अध्याय-समीक्षा
- पृथ्वी पर जीवन मृदा, वायु, जल तथा सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जैसी संपदाओं पर निर्भर करता है |
- हमें अपनी प्राकृतिक संपदाओं को संरक्षित रखने की आवश्यकता है और उन्हें संपूषनीय रूपों में उपयोग करने की आवश्यकता है |
- यूकैरियोटिक कोशिकाओं और बहुत-सी प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं को ग्लूकोज अणुओं को तोड़ने तथा उससे ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है |
- वायु, जल तथा मृदा का प्रदुषण जीवन की गुणवता और जैव विविधताओं को हानि पहुँचाता है |
- वायु जो पूरी पृथ्वी को कंबल की भांति ढके रहती है वायुमंडल कहलाता है |
- जीवन को आश्रय देने वाला पृथ्वी का घेरा जहाँ वायुमंडल, स्थलमंडल तथा जल मंडल एक दुसरे से मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं उसे जीवमंडल कहते है |
- जीवमंडल के सभी सजीवों को जैव घटक कहा जाता हैं | जैसे- पेड़-पौधे, जंतु एवं सूक्ष्मजीव आदि |
- जीवमंडल के वायु, जल, और मृदा आदि निर्जीव घटकों को अजैव घटक कहते हैं |
- कार्बन डाइऑक्साइड दो विधियों से अलग होती है: (i) हरे पेड़ पौधे सूर्य की किरणों की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड को ग्लूकोज में बदल देते हैं | (ii) बहुत-से समुद्री जंतु समुद्री जल में घुले कार्बोनेट से अपने कवच बनाते हैं |
- जीवमंडल के जैविक और अजैविक घटकों के बीच का सामंजस्य जीवमंडल को गतिशील और स्थिर बनाता है |
- वायु ऊष्मा का कुचालक है |
- वायुमंडल पृथ्वी के औसत तापमान को दिन के समय और यहाँ तक कि पूरे वर्षभर लगभग नियत रखता है |
- वायुमंडल दिन में तापमान को अचानक बढ़ने से रोकता है और रात के समय ऊष्मा को बाहरी अंतरिक्ष में जाने की दर को कम करता है |
- स्थलीय भाग जलीय भाग की तुलना में अधिक जल्दी गर्म एवं ठंढा होता है |
- स्थलीय भाग या जलीय भाग से होने वाले विकिरण के परावर्तन तथा पुनर्विकिरण के कारण वायुमंडल गर्म होता है | गर्म होने पर वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न होती है |
- स्थल के ऊपर की वायु तेजी से गर्म होकर होकर ऊपर उठना शुरू करती है और ऊपर उठते ही वहाँ कम दाब का क्षेत्र बन जाता है और समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित होने लगता है |
- एक क्षेत्र से दुसरे क्षेत्र में वायु की गति पवनों का निर्माण करती है |
- पृथ्वी के विभिन्न भागों का तापमान, पृथ्वी की घूर्णन गति एवं पवन के मार्ग में आने वाली पर्वत श्रृंखलाएँ पवन को प्रभावित करने वाली कारकें हैं |
- वर्षा का पैटर्न, पवनों के पैटर्न पर निर्भर करता है |
- जीवाश्मी ईंधन जैसे कोयला एवं पेट्रोलियम में सल्फर एवं नाइट्रोजन कम मात्रा में पाई जाती हैं जिनको जलाने से सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड जैसे प्रदूषक निकलते है जो वर्षा में मिलकर अम्लीय वर्षा करते हैं |
- जीवाश्मी ईंधनों का दहन वायु में निलंबित कणों की मात्रा को बढ़ा देता है | ये निलंबित कण बिना जले कार्बन कण या पदार्थ हो सकते हैं जिन्हें हाइड्रोकार्बन कहा जाता है |
- जैविक और अजैविक घटकों के बीच का सामंजस्य के द्वारा जीवमंडल के विभिन्न घटकों के बीच पदार्थ और ऊर्जा का स्थानांतरण होता है |
