अतिरिक्त - प्रश्न:
प्रश्न: ब्रिटिश शासन में घुमंतू कास्तकारों के सामने कौन-सी समस्या थी ?
उत्तर:
(i) उन्होंने जमीन को माप कर प्रति एक व्यक्ति का हिस्सा तय कर दिया |
(ii) उन्होंने यह भी तय कर दिया की किसे कितना लगान देना होगा |
(iii) कुछ ही किसानों को भू-स्वामी और दूसरों को पट्टेदार घोषित कर दिया गया |
(iv) पट्टेदार अपने भू-स्वामियों का भाड़ा चुकाते थे और भू-स्वामी सरकार को लगान देते थे |
प्रश्न: दिकुओं से आदिवासियों के गुस्से के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(i) आदिवासी अपने आस-पास आ रहे बदलाओं और अंग्रेज शासन के कारण पैदा हो रही समस्याओं से बेचैन थे |
(ii) उनकी परिचित जीवन पद्धति नष्ट होती दिखाई दे रही थी |
(iii) उनकी आजीविका खतरे में थी |
(iv) उनके धर्म छिन्न-भिन्न हो रहे थे |
प्रश्न: वन कानूनों में आये बदलाओं से आदिवासियों के जीवन पर क्या असर पड़ा ?
उत्तर:
(i) अंग्रेजों ने सारे जंगलों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था और जंगलों को राज्य की सम्पति घोषित कर दिया था |
(ii) कुछ जंगलों को आरक्षित वन घोषित कर दिया गया, ये ऐसे जंगल थे जहाँ अंग्रेजों की जरूरतों के लिए इमारती लकड़ी पैदा होती थी |
(iii) इन जंगलों में लोगों को स्वतंत्र रूप से घूमने, झूम खेती करने, फल इक्कठा करने या पशुओं का शिकार करने की इजाजत नहीं थी |
प्रश्न: औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं की ताकत में क्या बदलाव आया ?
उत्तर:
(i) उन्हें कई-कई गांवों पर जमीन का मालिकाना हक तो मिला, लेकिन उनकी शासकीय शक्तियाँ छीन लीं गई |
(ii) उन्हें ब्रिटिश अधिकारीयों द्वारा बनाये गए नियमों को मानने के लिए बाध्य कर दिया गया |
(iii) उन्हें अंग्रेजों को नज़राना देना पड़ता था |
(iv) अंग्रेजों के प्रति निजी की हैसियत से अपने समूहों को अनुशासन में रखना होता था |
(v) पहले जो उनके पास जो ताकत थी अब वो नहीं रही |
(vi) परम्परागत कामों को करने के लिए लचार हो गए |
प्रश्न: बिरसा की कल्पना युग में स्वर्ण युग किस तरह का था ?
उत्तर: वे स्वर्ण युग सतयुग की चर्चा करते थे, जिसमें मुंडा लोग अच्छा जीवन जीते थे, तटबंध बनाते थे, पेड़ और बाग़ लगाते थे, पेट पालने के लिए खेती करते थे और कुदरती झरनों को नियंत्रित करते थे | बिरसा चाहते थे कि लोग एक बार फिर अपनी जमीन पर खेती करे और एक जगह टिक कर रहे | वे अपनी ही खेत पर काम करे | उस काल्पनिक युग में मुंडा अपनी बिरादरियों और रिश्तेदारों का खून नहीं बहायें और वे ईमानदारी से जीयें |
प्रश्न: झूम खेती कैसे की जाती है ?
उत्तर: इस तरह की खेती अधिकांशत: जंगलों में छोटे-छोटे भूखंडों पर की जाती थी | जिसमें जंगल के घास-फूसों को जलाकर खेतों में छिड़क दिया जाता था और उसपर खेती की जाती थी जब खेतों की उपजाऊकता समाप्त हो जाती थी तो उस जगह को छोड़ दूसरी जगह खेती करने चले जाते थे |
प्रश्न: बिरसा आन्दोलन किन दो मायनों में महत्वपूर्ण था ?
