चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना : 1949 में हुई |
चीन में छींग राजवंश का अंत : 1644 से 1911 तक चीन में छींग राजवंश का शासन था | 19 वीं सदी के शुरुआत में चीन का पूर्वी एशिया पर प्रभुत्व था | यहाँ छींग राजवंश का शासन था | कुछ ही दशकों के भीतर चीन अशांति की गिरफ्त में आ गया और औपनिवेशिक चुनौती का सामना नहीं कर पाया | छींग राजवंश कारगर सुधार करने में असफल रहा और देश गृहयुद्ध की लपटों में आ गया, और छींग राजवंश के हाथों से राजनितिक नियंत्रण चला गया |
19 वीं सदी में जापान में औद्योगिक अर्थतंत्र की रचना :
18 वीं सदी के अंत और 19 वीं सदी के शुरुआत में जापान ने अन्य एशियाई देशों की तुलना में काफी अधिक प्रगति की |
(i) जापान एक आधुनिक राष्ट्र-राज्य के निर्माण में, औद्योगिक अर्थतंत्र की रचना में चीन को काफी पीछे छोड़ दिया |
(ii) ताइवान (1895) तथा कोरिया (1910) को अपने में मिलाते हुए एक औपनिवेशिक साम्राज्य कायम करने में सफल रहा।
(iii) उसने अपनी संस्कृति और अपने आदर्शों की स्रोत-भूमि चीन को 1894 में हराया और 1905 में रूस जैसी यूरोपीय शक्ति को पराजित करने में कामयाब रहा।
चीन और जापान के भौगोलिक स्थिति में अंतर :
चीन -
(i) चीन एक विशालकाय महाद्वीप देश है |
(ii) यहाँ की जलवायु में विविधता पाई जाती है |
(iii) यहाँ कई राष्ट्रिय भाषाएँ हैं |
(iv) खानों में क्षेत्रीय विविधता पाई जाती है |
जापान -
(i) जापान एक द्वीप श्रृंखला वाला देश है |
(ii) इसमें चार मुख्य द्वीप शामिल हैं, मुख्य द्वीपों की 50 प्रतिशत से अधिक जमीन पहाड़ी है |
(iii) यहाँ की प्रमुख भाषा जापानी है |
(iv) जापान बहुत ही सक्रीय भूकंप क्षेत्र में है |
आधुनिक दुनियाँ में धीमी चीनी प्रतिक्रिया : जापान के समक्ष देखा जाय या अन्य यूरोपीय देशों को के साथ तुलना की जाए तो चीनी प्रतिक्रिया धीमी रही और उनके सामने कई कठिनाइयाँ आईं |
(i) आधुनिक दुनिया का सामना करने के लिए उन्होंने अपनी परंपराओं को पुनः परिभाषित करने का प्रयास किया।
(ii) अपनी राष्ट्र-शक्ति का पुनर्निर्माण करने और पश्चिमी व जापानी नियंत्रण से मुक्त होने की कोशिश की।
(iii) उन्होंने पाया कि असमानताओं को हटाने और अपने देश के पुनर्निर्माण के दुहरे मकसद को वे क्रांति के जरिए ही हासिल कर सकते हैं।
जापान का आधुनिकीकरण :
जापान का आधुनिकीकरण का सफर पूँजीवाद के सिद्धांतों पर आधारित था और यह सफर उसने ऐसी दुनिया में तय किया, जहाँ पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रभुत्व था। दूसरे देशों में जापान के विस्तार को पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध करने और एशिया को आजाद कराने की माँग के आधार पर उचित ठहराया गया। जापान में जिस तेजी से विकास हुआ वह जापानी संस्थाओं और समाज में परंपरा की सुदृढ़ता, उनकी सीखने की शक्ति और राष्ट्रवाद की ताकत को दर्शाता है।
चीन की तीन प्रमुख नदियाँ :
(i) पीली नदी (हुआंग हे),
(ii) यांग्त्सी नदी (छांग जिआंग - दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी नदी)
(iii) पर्ल नदी |
चीन की प्रमुख जातीय समूह : हान सबसे प्रमुख जातीय समूह है |
चीन की भाषा एवं बोलियाँ :
चीन की प्रमुख भाषा चीनी है और भी कई राष्ट्रीयताएँ हैं - जैसे उइघुर, हुई, मांचू और तिब्बती | कैंटनीज कैंटन (गुआंगजाओ) की बोली-उए और शंघाईनीज (शंघाई की बोली-वू) जैसी बोलियों के आलावा कई अल्पसंख्यक भाषाएँ भी बोली जाती हैं |
चीन की भोजन :
जाना-माना डिम सम एक चायनीज भोजन है जिसका शाब्दिक अर्थ दिल को छूना यह यहीं का खाना है जो गुंथे हुए आटे को सब्जी आदि भरकर उबाल कर बनाए गए व्यंजन जैसा है। उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है, जबकि शेचुआँ (Szechuan) में प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग के जरिए पंद्रहवीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा लाई गई मिर्च के चलते खासा झालदार और तीखा खाना मिलता है। पूर्वी चीन में चावल और गेहूँ, दोनों खाए जाते हैं।
