विजय नगर के शासकों द्वारा अमरनायकों पर नियंत्रण :
अमर नायकों पर नियंत्रण बनाने के लिए समय-समय पर उन्हें एक स्थान से दुसरे स्थान पर स्थान्तरित किया जाता था | परन्तु शासकों की यह निति पूरी तरह सफल नहीं रही | 17 वीं शताब्दी में कई अमरनायकों ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था |
विजयनगर के बारे में जानकारी के स्रोत :
(i) फोटोग्राफ
(ii) नक्शा
(iii) संरचनाओं के खड़े रेखाचित्र
(iv) मुर्तिया
महलों, मंदिरों तथा बाजारों का अंकन :
(i) मैकेंजी द्वारा किए गए आरंभिक सर्वेक्षणों के बाद यात्रा वृत्तांतों और अभिलेखों से मिली जानकारी को एक साथ जोड़ा गया।
(ii) बीसवीं शताब्दी में इस स्थान का संरक्षण भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण तथा कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग द्वारा किया गया।
(iii) 1976 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल के रूप में मान्यता मिली। तदोपरांत 1980 के दशक के आरंभ में विविध प्रकार के अभिलेखन प्रयोग से, व्यापक तथा गहन सर्वेक्षणों के माध्यम से,
विजयनगर से मिले भौतिक अवशेषों के सूक्ष्मता से प्रलेखन की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना का शुभारंभ किया गया।
(iv) लगभग बीस वर्षों के काल में पूरे विश्व के दर्जनों विद्वानों ने इस जानकारी को इकठ्ठा और
संरक्षित करने का कार्य किया।
(v) हजारों संरचनाओं के अंशों-छोटे देवस्थलों और आवासों से लेकर विशाल मन्दिरों तक-को पुनः उजागर किया गया। उनका प्रलेखन भी किया गया। इस सबके कारण सड़कों, रास्तों और बाजारों आदि के अवशेषों को पुनः प्राप्त किया जा सका है।
जॉन एम. फ्रिट्ज, जॉर्ज मिशेल तथा एम. एस. नागराज राव द्वारा लिखी गयी बात :
जॉन एम. फ्रिट्ज, जॉर्ज मिशेल तथा एम. एस. नागराज राव जिन्होंने इस स्थान पर वर्षों तक कार्य किया, ने जो लिखा वह याद रखना महत्त्वपूर्ण हैः विजयनगर के स्मारकों के अपने अध्ययन में हमें नष्ट हो चुकी लकड़ी की वस्तुओं-स्तंभ, टेक (ब्रेकेट), धरन, भीतरी छत, लटकते हुए छज्जों के अंदरूनी भाग तथा मीनारों-की एक पूरी श्रेणी की कल्पना करनी पड़ती है जो प्लास्टर से सजाए और संभवतः चटकीले रंगों से चित्रित थे |"