उत्तरी भारत में धार्मिक उफान :
(i) उत्तरी भारत में विष्णु और शिव जैसे देवताओं की उपासना मंदिरों में की जाती थी जिन्हें शासकों की सहायता से निर्मित किया जाता था।
(ii) उतरी भारत के राज्यों में ब्राह्मणों का उच्च स्थान था और वे ऐहिक तथा आनुष्ठानिक दोनों ही कार्य करते थे |
(iii) इस समय वे धार्मिक नेता जो रुढ़िवादी ब्रह्मनीय सांचे से बाहर थे, उनके प्रभाव में विस्तार हो रहा था | उनमे से बहुत लोग शिल्पी समुदाय या जुलाहे समुदाय से थे |
(iv) ऐसे नेताओं में नाथ, जोगी, सिद्ध आदि शामिल थे |
(v) अनेक नवीन धार्मिक नेताओं ने वेदों कि सत्ता को चुनौती दी और विचार आम लोगों के सामने रखे |
जजिया कर : मुग़ल शासकों द्वारा गैर-मुसलमानों से धार्मिक कर लिया जाता था जिसके बदले वे अपना धार्मिक कार्य और उपासना स्वतंत्रपूर्वक कर सकते थे | इसे जजिया कर कहा जाता था |
सूफी/सूफीमत : इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में धार्मिक और राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढ़ती विषयशक्ति के विरुद्ध कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव बढ़ा, इन्हें सूफी कहा जाने लगा।
सूफीमत कि विशेषताएँ :
(i) सूफी लोगों ने रुढ़िवादी परिभाषाओं तथा धर्माचार्यों द्वारा की गई कुरान और सुन्ना कि बौद्धिक व्याख्या कि आलोचना की |
(ii) उन्होंने मुक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया।
(iii) उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद को इंसान-ए-कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने की सीख दी।
(iv) सूफियों ने कुरान की व्याख्या अपने निजी अनुभवों के आधार पर की।
खालसा पंथ के पांच प्रतिक : गुरु गोबिन्द सिंह ने खालसा पंथ (पवित्रों की सेना) की नींव डाली और उनके पाँच प्रतीकों का वर्णन किया:
(i) बिना कटे केश
(ii) कृपाण
(iii) कच्छ
(iv) कंघा
(v) लोहे का कड़ा
सिख समुदाय और संगठन :
गुरु गोबिन्द सिंह के नेतृत्व में समुदाय एक सामाजिक, धार्मिक और सैन्य बल के रूप में संगठित होकर सामने आया।