2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) :
जनन की वह विधि जिसमें नर एवं मादा दोनों भाग लेते हैं | लैंगिक जनन कहलाता है |
दुसरे शब्दों, जनन की वह विधि जिसमें नर युग्मक (शुक्राणु) और मादा युग्मक (अंडाणु) भाग लेते है, लैंगिक जनन कहलाता है |
निषेचन (Fertilisation): नर युग्मक (शुक्राणु) और मादा युग्मक (अंडाणु) के संलयन को निषेचन कहते है |
नर युग्मक : गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक कहते है |
मादा युग्मक : जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित होता है उसे मादा युग्मक कहते हैं |
लैंगिक जनन के लाभ :
लैगिंक उच्च विकसित प्रक्रिया है तथा इसके अलैगिक जनन की तुलना में अनेक लाभ है।
(i) लैंगिक जनन, संततियों में गुणों को बढावा देता है क्योंकि इसमें दो भिन्न तथा लैंगिक असमानता वाले जीवों से आयें युंग्मकों का संलयन होता है।
(ii) लैंगिक जनन में वर्णो के नए संयोजन के अवसर होता है।
(iii) यह नई जातियों की उत्पति में महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है।
(iv) इस जनन द्वारा उत्पन्न जीवों में काफी विभिन्नताएँ होती है |
- इस विधि से उत्पन्न संतति शारीरिक रूप से जनक से भिन्न होते है परन्तु डीएनए स्तर पर समान होते हैं |
एक-कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में अंतर :
एक कोशिकिय जीवों में जनन की अलैंगिक विधियॉ ही कार्य करती है। जिनमें एक ही जनन कोशिका अन्य संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है। एक कोशिकिय जीवों में केवल एक जनक की आवश्यकता होती है। बहु कोशिकिय जीवों में प्रायः लैंगिक जनन होता है। इसमें नर तथा मादा जीव की आवश्यकता होती है। जनन के लिए विशेष अंग होते है तथा शरीर में इनकी स्थिति निश्चित होती है।
डी. एन. ए. की प्रतिकृति में त्रुटियों का महत्त्व :
डी. एन. ए. की प्रतिकृति में परिणामी त्रुटियाँ जीवों की समष्टि (जनसंख्या) में विभिन्नता का स्रोत हैं । जो उनकी समष्टि को बचाएँ रखने में सहायक है।
त्रुटियाँ आने की प्रक्रिया निम्न है :
जीवों में जैव-रासायनिक प्रक्रिया
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प्रोटीन संश्लेषण
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कोशिकाओं या जनन कोशिकाओं का निर्माण
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डी. एन. ए. की प्रतिकृति का बनना
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प्रतिकृति बनने के दौरान त्रुटियों का आ जाना
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त्रुटियाँ से विभिन्नताओं का आना
संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डी. एन. ए की मात्रा का पुनर्स्थापन :
जनन अंगों में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं की परत होती है जिनमें जीव की कायिक कोशिकाओं की अपेक्षा गुणसूत्रों की संख्या आधी होती हैं | ये कोशिकाएँ युग्मक कोशिकाएँ होती है जो दो भिन्न जीवों से होने के कारण लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा युग्मनज (gygote) बनाती है | जब जायगोट बनता है तो दोनों कोशिकाओं से आधे गुणसूत्र और आधी-आधी डीएनए की मात्रा मिलकर एक पूर्ण जीव में उपस्थित गुणसूत्र और डीएनए की मात्रा को पूरी कर लेता है | इसप्रकार संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डीएनए की मात्रा पुनर्स्थापित हो जाती है |
लैंगिक जनन के अध्ययन को हम दो भागों में बाँटते है |
A. पौधों में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Plants)
B. जंतुओं में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Animals)
A. पौधों में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Plants) :
पुष्पी पादपों में जननांग :
मादा जननांग : स्त्रीकेसर
स्त्रीकेसर के भाग : वर्तिकाग्र, वर्तिका और अंडाशय |
नर जननांग : पुंकेसर |
