चीन
चीनी बहसों में तीन समूहों के नजरिए :
(i) कांग योवेल (1858-1927) या लियांग किचाऊ (1873-1929) |
(ii) गणतंत्र के दुसरे राष्ट्राध्यक्ष सन यान-सेन |
(iii) चीन की कम्युनिस्ट पार्टी |
आधुनिक चीन की शुरुआत : आधुनिक चीन की शुरुआत सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में पश्चिम के साथ उसका पहला सामना होने के समय से माना जाता है |
जेसुइट मिशनरियाँ : जेसुइट मिशनरियों ने चीन में खगोल विद्या और गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को वहाँ पहुँचाया |
पहला अफीम युद्ध : पहला अफीम युद्ध ब्रिटेन और चीन के बीच (1839-1942) हुआ | इस युद्ध में ब्रिटेन ने अफीम के फायदेमंद व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बलों का इस्तेमाल किया |
पहला अफीम युद्ध का परिणाम :
(i) इस युद्ध ने सताधारी क्विंग राजवंश को कमजोर किया |
(ii) सुधार तथा बदलाव के माँगों को मजबूती दी |
क्विंग सुधारक और उनके द्वारा किए गए कार्य :
(i) कांग युवेई और (ii) लियांग किचाऊ को क्विंग सुधारक कहा जाता है |
इनके द्वारा किए गए प्रमुख सुधार निम्नलिखित है :-
(i) व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया और एक आधुनिक व्यवस्था दी |
(ii) नई सेना और शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाई |
(iii) संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए स्थानीय विधायिकाओं का गठन किया |
उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों का चीनी विचारकों पर प्रभाव :
(i) 18वीं सदी में पोलैंड का बँटवारा सर्वाधिक बहुचर्चित उदाहरण था। यहाँ तक कि 1890 के दशक में पोलैंड शब्द का इस्तेमाल क्रिया के रूप में किया जाने लगा: बोलान वू का मतलब था, ‘हमें पोलेंड करने के लिए’।
(ii) भारत का उदाहरण भी सामने था। विचारक लियांग किचाउ का मानना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता लाकर ही चीन पश्चिम का विरोध कर पाएगा। 1903 में उन्होंने लिखा कि भारत एक ऐसा देश है, जो किसी और देश नहीं, बल्कि एक कंपनी के हाथों बर्बाद हो गया - ईस्ट इंडिया कंपनी के। वे ब्रितानिया की ताबेदारी करने और अपने लोगों के साथ क्रूर होने के लिए हिंदुस्तानियों की आलोचना करते थे। उनके तर्कों ने आम आदमी को खासा आकर्षित किया, क्योंकि चीनी देखते थे कि ब्रितानिया चीन के साथ युद्ध में भारतीय जवानों का इस्तेमाल करता है।
कन्फ्यूशियसवाद : चीनी विचारक कंफ्युशियस के विचारों को और उनके अनुयायियों की शिक्षा को कन्फ्यूशियसवाद कहते है |
कंफ्युशियस के विचार और उसके बाद आए परिवर्तन :
(i) अच्छे व्यवहार, व्यवहारिक समझादरी और उचित सामाजिक संबंधों के सिद्धांत पर आधारित था |
(ii) इनके विचारों ने चीनियों के जीवन के प्रति रवैया को प्रभावित किया |
(iii) सामाजिक मानक दिए और चीनी राजनितिक सोंच और संगठनों को आधार दिया |
(iv) लोगों को नये विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन और फ़्रांस में
पढ़ने भेजा गया ताकि वे नये विचार सीख कर वापस आएँ।
(v) रूसी-जापानी युद्ध के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा-प्रणाली समाप्त कर दी गई, जो प्रत्याशियों
को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में दाखिला दिलाने का काम करती थी।
मांचू साम्राज्य का अंत और गणतंत्र की स्थापना :
1911 में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और सन यात-सेन (1866-1925) के नेतृत्व में
गणतंत्रा की स्थापना की गई।
