अभ्यास:
प्रश्न1. जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है ?
उत्तर: जीवों के वर्गीकरण से निम्नलिखित लाभ हैं:-
(1) अध्ययन में सहायक : किसी वर्ग या संघ के एक जीवधारी का अध्ययन कर लेने से हमे उस समूह के अन्य जीवधारीयों के बारे में सुगमता से अनुमान लगाया जा सकता है|
(2) विकास क्रम का ज्ञान: वर्गीकरण में जीवधारियों को उनके गुणों की जटिलता के आधार पर रखा गया हैं| इससे उनके विकास का क्रम ज्ञात हो जाता हैं| जैसे:- कोर्डेटा के अंतर्गत मत्स्य, जलस्थलचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तन प्राणियों का वर्गीकरण उनके लक्षणों की जटिलता के आधार पर किया जाता हैं|
(3)संयोजी कडियों का ज्ञान: जब किसी जीवधारी में दो समुदाए के लक्षण पाए जाते हैं तो उसे उन दो समूहों के मध्य की संयोजी कड़ी कहते हैं| जैसे:- आर्कीओप्तेरिस्क में सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के लक्षण पाए जाते हैं| इसके आधार पर यह अनुमान लगाया गया हैं कि पक्षियों कि उत्पति सरीसृप वर्ग के प्राणियों से हुई हैं|
(4) जलीय प्राणियों से स्थलीय प्राणियों के विकास क्रम का ज्ञान: वर्गीकरण के अध्ययन से ज्ञात होता हैं कि सरल जलीय जन्तुओ से बहुकोशिकीय जन्तुओ तथा स्थलीय जन्तुओ का विकास हुआ हैं|
इसके अतिरिक्त वर्गीकरण के फलस्वरूप पर्यावरण पारितन्त्र के घटकों, कृषि, एवं इसे हानि पहुचाने वाले जीवो, रोगजनक, रोगवाहक जीवों, जनस्वास्थ्य के घटकों का अध्ययन करने में सुगमता होती हैं|
प्रश्न2. वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे ?
उत्तर: वर्गीकरण के पदानुक्रम में जीवों को विभिन्न लक्षणों के आधार पर छोटे-छोटे समूहों में बांटते हुए वर्गीकरण की आधारभूत इकाई जाती तक पहुच जाते हैं| सबहीं जीवधारियों को उनकी शारीरिक संरचना, पोषण के स्त्रोत भोजन ग्रहण करने की विधि तथा कार्य के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है| विकास क्रम के साथ-साथ शारीरिक लक्षणों में अधिक परिवर्तन होता हैं| विकास क्रम में जो लक्षण सबसे पहले प्रदर्शित होते हैं, उन हें मूल लक्षण कहते हैं| जैव विकास के फलस्वरूप मूल लक्षण में निरंतर परिवर्तन होता हैं| जिससे जीवधारी सफलतापूर्वक जीवनयापन कर सके|
प्रश्न3. जीवों के पांच जगत में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए |
उत्तर: आर० एच०हवितेकर ने समस्त जीवधारियों को कोशिकीय संरचना, पोषण के स्रोत तथा भोजन ग्रहण करने की विधि और शारीरिक संगठन के आधार पर निम्नलिखित पाँच जगत में बांटा गया हैं:-
(1) मोनेरा जगत: इसके अंतर्गत प्रोकरियोटिक एककोशकीय जीवधारियों में रखा गया है| पोषण के आधार पर ये परपोषी या स्वपोषी होते हैं| अधिकांश जीवाणु परपोषी तथा नीले-हरे शैवाल स्वपोषी होते हैं| इनमे प्राय: कोशिका भित्ति पी जाती हैं| जैसे:- जीवाणु कोशिका, एनाबीना शैवाल|
(2) प्रॉटिस्टा जगत: इसके अंतर्गत यूकैरियोटिक, एककोशिकीय जीव पाए जाते हैं| कोशिकाओ में कोशिका भित्ति उपस्थित या अनुपस्थित होती हैं| कोशिका भित्तियुक्त कोशिकाएं पादप जगत तथा कोशका भित्ति रहित कोशिन्काए जंतु जगत की सदस्य होती हैं| जैसे:- अमीबा, पैरामिशियम, यूग्लीना|
(3) फंजाई जगत: इसके अंतर्गत यूकैरियोटिक हरित लवक रहित परपोषी पाए जाते हैं| येन परजीवी या मृतजीवी होते हैं| परजीवी अपना भोजन जीवित पोषद से प्राप्त करते हैं| परजीवी एवं पोषद में घनिष्ट स्मभंध होता हैं| मृतजीवी पोषण के लिए मृत सड़े-गले कार्बनिक पदार्थो में निर्भर करते है | जैसे :- राईजोपस, कुकुरमुत्ता(मशरूम), यीस्ट आदि|
(4) प्लांटी जगत: इसके अंतर्गत बहुकोशिकीय, यूकैरियोटिक कोशिका वाले विकसित पादप आते हैं| येन स्वपोषी होते हैं| प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोज्य पदार्थो का संस्लेषण करते हैं| इसके अंतर्गत थैलोफाईटा, ब्रायोफाईटा , टेरिडोफाईटा, जिम्नोस्पर्म, एंजियोस्पर्म|
(5) एनिमेलिया जगत: इसके अंतर्गत बहुकोशिकीय कोशिका भित्ति रहित यूकैरियोटिक कोशिका वाले जंतु पाए जाते हैं| येन पोषण की दृष्टि से परपोषी होते हैं| इसके अंतर्गत अकशेरुकी तथा कशेरुकी जंतु आते हैं|
प्रश्न4. पादप जगत के प्रमुख वर्ग कौन हैं ? इस वर्गीकरण का क्या आधार हैं?
