किसी पौधे या प्राणी में विशिष्ट लक्षणों के लिए जीन (genes) जिम्मेवार होते हैं |
अभिलक्षण (Characteristics) : बाह्य आकृति अथवा व्यवहार का विवरण अभिलक्षण कहलाता है।
दूसरे शब्दों में, विशेष स्वरूप अथवा विशेष प्रकार्य अभिलक्षण कहलाता है। हमारे चार पाद होते हैं, यह एक अभिलक्षण है। पौधें में प्रकाशसंश्लेषण होता है, यह भी एक अभिलक्षण है।
- सभी जीवों में कोशिका जो आधारभूत इकाई है यह भी एक अभिलक्षण है |
- सभी जीवों का वर्गीकरण उनके अभिलक्षणों के आधार किया है जिसमें पहला वर्गीकरण उनके कोशिकीय अभिलक्षण है जैसे केंद्रक झिल्ली वाले जीव (यूकैरियोटिक) और बिना केन्द्रक झिल्ली वाले जीव (प्रोकैरियोटिक)|
- दो स्पीशीश के मध्य जितने अध्कि अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध् भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा।
- जिन जीवों में अभिलक्षण समान होगा तो वे जीव समान जनक से वंशानुगत हुए है |
विकास (Evolution) : जीवों में होने वाले अनुक्रमिक परिवर्तनों के परिणाम को विकास कहते हैं जो लाखों वर्षों से भी ऊपर आदिम जीवों में घटित होते हैं जिनसे नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं | चूँकि विकास जीवित जीवों का होता है इसलिए इसे जैव विकास भी कहते है |
(i) समजात अंग (Homologous Organs): विभिन्न जीवों में वे अंग जो आकृति तथा उत्पति में समानता रखते हैं समजात अंग कहलाते हैं ।
उदाहरण - मेंढक के अग्रपाद , पक्षी के अंग , चमगादड. के पंख घोड़ा के अग्रपाद आदि उत्पत्ति में समान होते हेैं परंतु वे कार्य में परस्पर भिन्नता रखते हैं ।
(ii) समरूप अंग (Analogous Oragans): विभिन्न जीवों के वे अंग जो कार्य में समान होते हैं परंतु उत्पत्ति में भिन्न होते हैं समरूप अंग कहलाते हैं ।
उदाहरण:- तितली . के पंख, पक्षी के पंख आदि कार्याें में समान होते हैं परंतु उत्पत्ति में वे भिन्न हैं ।
(iii) जीवाश्म (Fossil) : मृत जीवों के परिरक्षित अवशेष को जीवाश्म कहते हैं |
उदाहरण कोई मृत कीट गर्म मिट्टी में सुख कर कठोर हो जाये |
जीवाश्म प्राचीन समय में मृत जीवों के संपूर्ण, अपूर्ण, अंग आदि के अवशेष तथा उन अंगो के ठोस, मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिन्ह होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया हो । ये चिन्ह इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोंडों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान काल में लुप्त हो चुके हैं ।
अब तक प्राप्त कुछ जीवाश्म के उदाहरण :
अमोनाइट - अकशेरुकी जीवाश्म
ट्राइलोबाइट - अकशेरुकी जीवाश्म
नाइटिया - मछली का जीवाश्म
राजासौरस - जीवाश्म - डायनासोर
जीवाश्मों के अध्ययन से निम्न बातों का पता चलता है |
1. जीवाश्म उन जीवों के पृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं ।
2. इन जीवाश्मो की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं । इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता हैं कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के संबंध में क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं जो जीवधारियों कीे जीवित रहने के प्रतिकूल हो गए हैं ।
विकासीय संबंध की पहचान/प्रमाण :
(i) समजात अंग विकास के पक्ष में प्रमाण उलब्ध कराते हैं | यह अंग यह बताता है कि इनके पूर्वज एक ही थे, अर्थात ये समान पैतृक पूर्वज से उत्पन्न हुए है | चूँकि इनका बनावट एक है परन्तु इनका कार्य भिन्न है लेकिन इनके अंगो में परिवर्तन विकास को दर्शाता है |
(ii) समरूप अंग विकास के पक्ष में प्रमाण उलब्ध कराते हैं | यह अंग यह सूचित करता है कि भिन्न संरचनाओं के अंगों वाले जीव भी प्रतिकूल परिस्थितयों में अपने को बनाए रखने के लिए और एक समान कार्य करने के लिए अपने को अनुकूलित कर लेते है | इससे यह कहा जा सकता है कि विकास हुआ है |
(iii) जीवाश्म भी विकास के संबंध में प्रमाण उपलब्ध कराते हैं | उदाहरण : आर्कियोप्टेरिक्स के जीवाश्म के अध्ययन से पता चलता है कि यह दिखता तो पक्षी की तरह है परन्तु कई ऐसे दुसरे लक्षण सरीसृप (reptile) के जैसे है | इसके यह पता चलता है की पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है |