सन यात-सेन : वे निर्विवाद रूप से आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। उन्ही न के नेतृत्व में चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई | वे एक गरीब परिवार से थे और उन्होंने मिशन स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र और ईसाई धर्म से हुआ। उन्होंने डाक्टरी की पढ़ाई की लेकिन वे चीन के भविष्य को लेकर चिंतित थे |
सन यात-सेन के तीन सिद्धांत :
सन यात-सेन का कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से मशहूर है।
ये तीन सिद्धांत हैं:
(i) राष्ट्रवाद - इसका अर्थ था मांचू वंश - जिसे विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था - को सत्ता से हटाना, साथ ही अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना
(ii) गणतंत्र या गणतांत्रिक सरकार की स्थापना करना और
(iii) समाजवाद - जो पूँजी का नियमन करे और भूस्वामित्व में बराबरी लाए।
1919 में हुए बीजिंग आन्दोलन में क्रांतिकारियों की माँगे -
4 मई 1919 में बीजिंग में युद्धोत्तर शांति सम्मेलन के निर्णय के विरोध में एक धुआँधार प्रदर्शन हुआ। हालांकि चीन ब्रितानिया के नेतृत्व में हुई जीत में विजयी देशों का सहयोगी था, पर उससे हथिया लिए गए उसके इलाके वापस नहीं मिले थे। यह विरोध आंदोलन में तब्दील हो गया।
क्रांतिकारियों की माँगे निम्नलिखित थी -
(i) चीन को आधुनिक विज्ञान, लोकतंत्र और राष्ट्रवाद के जरिए बचाने की माँग की गई।
(ii) देश के साधनों पर कब्ज़ा जमाए विदेशियों को भगाने, असमानताएँ हटाने और गरीबी कम करने का नारा दिया।
(iii) उन्होंने लेखन में एक ही भाषा का इस्तेमाल,
(iv) पैरों को बाँधने की प्रथा और औरतों की अधीनस्थता के खात्मे,
(v) शादी में बराबरी और गरीबी खत्म करने के लिए आर्थिक विकास जैसे सुधारों की वकालत की।
गणतांत्रिक क्रांति के बाद चीन में दो पार्टियों का उदय :
(i) कुओमीनतांग (नेशनल पीपुल्स पार्टी) और
(ii) चीनी कम्युनिस्ट पार्टी
चियांग काइशेक (Chiang Kaishek, 1887&1975) : सन यात-सेन की मृत्यु के बाद चियांग काइशेक कूओमीनतांग के नेता बनकर उभरे और उन्होंने सैन्य अभियान के जरिए वारलार्ड्स ( एक स्थानीय नेता जिन्होंने सत्ता छीन ली थी) अपने नियंत्रण में किया और साम्यवादियों को खत्म कर डाला। उन्होंने सेक्युलर और विवेकपूर्ण ‘इहलौकिक’ कन्पूफशियसवाद की हिमायत की |
चियांग काइशेक द्वारा किए गए सुधार :
(i) राष्ट्र का सैन्यकरण करने की भी कोशिश की।
(ii) उन्होंने कहा कि लोगों को ‘ एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत’ का विकास करना चाहिए। (iii) उन्होंने महिलाओं को चार सद्गुण पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कियाः सतीत्व, रूप-रंग, वाणी और काम और उनकी भूमिका को घरेलू स्तर पर ही देखने पर जोर दिया।
(iv) यहाँ तक कि उनके कपड़ों की किनारियों की लंबाई भी प्रस्तावित की।
1919 में चीनी शहरों की स्थिति :
(i) औद्योगिक विकास धीमा और गिने चुने क्षेत्रों में था।
(ii) शंघाई जैसे शहरों में 1919 में औद्योगिक मज़दूर वर्ग उभर रहा था और इनकी संख्या 500,000 थी। लेकिन इनमें से केवल कुछ प्रतिशत मज़दूर ही जहाज निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में काम कर रहे थे।
(iii) ज़्यादातर लोग ‘नगण्य शहरी’ (शियाओ शिमिन), व्यापारी और दुकानदार होते थे। शहरी मज़दूरों, खासतौर से महिलाओं, को बहुत कम वेतन मिलता था।
(iv) काम करने के घंटे बहुत लंबे थे और काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब थी।
कुओमिनतांग के असफलता के कारण :
देश को एकीकृत करने की अपनी कोशिशों के बावजूद वुफओमीनतांग अपने संकीर्ण सामाजिक
आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टि के चलते असपफल हो गया। जिसके पीछे अन्य कारण भी थे -
