तिब्बत समस्या : भारत और चीन के बीच विवाद का एक कारण तिब्बत समस्या है | 29 अप्रैल 1954 को भारत ने कुछ शर्तों के साथ तिब्बत पर चीन के अधिपत्य को स्वीकार किया था | दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धांतों को माना और विश्वास व्यक्त किया | मार्च, 1957 में तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने चीनियों की दमन की नीतियों से भयभीत होकर भारत में शरण ले ली | तभी से तिब्बत भारत एवं चीन के बीच एक बड़ा मशला बना हुआ है |
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दलाई लामा का भारत में शरण लेने का कारण :
1956 में चीनी शासनाध्यक्ष चाऊ एन लाई भारत के अधिकारिक दौरे पर आए तो साथ ही साथ तिब्बत के धर्मिक नेता दलाई लामा भी भारत पहुँचे। उन्होंने तिब्बत की बिगड़ती स्थिति की जानकारी नेहरू को दी। चीन आश्वासन दे चुका था कि तिब्बत को चीन के अन्य इलाकों से कहीं ज्यादा स्वायत्तता दी जाएगी। 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीन की सेनाओं ने दबा दिया। स्थिति बिगड़ती देखकर तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाई लामा ने सीमा पारकर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध् किया।
तिब्बती शरणार्थियों की सहायता में भारत की भूमिका : तिब्बती शरणार्थियों की सहायता में भारत की भूमिका निम्नलिखित है -
(i) जब तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाई लामा ने सीमा पारकर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी।
(ii) हालाँकि चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध् किया। पिछले 50 सालों में बड़ी संख्या में तिब्बती जनता ने भारत और दुनिया के अन्य देशों में शरण ली है।
(iii) भारत में (खासकर दिल्ली में) तिब्बती शरणार्थियों की बड़ी-बड़ी बस्तियाँं हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बती शरणार्थियों की सबसे बड़ी बस्ती है।
(iv) दलाई लामा ने भी भारत में धर्मशाला को ही अपना निवास-स्थान बनाया है।
(v) 1950 और 1960 के दशक में भारत के अनेक राजनीतिक दल और राजनेताओं ने तिब्बत की आज़ादी के प्रति अपना समर्थन जताया। जिसमें सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ जैसी पार्टियाँ प्रमुख हैं |
भारत और चीन के बीच तनाव का कारण :
(i) तिब्बत समस्या : ऐतिहासिक रूप से तिब्बत भारत और चीन के बीच विवाद का एक बड़ा मसला रहा है। अतीत में समय-समय पर चीन ने तिब्बत पर अपना प्रशासनिक नियंत्रण जताया और कई दफा तिब्बत आजाद भी हुआ। 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया।
(ii) सीमा विवाद : सीमा विवाद को लेकर भारत का दावा था कि चीन के साथ सीमा-रेखा का मामला अंग्रेजी-शासन के समय ही सुलझाया जा चुका है। लेकिन चीन की सरकार का कहना था कि अंग्रेजी शासन के समय का फैसला नहीं माना जा सकता।
तिब्बत समस्या :
(i) ऐतिहासिक रूप से तिब्बत भारत और चीन के बीच विवाद का एक बड़ा मसला रहा है। अतीत में समय-समय पर चीन ने तिब्बत पर अपना प्रशासनिक नियंत्रण जताया और कई दफा तिब्बत आजाद भी हुआ। 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया।
(ii) तिब्बत के ज्यादातर लोगों ने चीनी कब्जे का विरोध् किया। 1954 में जब भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर हुए तो इसके प्रावधनों में एक बात यह भी शामिल थी कि दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करेंगे। चीन ने इस प्रावधन का अर्थ लगाया कि भारत तिब्बत पर चीनी दावेदारी की बात को स्वीकार कर रहा है।
