रोम साम्राज्य का आरंभिक काल :
(i) रोम साम्राज्य में 509 ई. पू. से 27 ई. पू. तक गणतंत्र शासन व्यवस्था चली |
(ii) प्रथम सम्राट आगस्टस - 27 ई. पू. में ऑगस्टस ने गणतंत्र शासन व्यवस्था का तख्ता पलट दिया और स्वयं सम्राट बन गया, उसके राज्य को प्रिंसिपेट कहा गया |
(iii) रोमन साम्राज्य के राजनितिक इतिहास के तीन खिलाडी - सम्राट, अभिजात वर्ग और सेना |
(iv) प्रान्तों की स्थापना की गई |
(v) सार्वजानिक स्नानगृह बनाये गए |
प्रथम और द्वितीय शताब्दियाँ -
प्रथम और द्वितीय शताब्दियाँ रोम के इतिहास में शांति, समृद्धि और आर्थिक विस्तार का काल थी |
तीसरी शताब्दी का संकट : यह समय राजनितिक उथल-पुथल और गृहयुद्ध का था | तीसरी शताब्दी में तनाव उभरा | जब ईरान के ससानी वंश के बार-बार आक्रमण हुए | इसी बीच जर्मन मूल की जनजातियों (फ्रेंक, एलमन्नाई और गोथ) ने रोमन साम्राज्य के विभिन्न प्रान्तों पर कब्ज़ा कर लिया जिससे सामाज्य में अस्थिरता आई | इसी शताब्दी के 47 वर्षों में 25 सम्राट हुए | यही कारण है कि इसे तीसरी शताब्दी का संकट कहा गया |
रोमन साम्राज्य में लिंग, साक्षरता, संस्कृति :
(i) इस साम्राज्य के समाज में एकल परिवार का चलन था | एकल परिवार का अर्थ है वह परिवार जिसमें पति, पत्नी और बच्चे रहते है |
(ii) इस साम्राज्य में महिलाओं की स्थिति अच्छी थी | संपति में स्वामित्व व संचालन में इन्हें क़ानूनी अधिकार प्राप्त था |
(iii) इस साम्राज्य में कामचलाऊ साक्षरता थी |
(iv) ईरानी सामाज्य की तुलना में इसमें सांस्कृतिक विविधता अधिक थी |
रोमन साम्राज्य का आर्थिक विस्तार :
(i) रोम साम्राज्य का आर्थिक आधारभूत ढाँचा काफी मजबूत था |
(ii) बंदरगाह, खानें, खदानें, ईट भट्टे, जैतून का तेल के कारखाने अधिक मात्रा में व्याप्त थे |
(iii) उर्वरता का क्षेत्र असाधारण रूप से अधिक थे |
(iv) सुगठित वाणिज्यक व बैंकिंग व्यवस्था तथा धन का व्यापक रूप से प्रयोग होता था |
(v) तरल पदार्थों की ढुलाई जिन कंटेनरों में की जाती थी उन्हें 'एम्फोरा' कहा जाता था |
(vi) स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल 'ड्रेसल-20' नामक कंटेनरों में ले जाया जाता था |
श्रमिकों पर नियंत्रण -
(i) दासता की मजबूत जड़ें पुरे रोमन साम्राज्य में फैली हुई थी |
(ii) इटली में 75 लाख की आबादी में से 30 लाख दासों की संख्या थी |
(iii) दासों को पूँजी निवेश का दर्जा प्राप्त था |
(iv) ऊँच वर्ग के लोगों द्वारा श्रमिकों एवं दासों से क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था |
(v) ग्रामीण लोग ऋणग्रसता से जूझ रहे थे |
(vi) दासों के प्रति व्यवहार सहानुभूति पर नहीं बल्कि हिसाब-किताब पर आधारित था |
दास प्रजजन : गुलामों की संख्या बढ़ाने की एक ऐसी प्रथा थी जिसके अंतर्गत दासियों और उनके साथ मर्दों को अधिकाधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था | उनके बच्चे भी आगे चलकर दास ही बनते थे |
दास श्रमिकों के साथ समस्याएँ :
(i) रोम में सरकारी निर्माण-कार्यों पर, स्पष्ट रूप से मुक्त श्रमिकों का व्यापक प्रयोग किया जाता था क्योंकि दास-श्रम का बहुतायत प्रयोग बहुत मँहगा पड़ता था।
(ii) भाड़े के मजदूरों के विपरीत, गुलाम श्रमिकों को वर्ष भर रखने केए भोजन देना पड़ता था और उनके अन्य खर्चे भी उठाने पड़ते थे, जिससे इन गुलाम श्रमिकों को रखने की लागत बढ़ जाती थी।(iii) वेतनभोगी मजदुर सस्ते तो पड़ते ही थे, उन्हें आसानी से छोड़ा और रखा जा सकता था।
रोमन साम्राज्य में श्रम-प्रबंधन की विशेषताएँ :
(i) दास श्रम महंगा होने के कारण दासों को मुक्त किया जाने लगा |
(ii) अब इन दासों या मुक्त व्यक्तियों को व्यापार प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया जाने लगा |
(iii) मालिक गुलामों अथवा मुक्त हुए गुलामों को अपनी ओर से व्यापार चलाने के पूँजी यहाँ तक की पूरा कारोबार सौप देते थे |
(iv) मुक्त तथा दास, दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिए निरीक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू था। निरीक्षण
को सरल बनाने के लिए, कामगारों को कभी-कभी छोटे दलों में विभाजित कर दिया जाता था।
(v) श्रमिकों के लिए छोटे-छोटे समूह बनाये गए थे जिससे ये पता लग सके कि कौन काम कर रहा है और काम चोरी |
अश्वारोही (इक्वाइट्स) : अश्वारोही (इक्वाइट्स) या नाइट वर्ग परंपरागत रूप से दूसरा सबसे अधिक शक्तिशाली और धनवान समूह था। मूल रूप से वे ऐसे परिवार थे जिनकी संपत्ति उन्हें घुड़सेना में भर्ती होने की औपचारिक योग्यता प्रदान करती थी, इसीलिए इन्हें इक्वाइट्स कहा जाता था।
अश्वारोही (इक्वाइट्स) या नाइट वर्ग की विशेषताएँ :
(i) सैनेटरों की तरह अधिकतर नाइट जमींदार होते थे |
(ii) ये सैनेटरों के विपरीत उनमें से कई लोग जहाजों के मालिक, व्यापारी और साहूकार (बैंकर) भी होते थे, यानी वे व्यापारिक क्रियाकलापों में संलग्न रहते थे।
(iii) इन्हें जनता का सम्माननीय वर्ग माना जाता था, जिनका संबंध महान घरानों से था |