(i) सन यात-सेन के कार्यक्रम का बहुत अहम हिस्सा - पूँजी का नियमन और भूमि-अधिकारों में बराबरी लाना - कभी अमल में नहीं आया, |
(ii) पार्टी ने किसानों और बढ़ती सामाजिक असमानता की अनदेखी की।
(iii) इसने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय फौजी व्यवस्था थोपने का प्रयास किया।
चीन पर जापानियों के हमले का परिणाम :
(i) इस लंबे और थकाने वाले युद्ध ने चीन को कमजोर कर दिया।
(ii) 1945 और 1949 के दरमियान कीमतें 30 प्रतिशत प्रति महीने की रफ़्तार से बढ़ीं।
(iii) आम आदमी की जिंदगी तबाह हो गई।
ग्रामीण चीन में संकट :
चीन जापान युद्ध से ग्रामीण चीन में दो संकट उत्पन्न हुए -
(i) पर्यावरण संबंधी - जिसमें बंजर ज़मीन, वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे।
(ii) सामाजिक-आर्थिक - जो विनाशकारी ज़मीन-प्रथा, ऋण, आदिम प्रौद्योगिकी और निम्न स्तरीय संचार के कारण था।
चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना : 1921 में हुई |
माओ त्सेतुंग (1893-1976) : माओ त्सेतुंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख नेता थे | क्रांति के कार्यक्रम को किसानों पर आधारित करते हुए एक अलग रास्ता चुना। उनकी सफलता से चीनी साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत बनी जिसने अंततः कुओमीनतांग पर जीत हासिल की।
माओ त्सेतुंग के आमूलपरिवर्तनवादी तौर-तरीकें :
(i) 1928-1934 के बीच उन्होंने कुओमीनतांग के हमलों से सुरक्षित शिविर लगाए।
(ii) मज़बूत किसान परिषद (सोवियत) का गठन किया, ज़मीन पर कब्ज़ा और पुनर्वितरण के साथ एकीकरण हुआ।
(iii) दूसरे नेताओं से हटकर, माओ ने आजाद सरकार और सेना पर जोर दिया।
(iv) वे महिलाओं की समस्याओं से अवगत थे और उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को उभरने में उत्साहन दिया।
(v) उन्होंने शादी के नए कानून बनाए जिसमें आयोजित शादियों और शादी के समझौते खरीदने और बेचने पर रोक लगाई और तलाक को आसान बनाया।
माओ त्सेतुंग की लॉन्ग मार्च : कम्युनिस्टों की सोवियत की कुओ मीन तांग द्वारा नावेफबंदी ने पार्टी
को दूसरा आधार ढूँढ़ने पर मज़बूर किया। इसके चलते उन्हें लाँग मार्च (1934-35) पर जाना पड़ा, जो कि शांग्सी तक 6000 मील का मुश्किल सफ़र था। नए अड्डे येनान में उन्होंने युद्ध सामंतवाद (Warlordism) को खत्म करने, भूमि सुधार लागू करने और विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने
के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। इससे उन्हें मज़बूत सामाजिक आधार मिला।
चीन की साम्यवादी दल और उनके समर्थकों द्वारा चीनी परम्पराओं को ख़त्म करना :
(i) उन्हें लगता था कि परंपरा जनसमुदाय को गरीबी में जकड़े हुए है,
(ii) महिलाओं को अधीन बनाती है और देश को अविकसित रखती है।
चियांग काइशेक द्वारा चीनी गणतंत्र की स्थापना :
चीनी साम्यवादी दल द्वारा पराजित होने के बाद चियांग काई-शेक 30 करोड़ से अधिक अमरीकी
डॉलर और बेशकीमती कलाकृतियाँ लेकर 1949 में ताइवान भाग निकले। वहाँ उन्होंने चीनी
गणतंत्रा की स्थापना की।
- ताइवान चीन का ही एक भाग है परन्तु 1894-95 में जापान के साथ हुई लड़ाई में यह जगह चीन को जापान के हाथ में सौंपनी पड़ी थी और तब से वह जापानी उपनिवेश बना रहा |
ताइवान में लोकतंत्र की स्थापना : 1975 में चियांग काइशेक की मौत के बाद धीरे-धीरे शुरू हुआ और 1887 में जब फौजी कानून हटा लिया गया तथा विरोधी दलों को क़ानूनी इजाजत मिल गई, तब इस प्रक्रिया ने गति पकडी़ । पहले स्वतंत्र मतदान ने स्थानीय ताइवानियों को सत्ता में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।