उत्तर:
(i) इसने औपनिवेशिक सरकार को ऐसा कानून लागु करने के लिए मजबूर किया जिसके जरिये दिकु (बाहरी) लोग आदिवासियों के जमीं पर असानी से कब्ज़ा न कर सके |
(ii) इसने एक बार फिर साबित कर दिया कि अन्याय का विरोध करने और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपने गुस्से को अभिव्यक्त करने में आदिवासी सक्षम है |
प्रश्न: भारत के कुछ चरवाहे समुदायों के नाम बताइए |
उत्तर:
(1) पंजाब - वन-गुज्जर
(2) आन्ध्र-प्रदेश - लबाडिया
(3) कुल्लू - गड़ेरिये
(4) कश्मीर - बक्करवाल
प्रश्न: घुमंतू कास्तकारों में ब्रिटिश शासन के समय कौन-कौन सी समस्याएँ आयीं ?
उत्तर:
(i) घुमंतू काश्तकार एक जगह टिक कर नहीं रहते थे |
(ii) ऐसे समुहों से अंग्रेजों को काफी परेशानी थी जो यहाँ वहाँ भटकते थे |
(iii) वे चाहते थे कि आदिवासियों के समूह एक जगह स्थायी रूप से रहे और खेती करे |
(iv) स्थायी रूप से रहने वाले किसानों को नियंत्रित करना आसान था |
(v) अंग्रेज अपने शासन के लिए नियमित स्रोत भी चाहते थे |
प्रश्न: झूम काश्तकारों को स्थायी रूप से बसाने की अंग्रेजी कोशिश बहुत कामयाब नहीं रही | इसकी पुष्टि के लिए तीन तर्क दीजिए |
उत्तर:
(i) अंग्रेजी शासन झूम काश्तकारों के जीवन में परिवर्तन चाहती थी | वे चाहती थी कि वे स्थायी रूप से एक जगह काम करे | जबकि काश्तकारों की अपनी समस्यायें थी |
(ii) वे कम पानी और सुखी मिट्टी वाले खेतों में हल से खेती नहीं कर पाते थे अक्सर उनकों नुकसान होता था और उपज कम होती थी |
(iii) पूर्वोत्तर राज्यों के झूम काश्तकार इस बात पर अड़े रहे कि उन्हें परंपरागत ढंग से ही जीने दिया जाय | व्यापक विरोध के फलस्वरूप अंग्रेजों को उनकी बात माननी पड़ी और उन्हें घुमंतू खेती में छुट दे दी गई |
प्रश्न: ब्रिटिश अफसरों को आदिवासी समूह शिकारी-संग्राहक या झूम काश्तकारों के मुकाबले गोंड एवं संस्थाल समूह अधिक सभ्य क्यों दिखाई देते थे ?
उत्तर: ब्रिटिश अफसरों को आदिवासी समूह शिकारी-संग्राहक या झूम काश्तकारों के मुकाबले गोंड एवं संस्थाल समूह अधिक सभ्य दिखाई देते थे क्योंकि
(i) जंगलों में रहने वालों को बर्बर और जंगली माना जाता था |
(ii) अंग्रेजों को लगता था कि उन्हें स्थायी रूप से एक जगह बसाना और सभ्य बनाना जरुरी है |
(iii) गोंड एवं संस्थाल समूह एकजगह टिक कर स्थायी रूप से रहते थे जबकि शिकारी-संग्राहक या झूम काश्तकार घुमंतू जीवन जीते थे |
प्रश्न: बिरसा-मुंडा की क्या शिक्षाएँ दी |
उत्तर: बिरसा-मुंडा ने निम्न शिक्षाएँ दी |
(i) उन्होंने शुद्धता एवं दया पर जोर दिया |
(ii) उन्होंने शराब छोड़ने और गांवों को साफ रखने पर जोर दिया |
(iii) उन्होंने मुंडाओं से आह्वान किया कि वे डायन व जादू-टोने पर विश्वास न करे |
प्रश्न: बिरसा आन्दोलन का क्या उदेश्य था ?
उत्तर: बिरसा आन्दोलन आदिवासी समाज को सुधारने का आन्दोलन था | जिसके निम्न कारण था |
(i) ईसाई मशीनरियां एवं हिन्दू जमींदार आदिवासियों के जीवन शैली को नष्ट कर रहे थे |
(ii) अंग्रेजों की भू-नीतियाँ उनकी परम्परागत भूमि व्यवस्था को नष्ट कर रही थी |
(iii) हिन्दू-भू-स्वामी और महाजन उनकी जमीनों को छिनते जा रहे थे |
(iv) ईसाई मशीनरियां उनकी परम्परागत संस्कृति की आलोचना करते थे |