दो भारतीय वस्तुएँ जिससे इब्न बतूता के पाठक अपरिचित थे :
(i) नारियल
(ii) पान का पत्ता
17 वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति :
(i) वे कृषि कार्य और अन्य उत्पादों में भाग लेती थी |
(ii) व्यापारिक परिवारों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भाग लेती थी |
(iii) कभी-कभी वे वाणिज्यिक विवादों को अदालत में भी ले जाती थी |
इब्न बतूता द्वारा भारतीय शहरों का वर्णन : बतूता ने उपमहाद्वीप के शहरों को उन लोगों के लिए व्यापक
अवसरों से भरपूर पाया जिनके पास आवश्यक इच्छा, साधन तथा कौशल था। इन शहरों का विवरण निम्न है -
(i) ये शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे सिवाय कभी-कभी युद्धो तथा अभियानों से होने वाले विध्वंस के |
(ii) अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़के तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।
(iii) इब्न बतूता दिल्ली को एक बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है।
(iv) दौलताबाद ( महाराष्ट्र में ) भी कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।
(v) बाजार मात्रा आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे |
(vi) अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा एक मंदिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी चिन्हित थे |
भारतीय कृषि का वर्णन :
(i) इब्न बतूता दो ऐसे भारतीय वनस्पतियों पान का पत्ता और नारियल का वर्णन करता है जिसे उसके पाठक नहीं जानते थे |
(ii) भारतीय कृषि के इतना अधिक उत्पादनकारी होने का कारण मिटटी का उपजाऊपन था, जो किसानों के लिए वर्ष में दो फसलें उगाना संभव करता था।
भारतीय व्यापार और वाणिज्य : इब्न बतूता बताता है कि -
(i) उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अंतर एशियाई तंत्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ था।
(ii) भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया, दोनों में बहुत माँग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था।
(iii) भारतीय कपड़ों, विशेषरूप से सूती कपड़ा, महीन मलमल, रेशम, जारी तथा साटन की अत्यधिक माँग थी।
(iv) महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक मँहगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे।
इब्न बतूता के अनुसार भारत में डाक व्यवस्था का वर्णन :
भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है |
(i) अश्व डाक-व्यवस्था : हर चार मील की दुरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती है जिसे उलुक कहा जाता है |
(ii) पैदल डाक-व्यवस्था : पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते हैं इसे दावा कहा जाता है, और यह एक मील का एक-तिहाई होता है.|
डाक-व्यवस्था : भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है। अश्व डाक व्यवस्था जिसे उलुक कहा जाता है, हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती है। पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते हैं इसे दावा कहा जाता है,हर तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता है जिसके बाहर तीन मंडप होते हैं जिनमें लोग कार्य आरंभ के लिए तैयार बैठे रहते हैं। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लंबी एक छड़ होती है जिसके ऊपर ताँबे की घंटियाँ लगी होती हैं। जब संदेशवाहक शहर से यात्रा आरंभ करता है तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घंटियों सहित छड़ लिए वह क्षमतानुसार तेज भागता है। जब मंडप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते हैं तो वे तैयार हो जाते हैं। जैसे ही संदेशवाहक उनके पास पहुँचता है, उनमें से एक उससे पत्रा लेता है और वह छड़ हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता है, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता। पत्र के अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती है। यह पैदल डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था से अधिक-तीव्र होती है और इसका प्रयोग अकसर खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता है, जिन्हें भारत में बहुत पसंद किया जाता है।