महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:
प्रश्न : मासाई दसमुदाय के चारागाह उनसे क्यो छिन गए ?
उत्तर : मासाई चरवाहे अफ्रीका मे रहते है । मासाई चरवाहे मुख्य रूप से उतरी अफ्रीका मे रहते थे - 3000000 दक्षिण कीनीया मे तथा 150000 तनजानियामें, उपनिवेशी सरकार ने नये कानून बनाकर उनकी प्रभावित किया तथा यहाँ तक कि उन्हे अपने संबध फिर से बनाने पडे ।
कारणः
1. मासाई समुदाय से लगातर उनके चारागाह छिनते रहे । मासाई भूमि उतरी कीनिया से लेकर उतरी तनजानिया तक विस्तृत था । 19वी शताब्दी के अंत मे यूरोपियन साम्राज्यवादी शक्तियो ने अफ्रीका मे उनकी भूमि पर अधिकार कर लिया ।
2. कीनिया में अंग्रेजों ने मसाई लोगों को दक्षिणी भागों में धकेल दिया जबकि जर्मन लोगो ने उन्हें उतरी तंजानिया की ओर धकेल दिया । इसप्रकार वे अपने ही घर में बेगानो जैसा हो गये थें।
3. सम्राज्यवादी देश की भांति अंग्रेजी और जर्मन भी बेकार परती भूमी को जिससे न कोई आय थी और न कर ही मिलती थी उन परती जमीनों को वहाँ के किसानो के बीच बाँट दी और मसाई लोग हाथ मलते रह गये ।
प्रश्न : किन कारणें से चारागाह भूमि में भारी कमी आई ।
उत्तर : निम्नलिखित कारणों से चारागाह भूमि में भारी कमी आई।
1. बेकार परती भूमी जो चारागाहें थीं, जिससे न कोई आय थी और न कर ही मिलती थी उन परती जमीनों को वहाँ के किसानों के बीच बाँट दी।
2. वनों में वन अधिकारीयों नें पशुओं के चराने पर रोक लगा दी । उनका मानना था कि चराई से पौधों की जडें समाप्त हो जाती है। इस प्रकार चारागाहों में तेजी से कमी आई
प्रश्न : भारत में वन क्षेत्र में भारी गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका का वर्णन करें ।
1. रेलवें
2. कृर्षि विस्तार
3. व्यवसायिक खेती
उत्तर -
1. रेलवें के कारण वन-क्षेत्र पर प्रभाव - रेलों के निर्माण और पटरियों के बिछाने में प्रयोग आने वाले लकडी के स्लीपरों ने वन-क्षेत्र को घटाने में एक बडी भूमिका निभाई तथा वन-क्षेत्र काटकर रेल की पटरियां बिछाई गई। इंजन में भी लकडी की कोयला जलाई जाती थी ।
2. कृर्षि विस्तार के कारण वन-क्षेत्र पर प्रभाव - भारत की जनसंख्या बढती जा रही थी जिसके लिए कृर्षि -क्षेत्र का विस्तार करना आवश्यक था । फिर क्या था कृर्षि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों की कटाई अंधाधुन्ध शुरू हो गई । देखते ही देखते ही वन समाप्त होते चले गए।
3. व्यवसायिक कृर्षि का वनों पर प्रभाव - अपने कारखानों को चलाने के लिए तथा अपनी बढती हुई जनसंख्या की भूख मिटाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने स्वयं भारत में पटसन, गन्ना, गेहँू और कपास जैसी व्यवसायिक खेतीयो पर जोर दिया । इस प्रकार भारत के वनों का सफाया होना शुरू हो गया ।
प्रश्न : वनों के आधिन क्षेत्र बढाने की क्या आवश्यकता है ? कारण दों ।
उत्तर : भारत में वनों के आधीन क्षेत्रों वैज्ञानिक माँगों से काफी कम है। यह कुल भूमी क्षेत्र का 19.3 प्रतिशत है जबकि यह कुल भूमी क्षेत्र का 33 प्रतिशत होना चाहिए। अत: हमें वनों के आधिन क्षेत्र बढाने की आवश्यकता है क्योंकि इसके मुख्य कारण निम्नलिखित है।
1. पारिस्थ्तििक तंत्र को बनाये रखने के लिए हमें वनों के आधिन क्षेत्र बढाने की आवश्यकता है|
2. हवा का प्रदूषण कम करते है।
3. ग्लोबल वार्मिंग कम करने में वन हमारी सहायता करते हैं ये वायु से कार्बन डाई आक्साईड को शोषित करते है।
4. वन जीवों को प्राकृतिक निवास प्रदान करते है।
5. वनों का वर्षा लाने में बहुत बडा हाथ होता है। जल कणों को बर्षा की बूदों में परिवर्तित करते है।
6. वन मृदा का संरक्षण करते है और मृदा को पानी के साथ बहने से रोकते है।
प्रश्न : बताइए कि उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पडा ?
उत्तर : उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुनों से चरवाहों के जीवन पर निम्न असर पडा।
1. परती भूमी नियमावली - उपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानुन ‘परती भूमी नियमावली’ में चरागाह जो बंजर भूमि के समान थी ब्रिटिश सरकार ने कृर्षि योग्य बनाने के लिए गांव के मुखिया के सुपुर्द कर दिया जिससे चरागाहें समाप्त सी हो गई।
2. वन - अधिनियम - ब्रिटिश सरकार ने अनेक वन कानून पास कर चरवाहों का जीवन ही बदल दिया । आरक्षित तथा सूरक्षित वनों की श्रेणी के वनों में उनके घुसने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया क्योंकि पशु पौधे के नई कोपलों को खा जाते थे।
3. चराई कर - अपनी आय बढाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पशुओं पर भी कर लगा दिया । कर देने के पश्चात् इन्हें एक पास दिया जाता था । जिसको दिखाकर ही चरवाहे अपनी पशु चरा सकते थें । 1792 ई0 को हुई ।