जापान का खानपान :
जापान में पशुपालन की परंपरा नहीं है। चावल बुनियादी फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत। कच्ची मछली साशिमी या सूशी अब दुनिया भर में बहुत लोकप्रिय हो गई है क्योंकि इसे बहुत सेहतमंद माना जाता है।
जापान के चार प्रमुख द्वीपों का नाम :
(i) होंशू, (ii) क्यूशू, (iii) शिकोकू तथा (iv) होकाईदो
जापान में अर्थव्यस्था का आधुनिकीकरण :
(i) जापान में अर्थव्यस्था के आधुनिकीकरण के लिए कृषि पर कर लगाकर धन इकठ्ठा किया गया |
(ii) यहाँ पर तेजी से रेल लाइनों का विकास किया गया |
(iii) वस्त्र उद्योग में मशीनों का प्रयोग हुआ |
(iv) मजदूरों को प्रशिक्षण दिया गया |
(v) आधुनिक बैंकिंग सस्थाओं की शुरुआत हुई |
16वीं शताब्दी के अंतिम भाग में जापान में हुए तीन परिवर्तनों की विकास की तैयारी में भूमिका :
(1) किसानों से हथियार ले लिए गए, और अब केवल सामुराई तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति और व्यवस्था बनी रही जबकि पिछली शताब्दी में इस वजह से अक्सर लड़ाइयाँ होती रहती थीं।
(2) दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए और उन्हें काफी हद तक स्वायत्तता प्रदान की गई।
(3) मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए ज़मीन का सर्वेक्षण किया गया तथा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया। इन सबका मिलाजुला मकसद राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।
जापान में छपाई और पढने का महत्व :
जापान में लोगों को पढ़ने का बहुत शौक था | यहाँ होनहार लेखक केवल लेखनी के काम से ही अपनी जीविका चला सकते थे | एदो शहर में लोग नुडल की कटोरी की कीमत पर किताब किराये पर ले सकते थे |
जापान का चीन और भारत से आयात :
जापान अमीर देश समझा जाता था, क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़ा जैसी विलासी वस्तुएँ आयात करता था। इन आयातों के लिए चाँदी और सोने में कीमत अदा करने से अर्थव्यवस्था पर भार ज़रूर पड़ा जिसकी वजह से तोकुगावा ने कीमती धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी। उन्होंने क्योतो के निशिजिन (एक बस्ती) में रेशम उद्योग के विकास के लिए भी कदम उठाये जिससे रेशम का आयात कम किया जा सके । निशिजिन का रेशम दुनिया भर में बेहतरीन रेशम माना जाने लगा। मुद्रा का बढ़ता इस्तेमाल और चावल के शेयर बाजार का निर्माण जैसे अन्य विकास दिखाते हैं कि अर्थतंत्र नयी दिशाओं में विकसित हो रहा था।
निशिजिन रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध :
निशिजिन क्योतो की एक बस्ती है। जो रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध था | 16 वीं शताब्दी में वहाँ 31 परिवारों का बुनकर संघ था। 17वीं शताब्दी के आखिर तक इस समुदाय में 70,000 लोग थे। रेशम उत्पादन फैला और 1713 में केवल देशी धागा इस्तेमाल करने के आदेश जारी किए गए जिससे उसे और प्रोत्साहन मिला। इस शहर की निम्न विशेषताएँ थी -
(i) निशिजिन में केवल विशिष्ट प्रकार के महंगे उत्पाद बनाए जाते थे। यहाँ रेशम उत्पादन से ऐसे क्षेत्रीय उद्यमी वर्ग का विस्तार हुआ जिन्होंने आगे चलकर तोकूगावा व्यवस्था को चुनौती दी।
(ii) जब 1859 में विदेशी व्यापार की शुरुआत हुई, जापान से रेशम का निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए
मुनाफे का प्रमुख स्रोत बन गया, एक ऐसे समय में जबकि जापानी अर्थव्यवस्था पश्चिमी वस्तुओं से
मुकाबला करने की कोशिश कर रही थी।
मुरासाकी शिकिबु : ये एक जापानी लेखिका थी जिन्होंने अपनी लेखनी के लिए जापानी लिपि का इस्तेमाल किया | जबकि पुरुषों ने चीनी लिपि का | इन्होने हेआन राजदरबार की एक काल्पनिक डायरी "दि टेल ऑफ दि गेंजी" लिखी थी | यह जापानी साहित्य में काफी प्रचलित थी |