एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन का स्राव करता है |
लिंग हार्मोन एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन का कार्य :
(i) मादा में लैंगिक परिवर्तन के उत्तरदायी होते हैं |
(ii) अण्डोत्सर्ग (Releasing of eggs) को नियंत्रित करते हैं |
(2) अंडवाहिका (fallopiun tube) : अंडवाहिका मादा जनन अंग का एक नलिकाकार भाग हैं जो गर्भाशय के दोनों ओर स्थित होते है | ये अंडाणुओं का वहन करता है अर्थात यह अंडाणुओं के गर्भाशय तक पहुँचने का मार्ग है | निषेचन की प्रक्रिया भी फेलोपियन ट्यूब (अंडवाहिनी) में ही होता है |
(3) गर्भाशय (Uterus) : दोनों अंडवाहिकाएँ संयुक्त होकर एक लचीली थैलेनुमा संरचना का निर्माण करती हैं जिसे गर्भाशय कहते हैं। गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है।
गर्भाशय का कार्य :
(i) निषेचित अंड अथवा युग्मनज गर्भाशय में स्थापित होता है |
(ii) भ्रूण का विकास गर्भाशय में ही होता है |
(iii) प्लेसेंटा का रोपण गर्भाशय में होता है |
अपरा या प्लेसेंटा (placenta) : भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष संरचना होती है जिसे प्लैसेंटा कहते हैं।
यह एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में धँसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर के ऊतक में प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रक्तस्थान होते हैं जो प्रवर्ध को आच्छादित करते हैं। यह माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के स्थानांतरण हेतु एक बृहद क्षेत्र प्रदान करते हैं। विकासशील भ्रूण द्वारा अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते हैं जिनका निपटान उन्हें प्लैसेंटा के माध्यम से माँ के रुधिर में स्थानांतरण द्वारा होता है।