उत्सर्जन : वह जैव प्रक्रम जिसमें इन हानिकारक उपापचयी वर्ज्य पदार्थों का निष्कासन होता है, उत्सर्जन कहलाता है।
अमीबा में उत्सर्जन : एक कोशिकीय जीव अपने शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देता है |
बहुकोशिकीय जीवों में उत्सर्जन : बहुकोशिकीय जीवों में उत्सर्जन की प्रक्रिया जटिल होती है, इसलिए इनमें इस कार्य को पूरा करने के लिए विशिष्ट अंग होते है |
मानव के उत्सर्जन (Excretion in Human) :
उत्सर्जी अंगों का नाम : उत्सर्जन में भाग लेने वाले
अंगों को उत्सर्जी अंग कहते है | ये निम्नलिखित हैं |
(i) वृक्क (Kidney)
(ii) मुत्रवाहिनी (Ureter)
(iii) मूत्राशय (Urinary Bladder)
(iv) मूत्रमार्ग (Urethra)
वृक्क (Kidney) : मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क होते हैं जो उदर में रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं |
उत्सर्जन की प्रक्रिया : वृक्क में मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी में होता हुआ मूत्रशय में आ जाता है तथा यहाँ तब तक एकत्र रहता है जब तक मूत्रमार्ग से यह निकल नहीं जाता है |
उत्सर्जी पदार्थ (Excretory Substances): उत्सर्जन के उपरांत निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जी पदार्थ कहते है |
उत्सर्जी पदार्थों के नाम :
(i) नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जैसे यूरिया
(ii) यूरिक अम्ल
(iii) अमोनिया
(iv) क्रिएटिन
वृक्क का कार्य (functions Of Kidneys):
(i) यह शरीर में जल और अन्य द्रव का संतुलन बनाता है जिससे रक्तचाप नियंत्रित होता है |
(ii) यह रक्त से खनिजों तथा लवणों को नियंत्रित और फ़िल्टर करता है |
(iii) यह भोजन, औषधियों और विषाक्त पदार्थों से अपशिष्ट पदार्थों को छानकर बाहर निकलता है |
(iv) यह शरीर में अम्ल और क्षार की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है |
वृक्काणु (Nephron) : प्रत्येक वृक्क में निस्यन्दन (filtering) एकक (unit) को विक्काणु कहते है |
विक्काणु की संरचना
मूत्र बनने की मात्रा का नियमन : यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है -
(i) जल की मात्रा का पुनरवशोषण पर
(iii) शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर
(iii) कितना विलेय पदार्थ उत्सर्जित करना है
शरीर में निर्जलीकरण की अवस्था में वृक्क का कार्य (functuion of kideny during dehydration) : शरीर में निर्जलीकरण की अवस्था में वृक्क मूत्र बनने की प्रक्रिया को कम कर देता है, यह एक विशेष प्रकार के हार्मोन के द्वारा नियंत्रित होता है |
वृक्क की क्रियाहीनता (Kidney Failure) : संक्रमण, अघात या वृक्क में सीमित रक्त प्रवाह आदि कारणों से कई बार वृक्क कार्य करना कम कर देता है या बंद कर देता है | इसे ही वृक्क की क्रियाहीनता (Kidney Failure) कहते है | इससे शरीर में विषैले अपशिष्ट पदार्थ संचित होते जाते है जिससे व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है |
वृक्क की इस निष्क्रिय अवस्था में कृत्रिम वृक्क (dialysis) का उपयोग किया जाता है जिससे नाइट्रोजनी अपशिष्टों को शरीर से निकाला जा सके |
कृत्रिम वृक्क (Dialysis) : नाइट्रोजनी अपशिष्टों को रक्त से एक कृत्रिम युक्ति द्वारा निकालने की युक्ति को अपोहन (dialysis) कहते है |
अपोहन कैसे कार्य करता है : कृत्रिम वृक्क बहुत सी अर्धपारगम्य अस्तर वाली नलिकाओं से युक्त होती है | ये नलिकाएँ अपोहन द्रव से भरी टंकी में लगी होती हैं। इस द्रव का परासरण दाब रुधिर जैसा ही होता है लेकिन इसमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट नहीं होते हैं। रोगी के रुधिर को इन नलिकाओं से प्रवाहित कराते हैं। इस मार्ग में रुधिर से अपशिष्ट उत्पाद विसरण द्वारा अपोहन द्रव में आ जाते हैं। शुद्ध किया गया रुधिर वापस रोगी के शरीर में पंपित कर दिया जाता है।
वृक्क और कृत्रिम वृक्क में अन्तर :
वृक्क में पुनरवशोषण होता है जबकि कृत्रिम वृक्क में पुनरवशोषण नहीं होता है |
पादपों में उत्सर्जन (Excretion in Plants):
- पौधे अतिरिक्त जल को वाष्पोत्सर्जन द्वारा बाहर निकल देते हैं ।
- बहुत से पादप अपशिष्ट उत्पाद कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं।
- पौधें से गिरने वाली पत्तियों में भी अपशिष्ट उत्पाद संचित रहते हैं।
- अन्य अपशिष्ट उत्पाद रेजिन तथा गोंद के रूप में विशेष रूप से पुराने जाइलम में संचित रहते हैं।
- पादप भी कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में उत्सर्जित करते ।