1. हमारे आस-पास के पदार्थ
(Science-IX)
वाष्पीकरण
वाष्पीकरण (Evaporation) : क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते है |
वाष्पीकरण की प्रक्रिया (The process of Evaporation) : पदार्थ के कण हमेशा गतिशील होते है और कभी रुकते नहीं | एक निश्चित तापमान पर गैस, द्रव या गैस के कणों में विभिन्न मात्रा में गतिज ऊर्जा होती है | द्रवों में सतह पर स्थित कणों के कुछ अंशों में इतनी गतिज ऊर्जा होती है कि वे दुसरे कणों के आकर्षण बल से मुक्त हो जाते है, और धीरे-धीरे वाष्पीकृत होने लगता है |
क्वथनांक (Boiling Point) : वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान जिस पर कोई द्रव उबलने लगता है, वह तापमान उस द्रव का क्वथनांक कहलाता है | जैसे : जल 373 K अर्थात 100 oC तापमान पर उबलने लगता है, इसलिए जल का क्वथनांक 373 K है |
गलनांक (Melting Point) : जिस तापमान पर ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है, वह तापमान उस ठोस पदार्थ का गलनांक कहलाता है | जैसे : बर्फ का गलनांक 273.16 K है | अर्थात बर्फ 273.16 K ताप पर गलने लगता है |
गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) : जब कोई पदार्थ गलने की प्रक्रिया के दौरान अपने गलनांक पर पहुंचता है तो इसे और अधिक ताप बढ़ाने के बाद भी यह तापमान में बिना किसी वृद्धि दर्शाए पदार्थ की अवस्था को बदलता रहता है | ऐसा पदार्थ द्वारा उस उष्मीय ऊर्जा को अवशोषित कर लेने के कारण होता है | यह ऊष्मा पदार्थ और बर्तन में छुपी रहती है | इसे ही गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) कहते है |
संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Fussion) : वायुमंडलीय दाब पर 1 kg ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जीतनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे संगलन की प्रसुफ्त ऊष्मा कहते है |
जैसे - 0 oC (273 K) ताप पर जल के कणों की ऊर्जा उसी तापमान पर बर्फ के कणों की ऊर्जा से अधिक होती है | क्योंकि जल के कणों की ऊर्जा उसकी संगलन की गुप्त ऊष्मा होती है | जो जल के कणों द्वारा अवशोषित होती है |
वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Evaporation) : वायुमंडलीय दाब पर 1 kg द्रव या गैस को उसके क्वथनांक पर वाष्पीकृत होने के लिए जितनी उष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वह ऊष्मा वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहलाता है |
ठीक इसी प्रकार 373 K (100 oC) तापमान पर भाप अर्थात वाष्प के कणों उसी तापमान पर पानी के कणों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा होती है, ऐसा इसलिए है क्योंकि भाप के कण वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा के रूप में अतिरिक्त ऊष्मा अवशोषित कर लेता है |
वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक :
(1) सतह क्षेत्र बढ़ने पर :
(2) तापमान में वृद्धि :
(3) आर्द्रता में कमी :
(4) वायु की गति में वृद्धि :
(1) सतह क्षेत्र बढ़ने पर : वाष्पीकरण एक सतही प्रक्रिया है, सतह बढ़ने से वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वाष्पीकरण के दौरान अधिक सतह मिलाने से पदार्थ के कणों को आस-पास से अधिक से अधिक ऊष्मा अवशोषित करने के लिए मिलता है जिससे कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है और वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है |
(2) तापमान में वृद्धि : तापमान बढ़ने पर कणों को अधिक से अधिक गतिज ऊर्जा मिलती है जिससे वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है |
(3) आर्द्रता में कमी : वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते है | वायु में उपस्थित जलवाष्प के कणों की मात्रा उष्मीय ऊर्जा को कम करती है जिससे वाष्पीकरण की दर घट जाती है |
(4) वायु की गति में वृद्धि : वायु के तेज होने से जलवाष्प के कण तेजी से वायु के साथ उड़ जाते है जिससे आस-पास के जलवाष्प की मात्रा घट जाती है और वाष्पीकरण असानी से होने लगता है |
वाष्पीकरण के कारण शीतलता : वाष्पीकरण के दौरान द्रव निरन्तर अपनी ऊर्जा खोता रहता है और इस खोई हुई ऊर्जा को पुन: प्राप्त करने के लिए द्रव के कण अपने आस-पास से ऊर्जा अवशोषित कर लेते है और वाष्पीकृत हो जाते है, जिससे आस-पास शीतलता आ जाती है | उदहारण : मिट्टी के घड़े में रखे पानी का ठंडा होना, हथेली पर इत्र, एसीटोन या पेट्रोल गिरने पर ठंडक महसूस होना, गर्मियों में कूलर से ठंडक होना आदि |