उत्तर: पादप जगत के प्रमुख वर्ग निम्न हैं :
(1)थैलोफाईटा (2) ब्रायोफाईटा (3) टेरिडोफाईटा (4) जिम्नोस्पर्म (5) एंजियोस्पर्म
पादप जगत के वर्गीकरण के मुख्य आधार:
(i) पादप शारीर के विभिन्न भागो का विकास एवं विभेदन|
(ii) पादप शारीर में जल, खनिज तथा कार्बनिक भोज्य पदार्थो का संवहन करने वाले विशिष्ट ऊतकों की अनुपस्थिति एवं उपस्थिति|
(iii) पादपो में बीजाणु अथवा बीजो द्वारा जनन|
(iv) बीज का नग्न बीजी अथवा आवृतबीजी होना |
प्रश्न5. जन्तुओ और पौधों के वर्गीकरण के आधारो में मूल अंतर क्या हैं?
उत्तर: जन्तुओ और पौधों के वर्गीकरण के आधारो में मूल अंतर निम्नलिखित हैं:
जंतु | पौधे |
1. जंतु प्रचलन अर्थात स्थान परिवर्तन करते हैं| 2. कोशिका भित्ति का आभाव होता हैं| 3. इनमें पर्णहरित का आभाव होता है| 4. येन परपोषी या विषमपोषी होते हैं| 5. जंतु एक निश्चित आयु तक वृद्धि करते हैं| |
1. पौधे स्थिर रहते हैं| 2. कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती हैं| 3. इनमें पर्णहरित पाया जाता हैं| 4. ये स्वपोषी होते हैं| 5. पौधे जीवनपर्यन्त वृद्धि करते रहते हैं| |
प्रश्न6. वर्टीब्रेटा (कशेरुकी प्राणी) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए |
उत्तर: सभी वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणियों) में मेरुदंड पाई जातीं है| यह पृष्ठीय खोखली मेरुरज्जु को घेरे रहती हैं| ग्रसनी विदर प्राय: भ्रूण अवस्था में ही पाए जाते हैं| जलीय जन्तुओ; जैसे मछली की वयस्क अवस्था में क्लोम पाए जाते हैं| मेरुरज्जु का अग्रभाग मष्तिक बनाता हैं|सिर पर नेत्र, कर्ण तथा घ्राणग्राही आदि संवेदी अंग होते हैं| पेंशियाँ अंतः कंकाल से लगी होती हैं| पेंशियाँ तथा अस्थियाँ प्रचलन में सहायक होती हैं|
वर्टीब्रेटा के वर्गीकरण के मुख्य आधार निम्लिखित हैं:-
(i)वयस्क अवस्था में भ्रूण अवस्था में क्लोम विदर का पाया जाना |
(ii) त्वचा पर श्लेष्म ग्रंथिया, स्वेद ग्रंथियां, तेल ग्रंथियां, दुग्ध ग्रंथियाँ आदि का पाया जाना|
(iii) बाह्य कंकाल शल्क, होर्नीप्लेट्स पर बाल से बना होता हैं|
(iv) अंतः कंकाल अस्थि या उपस्थि का बना होता हैं|
(v) श्वशन क्लोम, त्वचा या फेफड़ो द्वारा|
(vi) ह्रदय में वेश्मों की संख्या|
(vii) अग्र्पाद का पंखो में रूपांतरण|
(viii) असमतापी या समतापी|
(ix) अंडज या जरायुज|
(x) अंडे जल में देना या जल से बाहर देना | अंडे कवच युक्त या कवच रहित |