आध्याय 4. वन्य-समाज एवं उपनिवेशवाद
Q1. औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया:
- झूम खेती करने वालों को
- घुमंतू और चरवाहा समुदायों को
- लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को
- बागान मालिकों को
- शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को
उत्तर:
(i) झूम खेती करने वालों को वन प्रबंधन ने निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित किया |
(a) सरकार ने घुमंतू खेती पर रोक लगाने का फैसला किया तो इसके परिणामस्वरूप
अनेक समुदायों को जंगलों में उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया
गया।
(b) कुछ को अपना पेशा बदलना पड़ा तो कुछ ने छोटे-बड़े विद्रोहों के जरिए प्रतिरोध् किया।
(ii) घुमंतू और चरवाहा समुदायों को भी वन प्रबंधन ने निम्न प्रकार से प्रभावित किया |
(a) वन अधिनियम के चलते देश भर में गाँव वालों की मुश्किलें बढ़ गईं।
इस कानून के बाद घर के लिए लकड़ी काटना, पशुओं को चराना, कंद-मूल-फल इकट्ठा करना आदि रोजमर्रा की गतिविधियाँ गैरकानूनी बन गईं।
(b) अब उनके पास जंगलों से लकड़ी चुराने के अलावा कोई चारा नहीं बचा और पकड़े जाने की स्थिति में वे वन-रक्षकों की दया पर होते जो उनसे घूस ऐंठते थे।
(c) जलावनी लकड़ी एकत्र करने वाली औरतें विशेष तौर से परेशान रहने लगीं।
(d) स्थानीय लोगों द्वारा शिकार करने और पशुओं को चराने पर बंदिशें लगा दी गईं। इस प्रक्रिया में मद्रास प्रेसीडेंसी के कोरावा, कराचा व येरुकुला जैसे अनेक चरवाहे और घुमंतू समुदाय अपनी जीविका से हाथ धो बैठे।
(iii) लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को निम्न प्रकार से प्रभावित किया |
(a) ब्रिटिश सरकार ने कई बड़ी यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों को विशेष इलाकों में वन-उत्पादों के व्यापार की इजारेदारी सौंप दी।
(b) वन-उत्पादों पर पूरी तरह सरकारी नियंत्रण हो गया |
(c) इनमें से कुछ को ‘अपराधी कबीले’ कहा जाने लगा और ये सरकार की निगरानी में
फक्ट्रियों, खदानों व बागानों में काम करने को मजबूर हो गए।
(iv) बागान मालिकों को निम्न प्रकार से प्रभावित किया |
(a) यूरोप में चाय, कॉफ़ी रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बने और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों का एक भारी हिस्सा साफ किया गया। (b) औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अपने कब्जे में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत सस्ती दरों पर यूरोपीय बागान मालिकों को सौंप दिया।
(c) इन इलाकों की बाड़ाबंदी करके जंगलों को साफ कर दिया गया और चाय-कॉफ़ी लगी।
(v) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को निम्न प्रकार से प्रभावित किया |
(a) शिकार करते हुए पकड़े जाने वालों को अवैध् शिकार के लिए दंडित किया जाने लगा।
(b) औपनिवेशिक शासन के दौरान शिकार का चलन इस पैमाने तक बढ़ा कि कई प्रजातियाँ लुप्त हो गई |
(c) हिंदुस्तान में बाघों और दूसरे जानवरों का शिकार करना सदियों से दरबारी और नवाबी संस्कृति का हिस्सा रहा था। अनेक मुगल कलाकृतियों में शहशादों और
सम्राटों को शिकार का मजा लेते हुए दिखाया गया है।
(d) वन कानूनों ने लोगों को शिकार के परंपरागत अधिकार से वंचित किया, वहीं बड़े जानवरों का आखेट एक खेल बन गया।
Q2. बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंधन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर: बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबंधन में निम्नलिखित समानताएँ थी |
(i) बस्तर में अंग्रेजों ने तो जावा में डचों ने वनों को आरक्षित कर दिया और बिना इजाजत वन संपदा का उपयोग और प्रवेश वर्जित कर दिया गया |
(ii) अंग्रेजों की तरह ही डच उपनिवेशकों ने जावा में वन-कानून लागू कर ग्रामीणों की जंगल तक पहुँच पर बंदिशें थोप दीं।
(iii) बस्तर के गाँवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन-विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई का काम मुफ्त करेंगे और जंगल को आग से बचाए रखेंगे। जबकि जावा में भी डचों ने कुछ गाँवों को इस शर्त पर इससे मुक्त कर दिया कि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए भैंसें उपलब्ध् कराने का काम मुफ्त किया करेंगे।
