फ्रांस्वा बर्नियर का जीवन परिचय:
फ़्रांस का रहने वाला फ्रांस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार था। कई और लोगों की तरह ही वह मुग़ल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में भारत आया था | वह 1956 से 1968 तक भारत में बारह वर्ष तक रहा और मुग़ल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा-पहले सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा
शिकोह के चिकित्सक के रूप में, और बाद में मुग़ल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद ख़ान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में।
बर्नियर के अनुसार भारत में राजकीय भू-स्वामित्व के दुस्परिणाम :
(i) कृषि का विनाश
(ii) किसानों का उत्पीडन
(iii) समाज के सभी वर्गों के जीवन-स्तर में पतन की स्थिति
बर्नियर के लेखनी की विशेषताएँ :
(i) बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परंपरा से संबंधित था। उसने भारत में जो भी देखा, वह उसकी सामान्य रूप से यूरोप और विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा भिन्नता को उजागर करने के प्रति अधिक चिंतित था, विशेष रूप से वे स्थितियाँ जिन्हें उसने अवसादकारी पाया।
(ii) उसका विचार नीति-निर्माताओं तथा बुद्धिजीवी वर्ग को प्रभावित करने का था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे ऐसे निर्णय ले सके जिन्हें वह ‘‘सही’’ मानता था।
(iii) बर्नियर के ग्रंथ "ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर" अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि तथा गहन चिंतन के सके वृत्तांत में की गई चर्चाओं में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
(iv) वह निरंतर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा, सामान्यतया यूरोप की श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए।
बर्नियर की लिखित पुस्तक : "ट्रेवल इन द मुग़ल एंपायर"
बर्नियर द्वारा पूर्व और पश्चिम की तुलना :
बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और जो देखा उसके विषय में उसने विवरण लिखे। वह सामान्यतः भारत में जो देखता था उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था। उसने अपनी प्रमुख कृति को फ़्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया था और उसके कई अन्य कार्य प्रभावशाली अधिकारीयों और मंत्रियों को पत्रों के रूप में लिखे गए थे। लगभग प्रत्येक दृष्टांत में बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया।
वर्नियर द्वारा भारत का चित्रण :
(i) बर्नियर का भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधरित है, जहाँ भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया गया है, या फिर यूरोप का ‘‘विपरीत’’ जैसा कि कुछ इतिहासकार परिभाषित करते हैं।
(ii) उसने जो भिन्नताएँ महसूस कीं उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत, पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
बर्नियर द्वारा भारतीय समाज का वर्णन :
(i) निजी स्वामित्व के गुणों में दृढ़ विश्वास था और उसने भूमि पर राजकीय स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक माना।
(ii) भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना वर्णित करता है, जो एक बहुत अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग, जो अल्पसंख्यक होते हैं, के द्वारा आधीन बनाया जाता है।
(iii) गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था।
(iv) बर्नियर बहुत विश्वास से कहता है, "भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं है।"
बर्नियर के अनुसार भारत में माध्यम वर्गीय परिवार नहीं था :
बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना वर्णित करता है, जो एक बहुत अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग, जो अल्पसंख्यक होते हैं, के द्वारा आधीन बनाया जाता है। गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था। बर्नियर बहुत विश्वास से कहता है, "भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं है।"
बर्नियर द्वारा मुग़ल साम्राज्य का वर्णन : बर्नियर ने मुग़ल साम्राज्य को इस रूप में देखा - वह कहता है "इसका राजा भिखारियों और क्रूर लोगो का राजा था | इसके शहर और नगर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे और इसके खेत झाड़ीदार तथा घातक दलदल से भरे हुए थे और इसका मात्र एक ही कारण था- राजकीय भूस्वामित्व।
शिविर नगर : बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को "शिविर नगर" कहता है | वह ऐसा इसलिए कहता था क्योंकि ये ऐसे नगर थे जो अपने अस्तित्व में बने रहने के लिए राजकीय शिविरों पर निर्भर थे | उसका मानना था कि ये नगर राजकीय दरबार के आने पर तो ये नगर अस्तित्व में आ जाते थे और राजदरबार के चले जाने पर नगर भी तेजी से समाप्त हो जाता था |
बर्नियर द्वारा नगरों का वर्णन :
(i) वह ऐसे नगरों का वर्णन करता है जो राजदरबार के आने से नगर बन जाता है और चले जाने से अस्तित्वहीन हो जाते है, इसे वह शिविर नगर कहता है |
(ii) वह और भी कई प्रकार के नगरों का वर्णन करता है जो अस्तित्व में थे जैसे - उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धर्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यवसायिक वर्गों
के अस्तित्व का सूचक है।
व्यापारी वर्ग : बर्नियर व्यापारी वर्ग के बारे में निम्न बातें कहता है -
(i) व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधें से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ। अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे नगर सेठ कहा जाता था।
शहरों के व्यवसायी वर्ग : शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे। जहाँ कई
राजकीय प्रश्रय पर आश्रित थे, कई अन्य संरक्षकों या भीड़भाड़ वाले बाजार में आम लोगों की सेवा द्वारा जीवनयापन करते थे।
दास और दासियाँ : बाजार में रखी अन्य वस्तुओं की तरह दास और दासियों के खरीद-बिक्री होती थी और नियमित रूप से भेंट स्वरुप दिए जाते थे | इनका निम्न उपयोग था -
(i) सुल्तान के कुछ दासियाँ संगीत में निपुण थी |
(ii) सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
(iii) दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था |
(iv) पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने में इनकी सेवाएँ ली जाती थी |
(v) दासों की कीमत, विशेष रूप से उन दासियों की, जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए थी, बहुत कम
होती थी |
सत्ती प्रथा :
कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थीं, अन्य को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।