(iii) 1956 में चीनी शासनाध्यक्ष चाऊ एन लाई भारत के अधिकारिक दौरे पर आए तो साथ ही साथ तिब्बत के धर्मिक नेता दलाई लामा भी भारत पहुँचे। उन्होंने तिब्बत की बिगड़ती स्थिति की जानकारी नेहरू को दी। चीन आश्वासन दे चुका था कि तिब्बत को चीन के अन्य इलाकों से कहीं ज्यादा स्वायत्तता दी जाएगी।
(iv) 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीन की सेनाओं ने दबा दिया। स्थिति बिगड़ती देखकर तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाई लामा ने सीमा पारकर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। चीन ने भारत के इस कदम का कड़ा विरोध् किया।
(v) पिछले 50 सालों में बड़ी संख्या में तिब्बती जनता ने भारत और दुनिया के अन्य देशों में शरण ली है। भारत में खासकर दिल्ली में तिब्बती शरणार्थियों की बड़ी-बड़ी बस्तियाँं हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में संभवतया तिब्बती शरणार्थियों की सबसे बड़ी बस्ती है।
(vi) चीन ने ‘स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र’ बनाया है और इस इलाके को वह चीन का अभिन्न अंग मानता है। तिब्बती जनता चीन के इस दावे को नहीं मानती कि तिब्बत चीन का अभिन्न अंग है। ज्यादा से ज्यादा संख्या में चीनी बंदिशों को तिब्बत लाकर वहांँ बसाने की चीन की नीति का तिब्बती जनता ने विरोध् किया।
(vii) तिब्बती चीन के इस दावे को भी नकारते हैं कि तिब्बत को स्वायत्तता दी गई है। वे मानते हैं
कि तिब्बत की पारंपरिक सांकृतिक और धर्म को नष्ट करके चीन वहाँ साम्यवाद फैलाना चाहता है।
भारत चीन सीमा विवाद :
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद भी दोनों देशों के बीच तनाव का एक प्रमुख कारण रहा है | यह समस्या निम्नलिखित थी |
(i) सीमा विवाद को लेकर भारत का दावा था कि चीन के साथ सीमा-रेखा का मामला अंग्रेजी-शासन के समय ही सुलझाया जा चुका है। लेकिन चीन की सरकार का कहना था कि अंग्रेजी शासन के समय का फैसला नहीं माना जा सकता।
(ii) मुख्य विवाद चीन से लगी लंबी सीमा-रेखा के पश्चिमी और पूर्वी छोर के बारे में था। चीन ने भारतीय भू-क्षेत्र में पड़ने वाले दो इलाकों-जम्मू-कश्मीर के लद्दाख वाले हिस्से के अक्साई-चीन और अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना अधिकार जताया।
(iii) अरुणाचल प्रदेश को उस समय नेफा या उत्तर-पूर्वी सीमांत कहा जाता था। 1957 से 1959 के बीच चीन ने अक्साई-चीन इलाके पर कब्ज़ा कर लिया और इस इलाके में उसने रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए एक सड़क बनाई।
(iv) दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच लंबी-लंबी चर्चाएँ और बातचीत चली लेकिन इसके बावजूद मतभेद को सुलझाया नहीं जा सका। दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीमा पर कई बार झड़प हुई।
भारत चीन युद्ध के बाद देश की छवि पर प्रभाव: जहाँ भारत की छवि को देश और विदेश दोनों ही जगह धक्का लगा। इस संकट से उबरने के लिए भारत को अमरीका और ब्रिटेन दोनों से सैन्य मदद की गुहार लगानी पड़ी। सोवियत संघ इस संकट की घड़ी में तटस्थ बना रहा। चीन-युद्ध से भारतीय
राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुँची लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्र-भावना भी बलवती हुई। कुछ प्रमुख सैन्य-कमांडरों ने या तो इस्तीफा दे दिया या अवकाश ग्रहण कर लिया। नेहरू के नजदीकी सहयोगी और तत्कालीन रक्षामंत्री वी. के. कृष्णमेनन को भी मंत्रिमंडल छोड़ना पड़ा। नेहरू की छवि भी थोड़ी धूमिल हुई। चीन के इरादों को समय रहते न भाँप सकने और सैन्य तैयारी न कर पाने को लेकर नेहरू की बड़ी आलोचना हुई। पहली बार, उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और लोकसभा में इस पर बहस हुई। इसके तुरंत बाद, कांग्रेस ने कुछ महत्त्वपूर्ण उप-चुनावों में पटखनी खाई ।