(iv) भारत में बस्तर की ही तरह जावा में भी जहाज और रेल-लाइनों के निर्माण के अपने उद्देश्य के लिए औपनिवेशिक सरकरों ने वन-प्रबंधन और वन-सेवाओं को लागू किया गया |
Q3. सन् 1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ:
- रेलवे
- जहाज निर्माण
- कृषि-विस्तार
- व्यावसायिक खेती
- चाय-कॉफी के बागान
- आदिवासी और किसान
उत्तर : वनों के आधीन क्षेत्र के कम होने में उपरोक्त कारकों की निम्न भूमिका रही |
(1) रेलवे :
(i) रेल लाइनों के प्रसार के साथ-साथ बड़ी तादाद में पेड़ भी काटे गए। अकेले मद्रास प्रेसीडेंसी में 1850 के दशक में प्रतिवर्ष 35, 000 पेड़ स्लीपरों के लिए काटे गए।
(ii) सरकार ने आवश्यक मात्रा की आपूर्ति के लिए निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया। रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे।
(iii) 1850 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ने लकड़ी के लिए एक नई तरह की माँग पैदा कर दी। शाही सेना के आवागमन और औपनिवेशिक व्यापार के लिए रेल लाइनें अनिवार्य थीं।
(iv) इंजनों को चलाने के लिए ईंधन के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए ‘स्लीपरों’ के रूप में लकड़ी की भारी जरूरत थी।
(2) जहाज निर्माण :
(i) औपनिवेशिक शासकों को अपनी नौ-सेना की शक्ति बढ़ाने के लिए और व्यापारिक जहाजों के निर्माण के लिए भारी मात्रा में इमारती लकड़ियों की आवश्यकता थी |
(ii) वन-विभाग को ऐसे पेड़ों की जरूरत थी जो जहाजों और रेलवे के लिए इमारती लकड़ी मुहैया करा सकें, ऐसी लकडि़याँ जो सख्त, लंबी और सीधी हों। इसलिए सागौन और साल जैसी प्रजातियों को प्रोत्साहित किया गया और दूसरी किस्में काट डाली गईं।
(3) कृषि-विस्तार :
(i) आबादी बढ़ने से खाद्य पदार्थों की माँग में वृद्धि से वनों को काटकर कृषि कार्य किया जाने लगा ।
(ii) औपनिवेशिकाल में खेती में बेहताशा वृद्धि हुई कृषि-उत्पादों का भारत और समस्त यूरोप में माँग बढ़ने लगी और इसप्रकार कृषि-विस्तार के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई शुरू हो गई |
(4) व्यावसायिक खेती:
(i) व्यावसायिक खेती का अर्थ नकदी फसल उगाने से है | इन फसलों में में गन्ना, गेंहू जूट (पटसन) तथा कपास आदि की फसलें शामिल हैं |
(ii) 19 वीं शताब्दी में व्यावसायिक फसलों की माँग बढ़ गई | इसके लिए वनों की कटाई कर कृषि-योग्य भूमि प्राप्त की गई | अब जंगलों को काट कर नकदी फसलें उगाई जाने लगी |
(5) चाय-कॉफ़ी के बागान :
(i) यूरोप में चाय और कॉफ़ी की माँग बढ़ने से औपनिवेशिक सरकार ने वनों के आधीन बड़े भूभाग को काट कर बागान मालिकों को सस्ते दामों पर बेंच दिया गया | अब इन बागानों में चाय, कॉफी और रबड की खेती होने लगी ।
(6) आदिवासी और किसान : आदिवासी और किसान झोपड़ियाँ आदि बनाने के लिए वनों से लकड़ियाँ और पेड़ों को काटते थे | वनों के आस-पास रहने वाले किसान और आदि वासी पूरी तरफ वन उत्पादों पर ही निर्भर रहते थे | वे भी अपनी आवश्यकताओं के लिए वनों की कटाई करते थे |
Q4. युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं ?
उत्तर: युद्धों के वनों पर प्रभाव निम्नलिखित हैं -
(i) युद्धों से जंगल प्रभावित होते हैं उदाहरणार्थ: प्रथम विश्व युद्ध (1914 - 1928) तथा द्वितिय विश्व युद्ध ने वनो पर बडा भारी प्रभाव डाला था। भारत में जो भी लोग पौधो पर काम कर रहे थें, उन्हे काम छोडना पडा था।
(ii) अनेक आदिवासियो ने, किसानों ने एवं अन्य उपयोग कर्ताओ ने युद्धों एवं लडाईयों के लिए जंगलों में कृषि के विस्तार के लिए प्रयोग किया ।
(iii) युद्ध के उपरांत इन्डोंनेशिया के लोगों के लिए वनों एवं उससे जुडी भुमी को पुनः वापस पाना बडा कठिन था ।
(iv) जावा में द्वितिय विश्व युंद्ध के दौरान जापानियों के हाथों में वनों की सम्पदा को बनाने के लिए जावा स्थित साम्राज्य के वनों में डचों ने स्वयं वनों में आग लगा दी थी ।
(v) भारत में तमाम चालू कार्ययोजनाओं को स्थगित करके वन विभाग ने अंग्रेजों की जंगी जरूरतों को पूरा करने के लिए बेतहाशा पेड़ काटे।