अध्याय 14. ऊर्जा के स्रोत
A. समुद्रों से ऊर्जा (Sea Energy):
समुद्रों से प्राप्त ऊर्जा को हम तीन वर्गों में विभाजित करते हैं :
1. ज्वारीय ऊर्जा
2. तरंग ऊर्जा
3. महासागरीय तापीय ऊर्जा
1. ज्वारीय ऊर्जा : समुद्रों में उत्पन्न ज्वार-भाटा के कारण प्राप्त ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं |
यह ज्वार-भाटे में जल के स्तर के चढ़ने तथा गिरने से हमें ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है।
ज्वार-भाटा (Tide) : समुद्र के जल स्तर को दिन में परिवर्तन होने की परिघटना को ज्वार-भाटा कहते है |
ज्वारीय ऊर्जा का कारण :
(i) पृथ्वी कि घूर्णन गति
(ii) चन्द्रमा का गुरुत्वीय खिंचाव
ज्वारीय ऊर्जा का दोहन :
ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध् का निर्माण करके किया जाता है। बाँध् के द्वार पर स्थापित टरबाइन ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देती है।
2. तरंग ऊर्जा :
महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहने वाली प्रबल पवन तरंगें उत्पन्न करती है। इन विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा को भी विद्युत उत्पन्न करने के लिए इन उत्पन्न तरंगों को ट्रेप किया जाता है। तरंग ऊर्जा को ट्रेप करने के लिए विविध् युक्तियाँ विकसित की गई हैं जो टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती हैं |
तरंग ऊर्जा की सीमाएँ :
(i) तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल हों।
3. महासागरीय तापीय ऊर्जा : समुद्रों तथा महासागरों के पृष्ठ के जल का ताप और गहराई के ताप में अंतर से प्राप्त प्राप्त तापीय ऊर्जा का उपयोग विद्युत संयंत्रो के उपयोग से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है |
सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र (Ocean Thermal Energy Conversion Plant या OTEC विद्युत संयंत्र) : यह एक यन्त्र है जो समुद्रों तथा महासागरों के पृष्ठ तथा गहराई के तापों का अन्तर से प्राप्त ऊष्मा का उपयोग कर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करता है |
महासागरीय तापीय ऊर्जा का दोहन :
इसके दोहन के लिए OTEC विद्युत संयंत्र का उपयोग किया जाता है | यह संयन्त्र महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है | पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वाष्प फिर जनित्र (Generator) के टरबाइन को घुमाती है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव में संघनित किया जाता है। टरबाइन घूमने से विद्युत उत्पन्न होता है |
OTEC विद्युत संयंत्र की सीमाएँ :
(i) महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है |
(ii) इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में कठिनाइयाँ है |
B. भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) :
जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है | जब यह भाप चट्टानों के बीच फंस जाती हैं तो इसका दाब बढ़ जाता है | उच्च दाब पर यह भाप पाइपों द्वारा निकाल ली जाती है, यह भाप विद्युत जनरेटर की टरबाइन को घुमती है तथा विद्युत उत्पन्न की जाती है |
तप्त स्थल : भौमिकीय परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में पिघली चट्टानें ऊपर धकेल दी जाती हैं जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती हैं। इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते हैं।
गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत : तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए जो निकास मार्ग होता है। इन निकास मार्गों को गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत कहते हैं।
लाभ :
(i) इसके द्वारा विद्युत उत्पादन की लागत अधिक नहीं है |
(ii) व्यापारिक दृष्टिकोण से इस ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक है।
सीमाएँ :
(i) पृथ्वी पर भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र बहुत कम हैं |
(ii) ऐसे तप्त स्थलों की गहराई में पाइप पहुँचना मुश्किल एवं महँगा होता है |
नाभकीय ऊर्जा
नाभकीय अभिक्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को नाभकीय ऊर्जा कहते है |
नाभकीय ऊर्जा दो प्रकार के अभिक्रिया से प्राप्त होती है :-
(i) नाभकीय बिखंडन - एक भारी नाभिक का दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटना नाभकीय बिखंडन कहलाता है |
उदाहरण : जैसे - युरेनियम, प्लूटोनियम अथवा थोरियम जैसे भारी नाभिक के परमाणुओ के नाभिक को निम्न उर्जा वाले तापीय न्यूट्रॉन से बमबारी कराकर हल्के नाभिकों में तोडा जाता है | जिसके दौरान भारी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है |
तापीय न्यूट्रॉन (निम्न ऊर्जा का न्यूट्रॉन) : ये वो न्यूट्रॉन हैं जो नाभकीय रिएक्टर में उपस्थित भारी जल या मंदक के टकराकर अपनी ऊर्जा खो देते है, ऐसे न्यूट्रॉन को तापीय न्यूट्रॉन कहा जाता है |
इनका उपयोग : परमाणु के नाभिक को तोड़ने के लिए किया जाता है, इन्ही न्यूट्रॉन से नाभिक पर बमबारी की जाती है |
(ii) नाभकीय संलयन - दो हल्के नाभिकों का टूटकर एक भारी नाभिक में संलयित होना नाभकीय संलयन कहलता है |
उदाहरण : दो हल्के सामान्यत: हाइड्रोजन नाभिक संलयित होकर एक भारी नाभिक हीलियम का निर्माण करता है जिसमें भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है |
यहाँ हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्युट्रियम का नाभकीय संलयन के लिए उपयोग हुआ है जबकि हाइड्रोजन का समान्यत: परमाणु भार 1 होता है, से तीन भार वाले हीलियम का निर्माण हुआ है और एक न्यूट्रॉन ऊर्जा के रूप में मुक्त हुआ है |
- नाभकीय संलयन को संपन्न कराने के लिए अत्यधिक ताप व दाब की जरुरत होती है |