अध्याय 4. कार्बन एवं उसके यौगिक
साबुन एवं डिटर्जेंट (Soap and Detergent):
साबुन (Soap): साबुन के अणु लंबी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम एवं पोटैशियम लवण होते हैं। साबुन का आयनिक भाग जल में घुल जाता है जबकि कार्बन शृंखला तेल में घुल जाती है। साबुन अपनी सफाई प्रक्रिया मिसेल की संरचना बना कर करता है |
मिसेल (Micelles): जब साबुन जल की सतह पर होता हैं तब इसके अणु अपने को इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं कि इनका आण्विक सिरा जल के अंदर होता हैं जबकि हाइड्रोकार्बन पूँँछ जल के बाहर होता हैं जो तैलीय मैल को अपने केंद्र में एकत्रित कर लेता है | ऐसा अणुओं का बड़ा समूह बनने के कारण होता हैं । इस संरचना को मिसेल कहते हैं ।
मिसेल की संरचना
मिसेल की संरचना बनने के लिए साबुन के अणुओं में उनकी सिराओं का महत्वपूर्ण भूमिका है | इनकी दो सिरायें होती हैं :
(i) जलरागी सिरा (Hydrophilic end) : साबुन के अणु के दो सिरों में से एक सिरा जो जल में घुलनशील होता है उसे जलरागी कहते है |
(ii) जलविरागी सिरा (Hydrophobic end) : साबुन के अणु का वह सिरा जो हाइड्रोकार्बन में अर्थात तैलीय मैल में विलेय होता है जलविरागी सिरा कहलाता है |
जलरागी और जलविरागी सिरे में अंतर:
जलरागी सिरा:
(i) यह जल में विलेय होता है |
(ii) यह आयनिक सिरा होता है |
(iii) यह मिसेल की संरचना में बाहर की ओर जल में घुला होता है |
जलविरागी सिरा :
(i) यह जल में विलेय नहीं होता बल्कि हाइड्रोकार्बन (तेल) में विलेय होता है |
(ii) यह आयनिक सिरा नहीं होता है |
(iii) यह मिसेल की संरचना में अन्दर के हिस्से में तेलिय भाग की ओर होता है |
साबुन की सफाई प्रक्रिया:
साबुन की सफाई प्रक्रिया मिसेल के द्वारा होती है | साबुन के अणुओं की आयनिक सिरा जल में रहता है और दूसरा हाइड्रोकार्बन पूँँछ तैलीय मैल ने घुल जाता है और मिसेल संरचना का निर्माण करते हैं । मिसेल के रूप में साबुन स्वच्छ करने के रूप में सक्षम होता हैं क्योंकि तेलीय मेैल मिसेल के केन्द्र में एकत्रित हो जाते है। इससे पानी में इमल्शन बनता है | मिसेल विलयन में कोलाइड के रूप में बने रहते हैं। साबुन का मिसेल मैल को पानी में घुलाने में मदद करता है और इस प्रकार मिसेल में तैरते समय मेल आसानी से हट जाते है और हमारे कपडे साफ हो जाते है ।
मिसेल के गुण:
(i) मिसेल के रूप में साबुन सफाई करने में सक्षम होता है |
(ii) मिसेल विलयन में कोलाइडल के रूप में बना रहता है |
(iii) यह आयन-आयन विकर्षण के कारण अवक्षेपित नहीं होते हैं |
(iv) साबुन के मिसेल प्रकाश को प्रकीर्णित कर सकते हैं |
(v) साबुन का मिसेल मैल को पानी में घुलाने में मदद करता है |
साबुन कठोर जल के साथ झाग नहीं बनाता है :
जब हम कठोर जल के साथ साबुन से साथ धोते है तो देखते है झाग बड़ी मुश्किल से बन रहा है एवं जल से शरीर धो लेने के बाद भी कुछ अघुलनशील पदार्थ (स्कम) जमा रहता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि साबुन कठोर जल में उपस्थित कैल्सियम एवं मैग्नीशियम लवणों से अभिक्रिया करता है। ऐसे में आपको अधिक मात्रा में साबुन का उपयोग करना पड़ता है।
अपमार्जक कठोर जल में भी प्रभावी है :
अपमार्जक लंबी कार्बोक्सिलिक अम्ल श्रृंखला के अमोनियम एवं सल्फोनेट लवण होते है। इन यौगिकों का आवेशित सिरा कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम एवं मैग्नीशियम आयनों के साथ अघुलनशील पदार्थ नहीं बनाते हैं। इस प्रकार वह कठोर जल में भी प्रभावी बने रहते हैं।
साबुन एवं अपमार्जक में अंतर :
साबुन:
(i) साबुन के अणु लंबी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम एवं पोटैशियम लवण होते हैं।
(ii) यह कठोर जल में प्रभावी नहीं है, इसलिए झाग नहीं बनाता है |
(iii) इसकी सफाई प्रक्रिया में मिशेल का निर्माण होता है |
(iv) यह जल की कठोरता को बढाता है |
अपमार्जक :
(i) अपमार्जक लंबी कार्बोक्सिलिक अम्ल श्रृंखला के अमोनियम एवं सल्फोनेट लवण होते है।
(ii) यह कठोर जल में प्रभावी है, इसलिए झाग बनाता है |
(iii) इसकी सफाई प्रक्रिया में मिशेल का निर्माण नहीं होता है |
(iv) यह जल की कठोरता को कम करता है |
अपमार्जक का उपयोग:
(i) अपमार्जकों का उपयोग शैंपू एवं कपड़े धोने के उत्पाद बनाने में होता है।