तीसरा वर्ग - यह वर्ग किसान, स्वतंत्र और बंधकों (दासों) का वर्ग था | यह वर्ग एक विशाल समूह था जो पहले दो वर्गों पादरी और अभिजात वर्ग का भरण पोषण करता था |
काश्तकार दो प्रकार के होते थे -
(i) स्वतंत्र किसान
(ii) सर्फ़ (कृषि दास)
स्वतंत्र कृषकों की भूमिका :
(i) स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रुप में देखते थे।
(ii) पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था (वर्ष में कम से कम चालीस दिन)।
(iii) कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘श्रम-अधिशेष’ (Labour rent) कहते थे,सीधे लार्ड के पास जाता था।
(iv) इसके अतिरिक्त, उनसे अन्य श्रम कार्य जैसे- गढ्ढे खोदना, जलाने के लिए लकडि़याँ इक्कठी करना, बाड़ बनाना और सड़कें व इमारतों की मरम्मत करने की भी उम्मीद की जाती थी और इनके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी।
(v) खेतों में मदद करने के अतिरिक्त, स्त्रियों व बच्चों को अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। वे सूत कातते, कपड़ा बुनते, मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के उपयोग हेतु अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करते थे।
टैली (Taille) : राजा द्वारा कृषकों पर लगाये जाने वाले प्रत्यक्ष कर को टैली (Taille) कहा जाता था |
श्रम-अधिशेष : कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘श्रम-अधिशेष’ (Labour rent) कहते थे, सीधे लार्ड के पास जाता था।
कृषि दास : वे कृषक जो लार्ड के स्वामित्व में ही कार्य कर सकते थे कृषि दास कहलाते थे |