जीवाश्मों की आयु का आंकलन :
(i) खुदाई द्वारा /सापेक्ष पद्धति द्वारा : खुदाई करने पर पृथ्वी की सतह के निकट वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की तुलना में अधिक नए होते है जबकि गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्म पुराने होते है |
(ii) फॉसिल डेटिंग (Fossil Dating) द्वारा : जिसमें जीवाश्म में पाए जाने वाले किसी एक तत्व के विभिन्न समस्थानिको का अनुपात के आधार पर जीवाश्म का समय-निर्धारित किया जाता है | इसमें कार्बन-14 समस्थानिक जो सजीवों में उपस्थित होता है, का उपयोग किया जाता है जिसमें सजीव के जीवाश्म में उपस्थित कार्बन-14 रेडियोएक्टिवता होती है जो समय के साथ धीरे-धीरे घटता जाता है | इसी रेडियोएक्टिवता की तुलना करके जीवाश्मों की आयु का पता लगाया जाता है |
डार्विन का विकास सिद्धांत :
प्रजनन की असीम क्षमता धारण करते हुए भी किसी भी जीवधारी की जनसंख्या एक सीमा के अंदर ही नियंत्रित रहती है। यह आपसी संर्धष के कारण है जो एक जाति के सदस्यो के बीच अथवा विभिन्न जातियो के सदस्यो के बीच भोजन, स्थान एवं जोडी के लिए होता रहता है। इस संर्धष से व्यष्टियां लोप हो जाती हैं। और एक नई जाति का उदभव होता है। इसे ही डार्विन के विकास का सिद्धांत कहते हैं | डार्विन द्वारा प्रस्तावित विकास के सिद्धांत को 'प्राकृतिक वरण का सिद्धांत' भी कहा जाता है | इन्होने इस सिद्धांत को अपनी पुस्तक "The Origin of Species" में वर्णन किया है |
इस सिद्धांत के अनुसार :
(i) किसी भी समष्टि के अंदर प्राकृतिक रूप से विविधता (variation) होता है जबकि उसी समष्टि के कुछ व्यष्टियों में अन्य के अपेक्षा अधिक अनुकूलित विविधता होती है |
(ii) प्रजनन की असीम क्षमता धारण करते हुए भी किसी भी जीवधारी की जनसंख्या एक सीमा के अंदर ही नियंत्रित रहती है।
(iii) यह आपसी संर्धष के कारण है जो एक जाति के सदस्यो के बीच अथवा विभिन्न जातियो के सदस्यो के बीच भोजन, स्थान एवं जोडी के लिए होता रहता है। इस संर्धष से व्यष्टियां लोप हो जाती हैं।
(iv) जो व्यष्टियाँ अनुकूलित होती है और जिनमें विविधता होती है वे ही अपनी उत्तरजीविता को बनाए रखती हैं, और वे इन अनुकूलित विविधता को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ियों में हस्तांतरित करते हैं |
(v) जब ये विविधताएँ लंबे समय तक संचित होती रहती है तो जीव अपने मूल समष्टि से भिन्न दिखाईदेने लगता है और एक नयी जाति (species) की उत्पति होती है |
भ्रौणिकी (भ्रुण सम्बंधी) के अघ्ययन से विकास का प्रमाण :
कशेरूकी जंतुओं के भ्रुणों के अध्ययन से पता चलता है कि इनका विकास मछली जैसे पूर्वजों से हुआ है । मछली , पक्षी तथा मनुष्य की भ्रुणों की पहली अवस्था लगभग समान होती है जिसके गहन अध्ययन से पता चलता है कि सभी में गिल दरारें तथा नोटोकार्ड होते है ।
पृथ्वी पर जीवों की उत्पति : एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन (जो बाद में भारत के नागरिक हो गए थे।) ने 1929 में यह सुझाव दिया कि जीवों की सर्वप्रथम उत्पत्ति उन सरल अकार्बनिक अणुओं से ही हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे। उसने कल्पना की कि पृथ्वी पर उस समय का वातावरण, पृथ्वी के वर्तमान वातावरण से सर्वथा भिन्न था। इस प्राथमिक वातावरण में संभवतः कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण हुआ जो जीवन के लिए आवश्यक थे। सर्वप्रथम प्राथमिक जीव अन्य रासायनिक संश्लेषण द्वारा उत्पन्न हुए होंगे।
जटिल अंगों का विकास एवं उनमें भिन्नता का कारण :
(i) इसका प्रमुख कारण अलग-अलग विकासीय उत्पत्ति है |
(ii) इनके डीएनए में परिवर्तन जो उनकी क्रमिक विकास के रूप में दिखाई देता है वह वास्तव में अनेक पीढ़ियों के हुआ है |
(iii) आँख या अन्य कोई अंग का चयन उसकी उपयोगिता के आधार पर होता है |
(iv) प्राकृतिक चयन भी इसका प्रमुख कारण है |
कृत्रिम चयन (Artificial Selection) :
कृत्रिम चयन/वरण (Artificial Selection) द्वारा विकास :
जंगली गोभी का विकास