कीटभक्षी पादप : कुछ पादपों में घड़े जैसी संरचना होती है जो पौधे के पत्तियों के रूपांतरित भाग होते हैं और इसके पत्ते का शीर्ष भाग इस घड़े का ढक्कन का कार्य करता है | जब कोई कीट घड़े में प्रवेश करता है, तो यह उसके रोमों के बीच फंस जाता है | घड़े में उपस्थिति पाचक रस द्वारा फंसे हुए कीट का पाचन हो जाता है | कीटों के भक्षण करने वाले ऐसे पादपों को कीटभक्षी पादप कहते है |
उदाहरण : घाटपर्णी
कीटभक्षी पादप - घटपर्णी
सहजीवी संबंध (Symbiotic Relationship):
कुछ जीव एक-दूसरे के साथ रहते हैं तथा अपना आवास एवं पोषक तत्त्व एक-दूसरे के साथ बाँटते हैं। इसे सहजीवी सम्बंध् कहते हैं।
उदाहरणतः कुछ कवक वृक्षों की जड़ों में रहते हैं। वृक्ष कवक को पोषण प्रदान करते हैं, बदले में उन्हें जल एवं पोषकों के अवशोषण में सहायता मिलती है। वृक्ष के लिए इस संबंध् का विशेष महत्व है।
सहजीवी संबंध बनाने वाले जीव का उदाहरण : लाइकेन जो एक कवक प्रजाति का जीव है |
कवक और शैवाल में सहजीवी संबंध:
शैवाल में क्लोरोफिल उपस्थित होता है, जबकि कवक में क्लोरोफिल नहीं होता। कवक शैवाल को रहने का स्थान (आवास), जल एवं पोषक तत्त्व उपलब्ध् कराता है तथा बदले में शैवाल प्रकाश संश्लेषण द्वारा संश्लेषित खाद्य कवक को देता है।
फलीदार पौधों की जड़ों में जीवाणु : राइजोबियम नामक जीवाणु चना, मटर, मुंग, सेम तथा अन्य फलीदार पादपों की जड़ों में रहते है और उन्हें नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं | वे वायुमंडलीय नाइट्रोजन को विलय पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं। चूँकि पौधे नाइट्रोजन को विलेय रूप में ही अवशोषित कर सकते हैं। बदले में पादप राइजोबियम जीवाणु को आवास और खाद्य प्रदान करते हैं | इनमें भी सहजीवी संबंध होता है |
दालों की फसलों में नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती :
राइजोबियम नामक जीवाणु चना, मटर, मुंग, सेम तथा अन्य फलीदार पादपों की जड़ों में रहते है और उन्हें वायुमंडल से नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं | यही कारण है कि दालों की फसलों के लिए उन्हें मृदा में नाइट्रोजनी उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं
पड़ती। यही नहीं दाल की फसल उगाने के बाद अगली फसल के लिए भी सामान्यतः उर्वरकों की आवश्यकता नहीं रहती।