पुंकेसर के भाग : परागकोष तथा तंतु |
पुष्प दो प्रकार के होते हैं :
(i) एकलिंगी पुष्प (unisexual flower) :जब पुष्प में पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है तो ऐसे पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं | उदाहरण: पपीता, तरबूज इत्यादि।
(ii) द्विलिंगी या उभयलिंगी पुष्प (Bisexual flower): जब एक ही पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं, तो उन्हें उभयलिंगी पुष्प कहते हैं। उदाहरण: गुड़हल, सरसों इत्यादि |
पुंकेसर : पुंकेसर नर जननांग है जो तंतु तथा परागकोश से मिलकर बना है | यह परागकणों को बनाता है |
पुंकेसर का कार्य:
(i) यह नर जननांग है जो परागकण बनाता है।
परागकोश () : परागकोश परागकणों को संचय करता है |
परागकण (Pollen grains) : परागकण पौधों में नर युग्मक है जो सामान्यत: पीले रंग का पाउडर जैसा चिकना पदार्थ होता है |
स्त्रीकेसर : यह मादा जननांग है जो वर्तिकाग्र, वर्तिका और अंडाशय से मिलकर बना है | यह पुष्प के केंद्र में अवस्थित होता है |
वर्तिकाग्र : यह पुष्प का वह मादा भाग है जिस पर परागण की क्रिया होती है | यह चिपचिपा होता है |
वर्तिका : यह एक नलिकाकार भाग है जो वर्तिकाग्र और अंडाशय को जोड़ता है |
अंडाशय : पुष्प के केंद्र में स्थित होता है इसमें बीजांड होता है और प्रत्येक बीजांड में एक अंड-कोशिका होता है, जहाँ निषेचन के पश्चात् भ्रूण बनता है |
स्त्रीकेसर का कार्य :
स्त्राीकेसर मादा जननांग है जो वर्तिकाग्र , वर्तिका और अंडाशय से मिलकर बना है।
कार्य:
(i) वर्तिकाग - यहाँ परागण की क्रिया होती है।
(ii) वर्तिका - वर्तिका को परागनली भी कहा जाता हैं । यह नर युग्मक को अंडाशय तक पहुँचाता है।
(iii) अंडाशय - अंडाशय पुष्प का एक प्रमुख मादा जननांग है जहाँ संलयन (निषेचन) की क्रिया होती है और भुण्र का निर्माण होता है।
एक सम्पूर्ण स्त्रीकेसर का चित्र
जनन की प्रक्रिया (The Process of Reproduction) :
परागकणों का वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण
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परागण
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परागित परागकण का वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचाना
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निषेचन
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युग्मनज का निर्माण
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भ्रूण का विकसित होना
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बीज का निर्माण
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अंकुरण
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नए पौधा का जन्म
परागण (Pollination) : परागकणों का परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण होने की प्रक्रिया को परागण कहते है।
परागण दो प्रकार के होते है।
1. स्वपरागण (Self Pollination)
2. परापरागण (Cross Pollination)
1. स्वपरागण (Self Pollination) :
जब एक पुष्प के परागकोश से उसी पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणो का स्थानान्तरण स्व - परागण कहलाता है।
2. परापरागण (Cross Pollination) :
जब एक पुष्प के पराकोष से उसी जाति के अन्य दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणो का स्थानान्तरण होता है तो परा - परागण कहलाता है |
परापरागण के कारक :
एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक परागकणों का यह स्थानांतरण वायु, जल अथवा प्राणी जैसे वाहक द्वारा संपन्न होता है।
1. भौतिक कारक : वायु तथा जल
2. जन्तु कारक : कीट तथा कीड़े-मकौड़े जैसे - तितली, मधु-मक्खी इत्यादि |
अंकुरण (Germination) :
बीज में भावी पौधा अथवा भ्रूण होता है जो उपयुक्त परिस्थितियों में नए संतति में विकसित हो जाता है। इस प्रक्रम को अंकुरण कहते हैं।