- जल चक्र, नाइट्रोजन चक्र, कार्बन चक्र एवं ऑक्सीजन चक्र आदि को जैव रासायनिक चक्रण कहते हैं |
- जैव रासायनिक चक्रों में अनिवार्य पोषक; जैसे- नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दुसरे रूप में बदलते हैं |
- जीवन की विभिन्न प्रक्रियाओं में स्थलीय जीव-जंतु और पौधे जल का उपयोग करते हैं |
- वायु या कोहरे में प्रदूषकों का भारी मात्रा में उपस्थिति दृश्यता (Visibility) को कम करता है, इसे धूम कोहरा कहते है | धूम कोहरा वायु प्रदुषण की ओर संकेत करता है |
- वायु में हानिकारक पदार्थों की वृद्धि को वायु प्रदुषण कहते हैं |
- सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम में होती हैं |
- सभी प्रतिक्रियाएँ जो हमारे शरीर में या कोशिकाओं के अन्दर होती हैं, वह जल में घुले हुए पदार्थों में होती हैं |
- शरीर के एक भाग से दुसरे भाग में पदार्थों का संवहन घुली हुई अवस्था में होता है |
- स्थलीय जीवों को जीवित रहने के लिए शुद्ध जल की आवश्यकता होती है, क्योंकि खारे जल में नमक किमत्र अधिक होने के कारण जीवों का शरीर सहन नहीं कर पाता है |
- मृदा के ऊपरी परत (भू-पृष्ठ) में पाए जाने वाले खनिज जीवों को विभिन्न प्रकार के पालन-पोषण करने वाले तत्व प्रदान करते हैं |
- शैलों के टूटने से मृदा का निर्माण होता है |
- सूर्य, जल, वायु एवं लाइकेन जैसे जीव, ये सभी मृदा के निर्माण में सहायक कारक हैं |
- मृदा के सबसे ऊपरी परत में सड़े-गले जीवों के अवशेष भी मिले होते है जो मृदा को उपजाऊ बनाते है, मृदा के इस भाग को ह्यूमस कहा जाता है |
- ह्यूमस मृदा को सरंध्र बनाते है जिससे इसमें जल को धारण करने की क्षमता सबसे अधिक होती है |
- कुछ उपयोगी पदार्थों का मृदा से हटना एवं हानिकारक पदार्थों को मृदा में मिलना जो मृदा की उर्वरता को कम करते हैं और उसमें स्थित जैव विविधता को नष्ट कर देते हैं इसे भूमि-प्रदुषण कहते हैं |
- मृदा से मृदा के ऊपरी एवं उपजाऊ भाग का हटना मृदा अपरदन कहलाता है |
- जंगलों का कटना मृदा अपरदन को बढाता है |
- पौधों की जड़ें मृदा अपरदन को रोकती हैं, ये मिट्टी को बांधे रखती हैं |
- जीवन को स्थल पर निर्धारित करने वाले कारकों में जल, तापमान एवं मिट्टी की प्रकृति महत्वपूर्ण कारक हैं |
- जिस चक्र के द्वारा जीव मंडल के विभिन्न घटकों के बीच पदार्थ एवं ऊर्जा का स्थानांतरण होता है | उसे जैव रासायनिक चक्र कहते है |
- जलीय-चक्र, नाइट्रोजन-चक्र, कार्बन-चक्र एवं ऑक्सीजन चक्र ये सभी जैव-रासायनिक चक्र के भाग है |
- जैव रासायनिक चक्रों के द्वारा जीव मंडल के विभिन्न घटकों के बीच पदार्थ एवं ऊर्जा का स्थानांतरण होता है |
- नदी द्वारा बहा कर लाया गया बहुत से पोषक तत्व समुद्र में समुद्री जीवों द्वारा उपयोग किया जाता है |
- विभिन्न जलाशयों जैसे नदियाँ, समुद्रों एवं महासागरों का जल सूर्य की ऊष्मा प्राप्त कर जल वाष्प बन जाते हैं और वर्षा के रूप में पुन: सतह पर गिरते है, फिर सतह से नदियों द्वारा समुद्र या महासागरों में पहुँच जाते है, यह प्रक्रिया जलीय चक्र कहलाता है |
- हमारे वायुमंडल का 78 प्रतिशत भाग नाइट्रोजन गैस है |
- नाइट्रोजन जीवन के लिए आवश्यक बहुत सारे अणुओं जैसे - प्रोटीन, न्युक्लीक अम्ल, डी.एन.ए., आर. एन. ए. तथा कुछ विटामिन का भाग है |
- नाइट्रोजन सभी प्रकार के जीवों के लिए एक आवश्यक पोषक है |